मनु ने कहा कि मुश्किल समय में उन्होंने श्रीमद्भगवत गीता का सहारा लिया और अब उसी को अपने जीवन में आत्मसात करने की कोशिश करती हैं। मनु भाकर से अभिषेक त्रिपाठी ने विशेष बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश:
टोक्यो में निराशा और अब पेरिस में दो ओलंपिक पदक जीतना। इस उपलब्धि को आप कैसे देखती हैं। इन तीन वर्षों के दौरान नीचे से ऊपर उठाना कितना चुनौतीपूर्ण रहा?
मेरे लिए यह सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा, लेकिन मैंने हौसला रखा। मैं तो यही कहूंगी जो उस समय मुझे अपने परिवार का साथ मिला, उसकी बहुत अहम भूमिका रही। इस दौरान काफी उतार चढ़ाव आए, कई प्रतियोगिताएं हारे और कई जीते, लेकिन अंदरूनी खुशी नहीं थी। यह 2023 से बदलना शुरू हुआ।
मैंने फिर से जसपाल राणा सर के साथ वापस काम करना शुरू किया। उनसे मुझे काफी मदद मिली और हमारा तालमेल काफी अच्छा हो गया। तब लगा हां मैं काफी अच्छा कर रही हूं। हमेशा ही हर सफर इतना आसान नहीं होता है, लेकिन आपको हौसला बनाए रखना चाहिए और बस मेहनत करते जाना चाहिए।
आपने पहला पदक जीतने के बाद श्रीमद्भगवत गीता का उल्लेख किया था। गाय को चारा खिलाते आपके कई वीडियो हमने देखे। आपकी मां ने कहा कि जब मनु आएंगी तो उसे आलू का पराठा खिलाऊंगी। ये जीवन जीना कितना अच्छा लगता है?
ये सब तो मुझे बचपन से मेरे माता-पिता ने सिखाया है। बड़ों के पैर छूना, गाय को चारा खिलाना। गांव में हमारे पास गाय और भैंस थीं। जब हम गांव से शिफ्ट हुए, उसके बाद भी मम्मी हमें इन चीजों में सक्रिय रखती थीं। इसमें मेरी मां की काफी अहम भूमिका रही है। जितना आत्मविश्वास मुझे मिला है और मैं यहां तक पहुंची हूं, इसका श्रेय मैं अपनी मां को दूंगी। उनका मार्गदर्शन हमेशा रहा है।
श्रीमद्भगवत गीता तो बचपन से जानती थी, लेकिन पिछले दो तीन साल से ज्यादा जुड़ाव रहा। पढ़ना भी अभी शुरू किया। मेरे कोच, मम्मी और मेरे आध्यात्मिक गुरु मुझे रोजाना एक-दो श्लोक सिखाते हैं। मैं कोशिश करती हूं कि इन्हें अपने जीवन में आत्मसात करूं। जितना हो सके उतना सीखूं। ये चीजें काफी मदद करती हैं साथ ही आपको जमीन से जोड़े रखती हैं। गांव की संस्कृति हमेशा से अच्छी रही है। गांव के बच्चों में काफी प्रतिभा होती है। वे काफी मेहनती होते हैं।
10 मीटर एयर पिस्टल में 10 प्वाइंटर मारना ही बहुत बड़ी बात होती है। आप इसके बारे में थोड़ा बताइए ये इतना कठिन क्यों होता है?
मुझे लगता है कि जिस चीज में आप मेहनत करते हो, उसका अभ्यास करते हो तो वो चीज आपको आसान लगने लगती है। मैं तो काफी लंबे समय से निशानेबाजी कर रही हूं। मेरा तो काम ही यही है, उसमें ज्यादा से ज्यादा मेहनत करती जाऊं। जितना हो सके अपने आप को स्थिर रख सकूं। निशानेबाजी बेहतर करूं।
अब बहुत सारे बच्चे निशानेबाजी को करियर के रूप में अपना रहे हैं। इसमें ध्यान की सबसे बड़ा रोल होता है। थोड़ी चुनौती आती है इसके लिए आप ध्यान लगाने में पारंगत होने चाहिए। फोकस अच्छा होना चाहिए। एक मैच करीब डेढ़ घंटे का होता है और उस पूरे समय आपको बिल्कुल फोकस रहना होता है। मानसिक रूप से मजबूत होने के साथ ही आपको शारीरिक रूप से भी फिट होना होता है। चोटमुक्त रहना होता है।
इतनी कम उम्र में रोल मॉडल बनकर कैसा लग रहा है?
