Laxman Bag: कौन हैं नवीन पटनायक को हराने वाले लक्ष्मण बाग? संघर्ष की कहानी भावुक करने वाली; अब बने बाजीगर
Odisha News ओडिशा की राजनीति इस बार देश को चौंका कर रख दिया है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का हारना सभी के लिए एक तरह से चौंकाने वाला ही रिजल्ट था। नवीन पटनायक ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह वहां से हार जाएंगे। नवीन पटनायक को हराने वाला और कोई नहीं बल्कि बीजेपी नेता लक्ष्मण बाग हैं। आज हम आपलोगो को लक्ष्मण बाग के बारे में बताएंगे।
शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। Odisha Politics: ओडिशा में चुनाव परिणाम घोषित हो जाने के बाद अब सरकार बनाने की तैयारी चल रही है। हालांकि, 2024 के आम चुनाव में कुछ ऐसे प्रत्याशी की हार जीत हुई है, जिसकी अब भी लोग खूब चर्चा कर रहे हैं। इनमें से एक विधानसभा की सीट है कांटाबांजी, जहां से खुद बीजद सुप्रीमो नवीन पटनायक चुनाव हार गए हैं। इस सीट के नतीजों ने सभी को हैरान कर दिया। नवीन ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह वहां से हार जाएंगे।
वह भी एक ऐसे उम्मीदवार लक्ष्मण बाग (Laxman Bag) से जिसे उस क्षेत्र या जिला या कुछ आस-पास जिलों को छोड़ दें तो उन्हें कोई जानता भी नहीं होगा। हालांकि, वह पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन कांटाबांजी के सबसे बड़े नेताओं में से एक और कांग्रेस के पूर्व विधायक संतोष सिंह सलूजा की तरह उन्हें पूरे राज्य में नहीं जाना जाता था।हालांकि, अब लक्ष्मण बाग पूरे राज्य में एक जाना-माना नाम हो गया है। हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है।उन्होंने बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक को हराया, जो 24 साल से अधिक समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे।
कौन हैं लक्ष्मण बाग जिन्होंने नवीन पटनायक को हरा दिया
लक्ष्मण बाग (Laxman Bag) के गांव का नाम खुटुलुमुंडा है। यह गांव बलांगीर जिले के तुरेईकेला ब्लॉक के हिआल पंचायत में है।लक्ष्मण, खुटुलुमुंडा गांव के दिवंगत शंकर बाग के छह बेटों में सबसे छोटे हैं।लक्ष्मण के दो भाइयों का निधन हो चुका है।अब उनके चार भाई हैं। लक्ष्मण के पिता शंकर बाग किसान थे।उनके बेटे भी खेती का काम कर रहे हैं। वे खेती के साथ-साथ राजनीति भी करते हैं। लक्ष्मण के भाइयों ने विभिन्न पंचायतों से चुनाव लड़ा और सरपंच और समिति के सदस्य बने।उनकी एक भाभी ब्लॉक अध्यक्ष भी थीं। लेकिन राजनीति में काफी सक्रिय लक्ष्मण बाग ने सीधे विधानसभा चुनाव लड़ा।
कड़ी मेहनत से लक्ष्मण बाग ने सफलता हासिल की
लक्ष्मण ने जो सफलता हासिल की है, उसे हासिल करने में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी।उन्हें अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने में भी काफी संघर्ष करना पड़ता था। लक्ष्मण कहते हैं कि जब मैं 12-13 साल का था, तो मैं 3 रुपये के लिए एक मजदूर के रूप में काम करता था।तब मेरी स्थिति ऐसी ही थी।मैं अपने परिवार की देखभाल के लिए खेती करता था।मैं ट्रक पर हेल्फर के रूप में भी काम कर चुका हैं। मैं पत्थर उठाता था। हालांकि मैं हमेशा खुद पर विश्वास रखता था।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।