Move to Jagran APP

ऐसी रही है Olympics Games में भारत की दास्तां, उतार-चढ़ाव भरा सफर, गम और खुशी के आंसुओं ने दी ऐतिहासिक यादें, जानिए पूरी कहानी

फ्रांस की राजधानी पेरिस में इसी महीने की 26 तारीख से खेलों के महाकुंभ की शुरुआत हो रही है जिसमें पूरी दुनिया के एक से बढ़कर एक खिलाड़ी हिस्सा लेंगे। भारत से उम्मीद होगी कि वह इस बार पिछले टोक्यो ओलंपिक खेलों से अच्छा प्रदर्शन करेगा और सात से ज्यादा पदक अपने नाम करेगा। हम आपको बता रहे हैं ओलंपिक खेलों में अभी तक का भारत का इतिहास

By Abhishek Upadhyay Edited By: Abhishek Upadhyay Updated: Mon, 01 Jul 2024 06:19 PM (IST)
Hero Image
पेरिस ओलंपिक में भारत से दमदार प्रदर्शन की उम्मीद है
 स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। क्रिकेट का बुखार अब कुछ दिन शांत रहेगा। टीम इंडिया ने वेस्टइंडीज और अमेरिका की संयुक्त मेजबानी में खेले गए टी20 वर्ल्ड कप-2024 का खिताब अपने नाम कर लिया है। पूरा देश इसमें टीम के साथ था। इस वर्ल्ड कप के बाद अब पूरे देश की नजरें खेलों के महाकुंभ पर टिकी हैं। यानी ओलंपिक खेल। इसी महीने की 26 जुलाई से फ्रांस की राजधानी में शुरू हो रहे ओलंपिक खेलों पर पूरी दुनिया की नजरें होंगी। तकरीबन 15 दिनों तक चलने वाले इन खेलों में भारत की कोशिश अपना बेस्ट देने की होगी।

पिछली बार जापान का राजधानी टोक्यो में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था। इन खेलों में भारत ने अपना बेस्ट दिया था और सात पदक अपने नाम किए थे जिसमें नीरज चोपड़ा द्वारा जैवलिन थ्रो में जीता गया ऐतिहासिक गोल्ड मेडल भी था। इससे पहले भारत ने व्यक्तिगत रूप से एक ही ओलंपिक गोल्ड जीता था जबिक एथलेटिक्स में ये भारत का पहला गोल्ड मेडल था। खेलों के महाकुंभ में कैसा रहा है भारत का इतिहास बताते हैं आपको।

यह भी पढ़ें- IND W vs SA W Test: Shafali Verma ने की अपने गुरु की बराबरी, साउथ अफ्रीका के खिलाफ हासिल किया बड़ा कीर्तिमान

1900 पेरिस ओलंपिक

भारत ने साल 1900 में पहली बार ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। तब भारत आजाद नहीं था इसलिए ब्रिटिश इंडिया की तरफ से हिस्सेदारी की गई थी। इन खेलों में भारत के इकलौते खिलाड़ी थे नॉर्मन प्रिटचार्ड। नॉर्मन ने इन खेलों में दो पदक अपने नाम किए थे। उन्होंने 200 मीटर स्प्रिंट और 200 मीटर हर्डल यानी बाधा दौड़ में सिल्वर मेडल जीते थे।

1920 एंटवर्प ओलंपिक

इसके बाद भारत ने साल 1920 में खेले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। ये खेल बेल्जियम की राजधानी एंटवर्प में खेले गए थे। इन खेलों में भारत ने अपने पांच खिलाड़ी उतारे थे जिसमें से तीन खिलाड़ी एथलेटिक्स में हिस्सा लेने गए थे और दो कुश्ती में। भारत के लिए बुरी खबर ये रही थी कि इनमें से कोई भी पदक नहीं जीत सका था।

