नीरज चोपड़ा का कॉलम- पेरिस में खेल राष्ट्र के रूप में भारत की बढ़ती ताकत दिखी
Neeraj Chopra मैं स्टेड डी फ्रांस में राष्ट्रगान बजने का कारण बनना चाहता था लेकिन मुझे बेहद गर्व है कि मैंने तीन साल पहले टोक्यो में अपने स्वर्ण जीतने वाले प्रयास से बेहतर थ्रो के साथ रजत पदक जीता। हां अब समय आ गया है कि मैं अपनी टीम के साथ बैठकर यह तय करूं कि चोट से कैसे निपटा जाए।
मैं स्टेड डी फ्रांस में राष्ट्रगान बजने का कारण बनना चाहता था, लेकिन मुझे बेहद गर्व है कि मैंने तीन साल पहले टोक्यो में अपने स्वर्ण जीतने वाले प्रयास से बेहतर थ्रो के साथ रजत पदक जीता। हां, अब समय आ गया है कि मैं अपनी टीम के साथ बैठकर यह तय करूं कि चोट से कैसे निपटा जाए।
अपने बाकी प्रतिस्पर्धी सत्र में जाने से पहले, मैं अपने दूसरे लगातार ओलंपिक पदक से प्रेरित भावनाओं को महसूस करूंगा। मैं आप सभी से मिले अपार समर्थन के लिए आभारी हूं। माननीय प्रधानमंत्री ने मुझे और मेरे साथियों को जो प्रेरणा और शुभकामनाएं दीं, वह एक तरह से सोने पर सुहागा थीं।
हालांकि, मैं अपने कई साथियों का भी जश्न मनाना चाहता हूं जिन्होंने शानदार प्रदर्शन किया। मेरा मानना है कि हमें पेरिस 2024 ओलंपिक खेलों में भारत के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए पदक तालिका को इकलौता पैमाना नहीं बनाना चाहिए। वास्तव में, मैं आग्रह करूंगा कि आप देखें कि हमारे एथलीटों ने कितनी कड़ी ट्रेनिंग की। कितनी तीव्रता से प्रतिस्पर्धा की।
बस एक पल के लिए यह समझने का समय निकालें कि हमारे कितने एथलीटों ने अपना सब कुछ दिया, लेकिन पोडियम फिनिश से बाल-बाल चूक गए। फिर भी 16 सदस्यीय हाकी टीम समेत 117 सदस्यीय दल में से 21 खिलाड़ी पेरिस से पदक लेकर घर लौटेंगे।
भारत के बेहतर प्रदर्शन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि छह एथलीट चौथे स्थान पर रहे। एक दिल तोड़ने वाला डिस्क्वालीफिकेशन रहा, यह पदक बाकी छह के साथ पक्का ही था। जब 1960 ओलंपिक में मिल्खा सिंह और 1984 ओलंपिक में पीटी ऊषा जैसे दिग्गजों ने चौथा स्थान प्राप्त किया था, तो दोनों ने भारत के लिए इतिहास रचा और देश के लोगों के लिए आदर्श बन गए।
आज, एक ओलंपिक में, हमारे पास सात ऐसे एथलीट हैं जो पदक जीत सकते थे और 15 एथलीट ऐसे हैं जो क्वार्टर फाइनल में पहुंचे। यह टोक्यो में सिर्फ दो चौथे स्थान पर रहने वालों की तुलना में कहीं अच्छा है। यह दर्शाता है कि एक देश के रूप में, हमारे खेल कौशल में उल्लेखनीय विकास हुआ है।
एक ऐसे देश के रूप में जिसने पिछले दशक में ही खेलों में भारी निवेश करना शुरू किया है। एथलीटों को विश्वस्तरीय सुविधाएं मिल रही हैं। हमें इन चौथे स्थानों को पदक में बदलते देखने के लिए धैर्य रखना चाहिए और मुझे यकीन है कि अगले ओलंपिक में इनमें से कई एथलीट और नए एथलीट भारत के लिए पदक जीतेंगे।अर्जुन बबूता, अंकिता भकत, धीरज बोम्मादेवरा, महेश्वरी चौहान, अनंतजीत सिंह, मनु का तीसरा पदक चूकना और निश्चित रूप से विनेश, ये ऐसे एथलीट हैं जिनकी उपलब्धियों का जश्न मनाया जाना चाहिए। यह केवल समय की बात है कि ये शीर्ष 10 में पहुंचेंगे और भारत के लिए पदक जीतेंगे। यह जरूरी है कि हम अलग-अलग खेलों में अपने एथलीटों की ट्रेनिंग और प्रतिस्पर्धा रणनीति को उसी तीव्रता से बनाए रखें।
बदलाव केवल विभिन्न विषयों में इस तरह के बेहतर प्रदर्शन से ही आएगा। मेरा आत्मविश्वास हमारे एथलीटों की बदलती मानसिकता और दृष्टिकोण तथा सरकार सहित सभी हितधारकों द्वारा किए जा रहे प्रयासों से उपजा है, जो एक दशक पहले तक अनसुना था।मैंने खुद पिछले तीन वर्षों में 310 दिनों के लिए छह देशों में प्रशिक्षण लिया है। भाग लेने वाले सभी एथलीट टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना (टाप्स) का हिस्सा हैं, जो एथलीटों, व्यक्तिगत कोच, विदेशी विशेषज्ञों को कई विदेशी प्रशिक्षण प्रदान करता है..यह एक लंबी सूची है।