छोटे से गांव से निकले इस खिलाड़ी ने भारत को दिलाया था पहला ओलंपिक मेडल
KD Jadhav Birth Anniversary महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्मे केडी जाधव ने भारत को ओलंपिक खेलों में पहला व्यक्तिगत मेडल दिलाया था। आज इस महान एथलीट का जन्मदिन है लेकिन ये नाम पहलवानों के लिए किसी भगवान से कम नहीं है।
By Vikash GaurEdited By: Updated: Fri, 15 Jan 2021 02:38 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। 21वीं सदी में गांव के लोग भी देश-दुनिया में अपनी छाप छोड़ने में सफल हो रहे हैं, लेकिन बात जब आज से करीब 60-70 साल पहले की हो तो फिर गांव के लोग गांव और कस्बों तक ही सिमट कर रहे जाते थे। गांव के लोगों को सिर्फ दो जून की रोटी से मतलब हुआ करता था, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी रहे हैं, जिनको खुद का नहीं, बल्कि देश का नाम भी रोशन करना था और दुनिया को दिखाना था कि भारत की मिट्टी से भी शेर पैदा होते हैं।
अगर किसी गांव के शख्स के अंदर कोई प्रतिभा छिपी होती तो वो छिपी की छिपी ही रह जाती थी, लेकिन कुछ लोग होते हैं जिनके अंदर ऐसी जुनून की आग होती है जो उन्हें सोने नहीं देती है। ऐसा ही एक नाम भारतीय इतिहास में खशाबा दादासाहेब जाधव का रहा है, जिन्हें हम लोग केडी जाधव के नाम से जानते हैं। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव गोलेश्वर में जन्मे केडी जाधव ने अपनी कुश्ती के दांव-पेच से भारत को पहला व्यक्तिगत ओलंपिक मेडल दिलाया था।
केडी जाधव को पॉकेट डायनमो भी कहा जाता था, क्योंकि उनकी हाइट ज्यादा नहीं थी, लेकिन उनको बचपन से ही कुश्ती का शौक था। यही वजह रही कि उन्होंने रेसलिंग की दुनिया में नाम कमाया। अपना ही नहीं, बल्कि भारत का नाम भी कुश्ती के मामले में दुनिया के मानचित्र पर रोशन किया था। केडी जाधव का सपना था कि वो देश के लिए ओलंपिक में मेडल जीतें, लेकिन पहली बार में ये संभव नहीं हुआ था।
हालांकि, हिम्मत और मेहनत के बूते उन्होंने अगले ही ओलंपिक में भारत को पदक दिलाकर ही दम लिया था। केडी जाधव ने फ्री रेसलिंग में साल 1948 में लंदन ओलंपिक में भाग लेने का मन बनाया, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे। ऐसे में कोल्हापुर के महाराजा ने केडी जाधव की मदद की और उन्हें लंदन भेजा। हालांकि, उन खेलों में वे देश को पदक नहीं दिला सके थे। केडी जाधव निराशा होकर लंदन ओलंपिक से खाली हाथ लौट आए थे।
हिम्मत नहीं हारी
केडी जाधव लंदन ओलंपिक खेलों में भले ही पदक तक नहीं पहुंच सके थे, लेकिन चार साल तक अभ्यास करने के बाद 1952 में फिनलैंड की धरती पर हुए हेलसिंकी ओलंपिक में उन्होंने इतिहास रच दिया था। फिनलैंड जाने के लिए पैसे इस बार भी नहीं थे। ऐसे में राज्य सरकार से थोड़ी बहुत सहायता मिली, लेकिन राज्य सरकार से मिली 4 हजार रुपये की आर्थिक मदद कम थी। ऐसे में उन्होंने परिवार से सलाह-मशविरा करने के बाद अपना आशियाना यानी घर गिरवी रख दिया था।
केडी जाधव ने देश के लिए अपना घर भी गिरवी रख दिया था और गोल्ड मेडल का सपना लिए फिनलैंड गए, जहां उन्होंने गोल्ड लिए दांव जरूर लगाया, लेकिन ब्रॉन्ज मेडल से ही संतोष करना पड़ा। हालांकि, उन्होंने इतिहास रच दिया था। बताया जाता है कि केडी जाधव गोल्ड मेडल भी देश के लिए ओलंपिक खेलों में जीत भी सकते थे, लेकिन वहां पर मैट सर्फेस था, जिसके वे आदी नहीं थे। 50 साल से ज्यादा समय तक कोई व्यक्तिगत मेडल भारत को नहीं मिला था।
बताया जाता है कि भारत लौटने के बाद केडी जाधव का जोरदार स्वागत किया गया था, क्योंकि उन्होंने देश का नाम दुनिया में रोशन किया था। केडी जाधव के पुत्र रंजीत जाधव ने एक बार दूरदर्शन न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था कि दादा साहेब का स्वागत 101 बैलगाड़ियों की जोड़ियों से किया गया था और भारत आते ही उन्होंने सबसे पहले अपने गिरवी रखे घर को छुड़ाया था, जिसमें सरकार ने भी उनकी मदद की थी। इसके बाद उनको मुंबई पुलिस में नौकरी भी मिली।