स्टेडियम के बाहर पिता बेच रहे थे लंगोट, बेटी ने जीत लिया गोल्ड मेडल, पढ़े इस खिलाड़ी की कहानी
सूरज कहते हैं कि यह पल मेरी जिंदगी का सबसे यादगार बन गया।
नई दिल्ली, राजीव शर्मा। मां लंगोट सिलती हैं और पिता दंगल में जाकर इन्हें पहलवानों को बेचते हैं तो बिटिया मैट पर पहलवानों को पटखनी देती है। इन तीनों की तिकड़ी कई वर्षो से इसी तरह से घर चला रही है। राष्ट्रीय स्तर पर 15 और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पांच पदक जीतने के बावजूद महिला पहलवान दिव्या सेन के परिवार की स्थिति नहीं बदली है। दिव्या पिछले दो साल से नौकरी के लिए रेलवे के अलावा दिल्ली सरकार के चक्कर काट चुकी हैं लेकिन आश्वासनों के सिवा कुछ नहीं मिला।
पिता सूरज कहते हैं कि पिछले दो साल से रेलवे के पास इसकी फाइल पड़ी हुई है लेकिन कुछ नहीं हुआ। थक कर पंद्रह दिन पहले मैंने कह दिया हमें नौकरी नहीं चाहिए। हालांकि रेलवे का कहना है कि हम अब भी उसे नौकरी देने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। उसकी फाइल नॉदर्न रेलवे को भेजी गई है। पिछले साल एक कार्यक्रम के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी नौकरी देने भरोसा दिया पर कुछ नहीं किया। इससे निराश होकर दिव्या ने इस साल दिल्ली छोड़ उत्तर प्रदेश से खेलना शुरू किया। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के पुरवालियन गांव के सूरज पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुर में किराये के मकान में तीन बच्चों और पत्नी के साथ रहते हैं।
अब योगी सरकार से उम्मीद : सूरज कहते हैं भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण के कहने पर दिव्या ने इसी साल दिल्ली छोड़ उत्तर प्रदेश से खेलना शुरू किया है। प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने खिलाड़ियों के लिए बहुत सी घोषणाएं की हैं। उम्मीद है कि वे अपने प्रदेश की बिटिया को और धक्के नहीं खाने देंगे।
छह बार की भरत केसरी दिव्या ने पहली बार में ही सीनियर राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप में खेलते हुए प्रदेश की झोली में स्वर्ण पदक डाल दिया। दिव्या ने जब इंदौर में शनिवार को पीला तमगा जीता उस समय भी सूरज बाहर लंगोट बेच रहे थे। दिव्या ने जीत के तुरंत बाद बाहर आकर पदक पिता के गले में डाल दिया। सूरज कहते हैं कि यह पल मेरी जिंदगी का सबसे यादगार बन गया। घर का खर्च मेरे लंगोट बेचने से नहीं बिटिया की कमाई से चल रहा है।
विश्व चैंपियनशिप के बाद लक्ष्य कॉमनवेल्थ पर : पोलैंड में खेली मंगलवार से खेली जाने वाली अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप के लिए रवाना होने से पहले दिव्या ने कहा कि मैं खाली हाथ नहीं आऊंगी। मुझे पता है कि मुकाबला कड़ा होगा। राष्ट्रीय चैंपियनशिप के दौरान दिव्या की गर्दन में चोट लगी थी पर वह कहती हैं यह अब पूरी तरह से ठीक है। एशियन चैंपियनशिप की रजत पदक विजेता दिव्या ने कहा कि मेरा अगला लक्ष्य अगले साल होने वाले कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स पर है। मैं इसके लिए कड़ी मेहनत करूंगी।