मुझे बहुत खुशी है कि अगर मैं लोगों को थोड़ा बहुत भी प्रेरित कर पाई। अच्छा लगता है जब लोग आपकी सराहना करते हैं। इससे हमें भी आगे अच्छा करने, मेहनत करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। मैं तो यही कहूंगी कि अगर मुझे देखकर कोई एक व्यक्ति भी आने वाले समय में देश के लिए पदक जीतता है तो ये मेरे लिए सम्मान की बात होगी।
देखने में निशानेबाजी अन्य खेलों की तरह बहुत थकाने वाला खेल नहीं प्रतीत होता है। हालांकि, एक पिस्टल को लंबे समय तक एक हाथ में उठाए रखना और जैसा हमने देखा था 25 मीटर रैपिड स्पर्धा में लगातार आपने 40 शॉ लगाए। ऐसे में एक निशानेबाज में फिटनेस कितनी महत्वपूर्ण है?
जो भी लोग कहते हैं कि निशानेबाजी इतना मुश्किल नहीं है, मैं तो उनको कहती हूं कि आप आइए और शुरू करिए। हर खेल की अपनी-अपनी चुनौतियां होती हैं। जैसे निशानेबाजी में सोल्डर इंजरी होने या पैर के निचले हिस्से में खून रुक जाने जैसी दिक्कतें होती हैं। कोहनी, कमर के निचले हिस्से में काफी समस्या होती है। ऐसे में खुद को फिट रखना भी एक बड़ी चुनौती होती है। इसके लिए हमारे पास पूरी टीम रहती है। हम कोशिश करते हैं कि खुद को चोट मुक्त रखें और फिट रखें।
कई ऐसी चीजें भी होंगी, जो आपको पसंद होंगी और जिन्हें आपको त्यागना पड़ा होगा?
अब तो आदत पड़ गई है। शुरुआत में लगता था कि स्कूल और कॉलेज लाइफ नहीं है। हम बाहर नहीं जा पाते थे। लोग एक दूसरे के घर में टीवी देखने जाते थे, लेकिन हमें उसकी भी इजाजत नहीं थी। मीठा और जंक फूड खाने से परहेज करना पड़ता था। शुरुआत में ये थोड़ा मुश्किल लगता था, लेकिन अब तो आदत हो चुकी है। अब जो लाइफस्टाइल बन चुका है, उसे ही जीने में आनंद आता है।
दूसरे बच्चों की तरह शादी में जाना, खेलना, फिल्में देखना, घूमने जाना, आप ये करती थीं या इसकी बिल्कुल मनाही थी?
सच कहूं तो शादी ब्याह में जाना तो मुझे कभी भी पसंद नहीं था। हां, भाई के साथ मेले में कभी-कभी चले जाते थे। मेले में जाने में बहुत मजा आता था। कभी दोस्तों के साथ चले जाते थे, लेकिन ज्यादा इन चीजों का शौक नहीं रहा है कभी। एक एथलीट की जिंदगी आम बच्चे की तरह नहीं होती। काफी चीजें त्यागनी पड़ती हैं क्योंकि ट्रेनिंग में बहुत समय लगता है।
टोक्यो में खराब प्रदर्शन के बाद कोच जसपाल राणा और आपके संबंध में कुछ खटास आई थी लेकिन इस बार आप दोनों की ट्यूनिंग शानदार थी। मैंने सुना है कि प्रतियोगिता के दौरान जहां से आप शॉट लेती थीं वह ऐसी जगह बैठते थे कि हर शॉट के बाद आप दोनों आंखों में ही संवाद हो सके?
टोक्यो के समय कुछ चीजों को लेकर गलतफहमी हो गई थी। उस समय किसी न किसी तरीके से चूक रही थीं, फिर हमने कोशिश की जो तब हुआ वो कभी न हो। दोनों की ओर से ही यह समझ थी कि वापस से तालमेल बिठाएंगे और देश के लिए अच्छा करेंगे।
आप आज देश की लाखों बेटियों की प्रेरणा हैं। क्या कोई विशेष संदेश आप देना चाहती हैं सभी के लिए जो जीवन में ऐसे ही किसी असफलता के कारण अंधकार में हैं?
पहले तो सभी माता-पिता को कहना चाहूंगी कि आप अपनी बेटियों को आजादी दो, उनका समर्थन करो। उनका करियर कैसा भी हो, हमेशा ही उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए। आप ही उनकी ताकत हो और आपको ही उन्हें आगे बढ़ाना है। बाकी मैं लड़कियों को यही कहना चाहूंगी कि आपने जो सपने देखे हैं, उन्हें पूरा किया जा सकता है। आपको ये देखना होगा कि क्या किया जाए जिससे आपका सपना पूरा हो और दिलो जान से उसमें जुट जाना चाहिए। मन लगाकर मेहनत करो और आगे बढ़ते जाओ। कभी भी हार मत मानो और आपका सपना जरूर पूरा होगा।
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आजकल के बच्चों को इंटरनेट मीडिया का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए और आप खुद कैसे करते हो?
प्रतियोगिता के दौरान मैं इसका बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करती हूं। उस समय तो पूरा ध्यान प्रतियोगिता पर होता है, लेकिन कभी-कभी देख लेते हैं। ज्यादातर समय तो ट्रेनिंग में व्यस्त रहते हैं इसलिए समय ही नहीं मिल पाता है।
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