पेरिस ओलंपिक-1924

पेरिस में एक बार फिर ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था। साल 1924 में हुए इन खेलों में भारत ने टेनिस में अपना डेब्यू किया था। भारत ने पांच खिलाड़ी उतारे थे जिनमें से चार पुरुष और एक महिला थी। यहां भी भारत को सफलता हाथ नहीं लगी थी।

एम्सटर्डम ओलंपिक-1928

एम्सटर्डम ओलंपिक से भारत को वो सफर शुरू हुआ था जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। मेजर ध्यानचंद की कप्तानी वाली हॉकी टीम ने दुनिया में अपना सिक्का जमाया था और इन खेलों में गोल्ड मेडल जीता था। हॉकी के अलावा भारत ने इन खेलों में एथलेटिक्स में भी हिस्सा लिया था, लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई थी।

लॉस एजेल्स ओलंपिक-1932

भारतीय हॉकी टीम ने अपनी सफलता जारी रखी थी और चार साल बाद लॉस एंजेल्स में गोल्ड मेडल जीत बताया था कि इस खेल में उसका कोई सानी नहीं है। पूरी दुनिया टीम इंडिया के खेल से हैरान थी। एथलेटिक्स में भारत के पांच खिलाड़ी इन खेलों में उतरे थे, लेकिन सफलता किसी के भी हिस्से नहीं आई थी।

बर्लिन ओलंपिक-1936

जर्मनी की राजधानी बर्लिन में साल 1936 में ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था। हर बार की तरह इस बार भी भारत ने इन खेलों में हॉकी और एथलेटिक्स में हिस्सा लिया था। एथलेटिक्स में उतरे तीन भारतीय खिलाड़ियों में से एक भी पदक नहीं जीत सका था, लेकिन हॉकी में कमाल हो गया था। मेजर ध्यानचंद का जादू गजब चला था और भारत ने गोल्ड मेडल की हैट्रिक लगाई थी। ये वही ओलंपिक है जहां हिटलर ने ध्यानचंद की जमकर तारीफ की थी।

विश्व युद्ध ने रोका सफर

दूसरे विश्व युद्ध के कारण ओलंपिक खेलों का आयोजन नहीं हो सका था। 1940 और 1944 में युद्ध के कारण दुनिया भर में मातम से माहौल था और इसलिए खेलों को स्थागित कर दिय गया था। इस बीच साल 1947 में भारत को आजादी मिल गई थी। यानी अगले ओलंपिक खेलों में भारत का स्वतंत्र देश के तौर पर हिस्सा लेना तय था।

लंदन ओलंपिक-1948

इन खेलों में भारत ने अभी तक का अपना सबसे बड़ा दल भेजा था। भारत ने कुल 86 खिलाड़ी इन खेलों में भेजे थे। एक बार फिर उम्मीदें हॉकी से थीं। इस बार हालांकि मेजर ध्यानचंद नहीं थे। लेकिन बलबीर सिंह सीनियर की कप्तानी वाली भारतीय हॉकी टीम ने अपना जलवा जारी रखा और भारत हॉकी में चौथा गोल्ड मेडल लेकर लौटा।

भारत ने हॉकी के अलावा एथलेटिक्स, बॉक्सिंग, साइकिलिंग, फुटबॉल, स्वीमिंग, वॉटर पोलो, वेटलिफ्टिंग और कुश्ती में हिस्सा लिया था। लेकिन इनमें से किसी में भी भारत मेडल नहीं जीत सका था। भारतीय फुटबॉल टीम ने हालांकि अपने खेल से काफी प्रभावित किया था। ये टीम फ्रांस से काफी करीब आकर हारी थी।

