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Milkha Singh: आंखों के सामने उजड़ा परिवार, पिता के मुंह से निकले आखिरी लफ्ज़ों ने बदली 'फ्लाइंग सिख' की दुनिया

Milkha Singh 2 साल पहले 18 जून को मिल्खा सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। उनके निधन के बाद पूरा देश गम में डूब गया था। ऐसे में उनकी पुण्यतिथि के दिन जानते है उनके जीवन के उन किस्सों को जिसने मिल्खा सिंह को बना दिया फ्लाइंग सिख।

By Priyanka JoshiEdited By: Priyanka JoshiUpdated: Sun, 18 Jun 2023 08:00 AM (IST)
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Milkha Singh Death Anniversary: आज के ही दिन 2021 में मिल्खा सिंह ने दुनिया को कहा था अलविदा
नई दिल्ली, स्पोर्ट्स डेस्क। भाग मिल्खा भाग... साल 1947 में एक पिता के मुंह से निकले वो आखिरी लफ्ज़ जिसे जहन में रखकर बेटे ने न सिर्फ परिवार, बल्कि तिरंगे की शान बढ़ाई। अपनी आंखों के सामने मां-बाप और भाई-बहनों को मरते देख भला किसका कलेजा नहीं फटेगा, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और दुनियाभर में वो कारनामा कर दिखाया जिसे बच्चे से लेकर बड़े तक हर कोई जिंदगी-भर याद रखेगा।

हम बात कर रहे है भारत के इतिहास के महान धावक 'फ्लाइंग सिख' मिल्खा सिंह की, जिन्होंने एथलेटिक्स में दुनियाभर में भारत का परचम लहाराया। भले ही मिल्खा अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके रिकॉर्ड्स और किस्से हमेशा-हमेशा के लिए अमर हैं।

आज से ठीक 2 साल पहले 18 जून को मिल्खा सिंह ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। उनके निधन के बाद पूरा देश गम में डूब गया था। ऐसे में उनकी पुण्यतिथि के दिन जानते है उनके जीवन के उन किस्सों को जिसने मिल्खा सिंह को बना दिया फ्लाइंग सिख।

Milkha Singh Death Anniversary: आज के ही दिन 2021 में मिल्खा सिंह ने दुनिया को कहा था अलविदा

दरअसल, मिल्खा सिंह (Milkha Singh) का जन्म विभाजन से पहले 20 नवंबर, 1929 को पाकिस्तान में हुआ था। उनका गांव गोविंदपुरा मुजफ्फरगढ़ जिले में था। राजपूत परिवार से नाता रखने वाले मिल्खा सिंह की फैमिली में मां-बाप के अलावा कुल 12 भाई-बहन थे, लेकिन 1947 में बंटवारे के समय जो त्रासदी उन्होंने झेली वो बेहद ही खौफनाक थी।

उनकी आंखों के सामने पूरा परिवार त्रासदी का शिकार हो गया और इस दौरान उनके आठ-भाई बहन और माता पिता को उनके सामने ही मौत के घाट उतारा, लेकिन मरने से पहले उनके पिता के मुंह से निकले आखिरी लफ्ज़ ‘भाग मिल्खा भाग’ ने हकीकत में मिल्खा सिंह की जिंदगी बदल दी।

काफी संघर्ष भरी है मिल्खा सिंह के जीवन की कहानी

बता दें कि विभाजन के दौरान मिल्खा सिंह परिवार के बचे हुए 3 लोगों के साथ भागकर भारत पहुंचे तो वह दिल्ली के शरणार्थी शिविरों में छोटे-मोटे अपराध करके दिन गुजारा करते थे। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इसके बाद उन्होंने सेना में भर्ती होने की ठानी, लेकिन तीन बार कोशिश करने के बाद वो नाकाम रहे।

उनके लगन और उनके जज्बे को हर किसी ने सलाम ठोका जब वह एथलीट के रूप भारतीय सेना में शामिल हो गए। मिल्खा ने साल 1956, 1960 और 1964 में ओलंपिक खेलों में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करने के अलावा 1958 और 1960 में एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता है।

जब मिल्खा को मिला था फ्लाइंग सिख का टाइटल

मिल्खा की रफ्तार और हुनर को देखते हुआ उन्हें फ्लाइंग सिख का खिलाब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री फील्ड मार्शल अयूब खान ने दिया था। बता दें कि मिल्खा सिंह रोम ओलिंपिक में पदक जीतने से चूक गए थे। इस बारे में जब मिखा से बाद में पूछा गया था तो उन्होंने बताया था कि मेरी आदत थी कि मैं हर दौड़ में एक दफा पीछे मुड़कर देखता था।

रोम ओलिंपिक में मैं जीत के बेहद ही करीब था और मैंने जबरदस्त ढंग से शुरुआत की। हालांकि, मैंने एक दफा पीछे मुड़कर देखा और शायद यहीं मैं चूक गया। इस दौड़ में कांस्य पदक विजेता का समय 45.5 था और मैंने 45.6 सेकेंड में दौड़ पूरी की थी। बता दें कि आज उनके निधन के पूरे 2 साल बीत चुके है। 91 साल की उम्र में मिल्खा सिंह कोरोना संक्रमित होने के चलते जिंदगी का साथ छोड़कर चले गए।