गगन नारंग की कलम से: निशानेबाजी में सफलता खिलाड़ियों के समर्थन का परिणाम
सफलता से ज्यादा शोर किसी चीज का नहीं होता। पेरिस ओलंपिक में भारतीय निशानेबाजी दल के शानदार प्रदर्शन ने यह एक बार फिर से साबित कर दिया है। खेल में यह भी एक बार फिर से साबित हो गया कि कि समय बदलने में देर नहीं लगती। जो भारतीय दल 2021 में टोक्यो ओलंपिक से खाली हाथ लौटा था उसने न सिर्फ पेरिस में पदक का खाता खोला।
सफलता से ज्यादा शोर किसी चीज का नहीं होता। पेरिस ओलंपिक में भारतीय निशानेबाजी दल के शानदार प्रदर्शन ने यह एक बार फिर से साबित कर दिया है। खेल में यह भी एक बार फिर से साबित हो गया कि कि समय बदलने में देर नहीं लगती। जो भारतीय दल 2021 में टोक्यो ओलंपिक से खाली हाथ लौटा था, उसने न सिर्फ पेरिस में पदक का खाता खोला, बल्कि मनु भाकर और सरबजोत ने इतिहास भी रच दिया। मैं निजी तौर पर बहुत खुश हूं क्योंकि 12 साल पहले जिस तारीख को लंदन ओलंपिक में मैंने पदक जीता था, ठीक उसी तारीख को मनु और सरबजोत ने पदक जीता।
हालांकि यहां पर अर्जुन बबूता का जिक्र न करना गलत होगा। वह बहुत ही कम अंतर से पदक जीतने से चूक गए। उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखाया, लेकिन जैसा कि उन्होंने कहा शायद वो उनका दिन नहीं था। तो इस ओलंपिक में आखिर क्या बदला गया है। दो चीजें ऐसी हैं, जो तुरंत मेरे दिमाग में आती हैं, पहला युवा निशानेबाजों का आत्मविश्वास। खेल गांव में मैंने मैच से पहले भारतीय निशानेबाजी दल से शेफ डि मिशन नहीं बल्कि एक एथलीट के रूप में मुलाकात की। युवा निशानेबाजों के गजब आत्मविश्वास ने मेरा दिल जीत लिया।
सीनियर होने के नाते मैंने उन्हें एक ही सलाह दी है कि वर्तमान में जो रहा है, उसी पर फोकस करो। यह सच है कि आजकल एथलीट के सामने ट्रेनिंग के लिए फंड की बहुत ज्यादा चिंता नहीं होती। सच तो यह है कि 21 सदस्यीय दल में से 10 वर्ष 2018-19 से ही खेलो इंडिया एथलीट हिस्सा है, इन्हें ग्रास रूट स्तर से ही टाप्स के जरिए एलीट सपोर्ट मिल रहा है। यही नहीं अन्य 11 खिलाडि़यों को भी टाप्स ने सपोर्ट किया है। यह एथलीट के लिए बड़ी राहत की बात होती है और इससे उन्हें अपने खेल पर 100 प्रतिशत फोकस करने का आत्मविश्वास मिलता है।
इसके साथ ही देश की ओर से भी जबरदस्त प्रेरणा मिल रही है, माननीय प्रधानमंत्री खिलाड़ियों तक यह संदेश दे रहे हैं कि वे जो भी कर रहे हैं, वह देश के लिए काफी मायने रखता है। दूसरा बड़ा बदलाव जो मुझे दिख रहा है, वह है कि सभी हितधारक आपसी संयोजन से सुनिश्चित कर रहे हैं कि एथलीट जो भी मांगे, उसे मिलना चाहिए। चाहे ओलंपिक से पहले या ओलंपिक के दौरान निजी कोच, विदेश में ट्रेनिंग करना हो या आधुनिक उपकरण हों, पेरिस के लिए यह सब उपलब्ध कराया गया।
यह सिर्फ निशानेबाजी में ही नहीं, बल्कि सभी खेलों में यह प्रक्रिया लागू हुई है। ओलंपिक की शुरुआत में ही दो पदक जीतना अन्य खिलाड़ियों के लिए भी प्रेरणा देने वाला साबित होगा। मुझे यकीन है कि हमारे लिए ओलंपिक अब तक का सर्वश्रेष्ठ साबित होगा। (लेखक ओलंपिक कांस्य पदक विजेता और पेरिस में भारतीय दल के प्रमुख हैं)