हेलिंस्की ओलंपिक-1952

फिनलैंड की राजधानी हेलिंस्की में साल 1952 में अगले ओलंपिक खेलों का आयोजन किया गया था। भारत ने 64 खिलाड़ियों को इन खेलों में भेजा था जिसमें से 60 पुरुष और चार महिलाएं थीं। भारत ने 11 खेलों में हिस्सा लिया था जिसमें दो में पदक अपने नाम किए थे। हॉकी में फिर भारत को सफलता मिली थी और टीम गोल्ड मेडल जीतकर लौटी थी। इसके अलावा भारत ने कुश्ती में पदक जीता था। ये आजाद भारत का व्यक्तिगत स्पर्धा में पहले पदक था। उसे ये पदक दिलाया था केडी जाधव ने। केडी ने अपने नाम ब्रॉन्ज मेडल किया था।

इन खेलों में निलिमा घोष आजाद भारत की पहली महिला बनी थीं जिसने ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। वह उस समय 17 साल की थीं और उन्होंने एथलेटिक्स में 100 मीटर स्प्रिंट, 80 मीटर हर्डल रेस में हिस्सा लिया था।

मेलबर्न ओलंपिक-1956

ऑस्ट्रेलिया में पहली बार ओलंपिक खेलों का आयोजन किया जा रहा था। साल था 1956। भारत ने इस बार 59 खिलाड़ियों को मेलबर्न भेजा था। इनमें से 58 पुरुष और एक महिला खिलाड़ी थी। कुल आठ खेलों में भारत ने हिस्सेदारी की थी। उस समय भारतीय फुटबॉल का स्वर्णिम दौर चल रहा था। टीम ने ओलंपिक खेलों में भी शानदार खेल दिखाया था, लेकिन महज एक कदम से पदक से चूक गई थी। भारत ने हॉकी में फिर पदक अपने नाम किया था और दूसरी बार गोल्ड मेडल की हैट्रिक पूरी की थी।

भारत ने हॉकी, फुटबॉल, निशानेबाजी, स्वीमिंग, वेटलिफ्टिंग, एथलेटिक्स और जिम्नास्टिक में हिस्सा लिया था लेकिन हॉकी के अलावा किसी भी खेल में पदक नहीं जीते थे।

रोम ओलंपिक-1960

इटली की राजधानी में खेले गए ओलंपिक खेलों में भारतीय हॉकी का विजयी रथ रुक गया था। आजादी के बाद भारत से अलग हुए पाकिस्तान ने उसे लगातार सातवां गोल्ड मेडल जीतने नहीं दिया था। भारत को फाइनल में हार मिली थी और उसे रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। इन्हीं खेलों में भारत के मिल्खा सिंह 400 मीटर में पदक जीतने से काफी करीब आकर चूक गए थे। वह चौथे स्थान पर रहे थे।

एथलेटिक्स, फुटबॉल, हॉकी, निशानेबाजी, वेटलिफ्टिंग, कुश्ती में भारत ने कुल 45 खिलाड़ी उतारे थे। इनमें से सिर्फ हॉकी में ही पदक आया था।

टोक्यो ओलंपिक-1964

जापान की राजधानी में भारतीय हॉकी ने फिर अपनी बादशाहत दिखाई थी और गोल्ड मेडल जीता था। हॉकी के अलावा भारत ने एथलेटिक्स, साइकिलिंग, डाइविंग, जिम्नास्टिक, शूटिंग, वेटलिफ्टिंग, कुश्ती में हिस्सा लिया था।

मेक्सिको ओलंपिक-1968

मेक्सिको ओलंपिक में भारतीय हॉकी के लिए बहुत बुरी खबर आई थी। भारतीय हॉकी टीम पहली बार टॉप-2 में नहीं रह सकी थी और उसे ब्रॉन्ज मेडल से संतोष करना पड़ा था। हॉकी के अलावा भारत ने एथलेटिक्स, वेटलिफ्टिंग, शूटिंग, कुश्ती में हिस्सा लिया था लेकिन पदक नहीं जीत सका था।

म्यूनिख ओलंपिक-1972

भारतीय हॉकी टीम म्यूनिख में साल 1972 में खेले गए ओलंपिक खेलों में भी तीसरे स्थान पर रही थी और ब्रॉन्ज मेडल ही जीत पाई थी। मुक्केबाजी, निशानेबाजी, सेलिंग, वेटलिफ्टिंग, कुश्ती में भारत ने हिस्सा लिया लेकिन फिर पदक से महरूम रहा।

