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Laxman Bag: कौन हैं नवीन पटनायक को हराने वाले लक्ष्मण बाग? संघर्ष की कहानी भावुक करने वाली; अब बने बाजीगर

Odisha News ओडिशा की राजनीति इस बार देश को चौंका कर रख दिया है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का हारना सभी के लिए एक तरह से चौंकाने वाला ही रिजल्ट था। नवीन पटनायक ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह वहां से हार जाएंगे। नवीन पटनायक को हराने वाला और कोई नहीं बल्कि बीजेपी नेता लक्ष्मण बाग हैं। आज हम आपलोगो को लक्ष्मण बाग के बारे में बताएंगे।

By Sheshnath Rai Edited By: Sanjeev Kumar Published: Thu, 06 Jun 2024 03:58 PM (IST)Updated: Thu, 06 Jun 2024 04:27 PM (IST)
नवीन पटनायक और भाजपा नेता लक्ष्मण बाग (जागरण)

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। Odisha Politics: ओडिशा में चुनाव परिणाम घोषित हो जाने के बाद अब सरकार बनाने की तैयारी चल रही है। हालांकि, 2024 के आम चुनाव में कुछ ऐसे प्रत्याशी की हार जीत हुई है, जिसकी अब भी लोग खूब चर्चा कर रहे हैं। इनमें से एक विधानसभा की सीट है कांटाबांजी, जहां से खुद बीजद सुप्रीमो नवीन पटनायक चुनाव हार गए हैं। इस सीट के नतीजों ने सभी को हैरान कर दिया। नवीन ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह वहां से हार जाएंगे।

वह भी एक ऐसे उम्मीदवार लक्ष्मण बाग (Laxman Bag) से जिसे उस क्षेत्र या जिला या कुछ आस-पास जिलों को छोड़ दें तो उन्हें कोई जानता भी नहीं होगा। हालांकि, वह पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन कांटाबांजी के सबसे बड़े नेताओं में से एक और कांग्रेस के पूर्व विधायक संतोष सिंह सलूजा की तरह उन्हें पूरे राज्य में नहीं जाना जाता था।

हालांकि, अब लक्ष्मण बाग पूरे राज्य में एक जाना-माना नाम हो गया है। हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है।उन्होंने बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक को हराया, जो 24 साल से अधिक समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे।

कौन हैं लक्ष्मण बाग जिन्होंने नवीन पटनायक को हरा दिया

लक्ष्मण बाग (Laxman Bag) के गांव का नाम खुटुलुमुंडा है। यह गांव बलांगीर जिले के तुरेईकेला ब्लॉक के हिआल पंचायत में है।लक्ष्मण, खुटुलुमुंडा गांव के दिवंगत शंकर बाग के छह बेटों में सबसे छोटे हैं।लक्ष्मण के दो भाइयों का निधन हो चुका है।अब उनके चार भाई हैं। लक्ष्मण के पिता शंकर बाग किसान थे।

उनके बेटे भी खेती का काम कर रहे हैं। वे खेती के साथ-साथ राजनीति भी करते हैं। लक्ष्मण के भाइयों ने विभिन्न पंचायतों से चुनाव लड़ा और सरपंच और समिति के सदस्य बने।उनकी एक भाभी ब्लॉक अध्यक्ष भी थीं। लेकिन राजनीति में काफी सक्रिय लक्ष्मण बाग ने सीधे विधानसभा चुनाव लड़ा।

कड़ी मेहनत से लक्ष्मण बाग ने सफलता हासिल की

लक्ष्मण ने जो सफलता हासिल की है, उसे हासिल करने में उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी।उन्हें अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने में भी काफी संघर्ष करना पड़ता था। लक्ष्मण कहते हैं कि जब मैं 12-13 साल का था, तो मैं 3 रुपये के लिए एक मजदूर के रूप में काम करता था।तब मेरी स्थिति ऐसी ही थी।मैं अपने परिवार की देखभाल के लिए खेती करता था।मैं ट्रक पर हेल्फर के रूप में भी काम कर चुका हैं। मैं पत्थर उठाता था। हालांकि मैं हमेशा खुद पर विश्वास रखता था।

2014 से शुरू किया चुनाव लड़ना

गौरतलब है कि लक्ष्मण ने 2014 में कांटाबांजी विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। वह 30,961 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे।इस सीट पर बीजेडी नेता अयूब खान ने जीत दर्ज की थी। लक्ष्मण बाग 2019 के चुनाव में कांटाबांजी सीट से फिर से उम्मीदवार थे।उनका कांग्रेस के संतोष सिंह सलूजा से कड़ा मुकाबला था। लक्ष्मण बाग महज 128 वोटों से हार गए। संतोष सिंह सलूजा को 64,246 वोट मिले जबकि लक्ष्मण बाग को 64,118 वोट मिले।

दो बार हारने के बावजूद पीछे नहीं हटे

दो बार हारने के बाद लक्ष्मण बाग न तो निराश हुए और न ही भाजपा ने उन पर भरोसा खोया। इसलिए पार्टी ने उन्हें इस बार भी कांटाबांजी से मैदान में उतारा। नवीन पटनायक के वहां से बीजद के उम्मीदवार होने के बावजूद लक्ष्मण का मनोबल मजबूत बना रहा। पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने उनका मनोबल मजबूत बनाए रखा। बलांगीर लोकसभा सीट की उम्मीदवार संगीता सिंह देव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनका मनोबल बढ़ाया।

पीएम मोदी ने शेर कहा था

बलांगीर में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लक्ष्मण बाग को -शेर- कहा था। प्रधानमंत्री ने कहा था कि ''ये हमारा शेर है।उन्होंने लोगों से लक्ष्मण बाग को वोट देने और मुख्यमंत्री को हराने की अपील की थी।इसी तरह संगीता सिंह देव का एक संवाद काफी लोकप्रिय हुआ।

उन्होंने कहा- कसम राम की खातें हैं... मुख्यमंत्री हार गए हैं। इससे लक्ष्मण बाग का मनोबल भी बढ़ा। इसके अलावा पार्टी के कई केंद्रीय नेताओं ने उनके लिए प्रचार किया। एक तरफ मुख्यमंत्री थे और दूसरी तरफ कांग्रेस के संतोष सिंह सलूजा थे, लेकिन सही रणनीति और लक्ष्मण के गहन और डोर-टू-डोर प्रचार के कारण उन्हें जीत मिली।

लक्ष्मण बाग ने नवीन पटनायक को 16,344 मतों से हराया। लक्ष्मण को 90,876 वोट मिले जबकि नवीन को 74,532 वोट मिले।

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