मोंटरियल ओलंपिक-1976

मोंटरियल ओलंपिक वो ओलंपिक थे जहां पहली बार भारतीय हॉकी टीम पदक नहीं जीत सकी थी। इन खेलों में भारत को सांतवां स्थान मिला था। 1928 के बाद से ये पहली बार था जब भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में पदक नहीं जीता था। हॉकी के अलावा भारत ने मुक्केबाजी, निशानेबाजी, वेटलिफ्टिंग में हिस्सा लिया था लेकिन पदक नहीं जीत सका था। इन खेलों में पहली बार भारत खाली हाथ रहा था।

मास्को ओलंपिक-1980

मास्को ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने अपनी खोई हुई बादशाहत वापस हासिल की थी। इन खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने फिर गोल्ड मेडल जीता था। लेकिन बास्केटबॉल, मुक्केबाजी, इक्वेस्टेरियन, निशानेबाजी, वेटलिफ्टिंग, कुश्ती में भारत को पदक नहीं मिले थे।

लॉस एजेल्स ओलंपिक-1984

लॉस एजेंल्स में खेले गए अगले ओलंपिक खेल भारत के लिए निराशाजनक रहे। इस बार भी भारत को एक भी पदक नहीं मिला। एथलेटिक्स, मुक्केबाजी, निशानेबाजी, सेलिंग, वेटलिफ्टिंग, कुश्ती और हॉकी में भारत ने हिस्सा लिया लेकिन पदक के मामले में निल बट्टे सन्नाटा रहा।

1988 और 1992 में भी मिली निराशा

भारत को फिर 1988 में खेले गए सियोल ओलंपिक और बार्सिलोना में साल 1992 में खेले गए ओलंपिक खेलों में निराशा मिली। इन खेलों में भारत के हिस्से एक भी पदक नहीं आया।

लिएंडर पेस ने दिलाया पदक

साल 1996 में भारत का पदक का सूखा खत्म हो गया। एटलांटा में खेले गए इन खेलों में टेनिस स्टार लिएंडर पेस ने भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया। ये भारत का ओलंपिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में दूसरा पदक था। हॉकी टीम ने हालांकि फिर निराश किया और पदक नहीं जीत सकी। पेस ने जो सिलसिला शुरू किया वो अभी तक जारी है।

मल्लेश्वरी ने दिलाया पदक

साल 2000 में ओलंपिक खेल वापस सिडनी लौटे। भारत ने वेटलिफ्टिंग में अपना पहला पदक जीता। महिला वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया और इसी के साथ वह ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनीं। बैडमिंटन, मुक्केबाजी, इक्वेस्टेरियन, जूडो, रोइंग, निशानेबाजी, स्विमिंग, टेबल टेनिस, टेनिस, वेटलिफ्टिंग, कुश्ती में भारत को पदक नहीं मिले।

राज्यवर्धन ने किया बड़ा काम

चार साल बाद एथेंस में ओलंपिक मशाल पहुंची और ये खेल भी भारत के लिए यादगार रहे। भारत ने निशानेबाजी में अपना पहला पदक जीता। राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने मेंस डबल ट्रैप में रजत पदक जीता। ये भारत का ओलंपिक खेलों में पहला व्यक्तिगत सिल्वर मेडल था। महेश भूपति और पेस की जोड़ी टेनिस में मेंस डबल्स में पदक जीतने के करीब पहुंची लेकिन सफल नहीं हो सकी। वेटलिफ्टिंग में कुंजरानी देवी चौथे स्थान पर रहीं और पदक से चूक गईं।

चीन में बना इतिहास

बीजिंग में चार साल बाद ओलंपिक खेल हुए। ये भारत के लिए ऐतिहासिक रहे क्योंकि इन खेलों में भारत ने व्यक्तिगत स्पर्धा में अपना पहला गोल्ड मेडल जीता। भारत को ये पदक दिलाया निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने। बिंद्रा ने 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया। इन खेलों में भारत ने अपना बेस्ट दिया और तीन पदक जीते। सुशील कुमार ने कुश्ती में भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया। उनके अलावा विजेंदर सिंह ने भारत को मुक्केबाजी में पहला पदक दिलाया। विजेंदर ने भी ब्रॉन्ज मेडल जीता।

लंदन में भारतीय महिलाओं का दम

लंदन ओलंपिक में भारत ने और बेहतर खेल दिखाया और छह पदक अपने नाम किए। भारत को बैडमिंटन में अपना पहला पदक मिला। सायना नेहवाल ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम कर ये उपलब्धि हासिल की। वहीं मैरी कॉम ने महिला मुक्केबाजी में पदक जीता। कुश्ती में फिर सुशील कुमार ने अपनी धाक दिखाई। वह गोल्ड मेडल से चूक गए और सिल्वर जीतने में सफल रहे। इसी के साथ सुशील ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत स्पर्धा में दो पदक जीतने वाले भारत के पहले खिलाड़ी बने। कुश्ती में योगेश्वर दत्त ने भी ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया।

निशानेबाजी में भी भारत पीछे नहीं रहा। गगन नारंग और विजय कुमार ने इन खेलों में पदक जीते। दोनों के हिस्से ब्रॉन्ज मेडल ही आए। ये भारत का 2016 तक ओलंपिक में बेस्ट प्रदर्शन रहा।

रियो में फिर महिलाओं का जलवा

लंदन ओलिंपिक में भारत ने जो खेल दिखाया था उसके बाद उम्मीद थी कि ब्राजील के रियो में खेले जाने वाले अगले ओलंपिक में भारत और बेहतर करेगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भारत को इन खेलों में दो ही पदक मिले और ये दो पदक दिलाए महिला खिलाड़ियों ने। पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में सिल्वर मेडल जीता और साक्षी मलिक ने कुश्ती में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। साक्षी का मेडल कुश्ती में ओलंपिक खेलों में किसी भारतीय महिला द्वारा जीता गया पहला मेडल था।

टोक्यो में दिखाया दम

भारत ने रियो ओलंपिक की कसर टोक्यो ओलंपिक में पूरी की। ये खेल 2020 में होने थे लेकिन कोविड महामारी के कारण इन खेलों को स्थगित कर दिया गया और इसी कारण ये खेल 2021 में खेले गए। इन खेलों में भारत ने सात पदक जीते जो उसका ओलंपिक खेलों में अभी तक का बेस्ट प्रदर्शन है। इन खेलों में भारत को मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता। भारतीय हॉकी टीम ने चार दशक से चले आ रहे अपने पदक के सूखे को खत्म किया और ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया।

महिला हॉकी टीम भी पदक जीतने के करीब पहुंची थी, लेकिन ब्रॉन्ज मेडल मैच में हार गई। कुश्ती में और मुक्केबाजी में जिनसे उम्मीद थी उन्होंने निराश किया लेकिन नए खिलाड़ियों ने भारत को पदक दिलाए। मुक्केबाजी में मैरी कॉम से पदक की उम्मीद थी लेकिन लवलीना बोरगोहेन ने ब्रॉन्ज मेडल जीता। बैडमिंटन में सिंधु ने ब्रॉन्ज मेडल जीता। कुश्ती में रवि दहिया ने भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। बजरंग पूनिया ने कुश्ती में भारत को ब्रॉन्ज मेडल जीता।

लेकिन सबसे बड़ा और ऐतिहासक पदक दिलाया भालाफेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने। उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम किया।

यह भी पढ़ें- IND W vs SA W: भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने एकमात्र टेस्‍ट में दक्षिण अफ्रीका को रौंदा, 10 विकेट से दर्ज की यादगार जीत