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Olympics 2024: रिक्शा चालक पिता की बेटी Deepika Kumari ने दुनिया में बनाई पहचान, आर्थिक तंगी झेलने के बावजूद अपने सपनों की भरी उड़ान

Indian Archer Deepika Kumari 12 साल की उम्र में अत्यंत कमजोर स्थिति में नकारे जाने वाली दीपिका कुमारी ने हिम्मत नहीं हारी और तीन महीनों में खुद को साबित करने की चुनौती का सामना किया। टोक्यो ओलंपिक्स में भारत की शीर्ष पदक प्रत्याशी बनने से लेकर विश्व की नंबर 1 तीरंदाज दीपिका कुमारी की कहानी साहस और आत्मविश्ववास की मिसाल है।

By Priyanka Joshi Edited By: Priyanka Joshi Updated: Fri, 26 Jul 2024 11:12 PM (IST)
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Deepika Kumari: आम तोड़ने के लिए पत्थरों से निशाना लगाने से हुई थी तीरंदाजी की पहचान

स्पोर्ट्स डेस्क, नई दिल्ली। Deepika Kumari India Archery। बांस से बने उपकरणों के साथ तीरंदाजी का अभ्यास कर दुनिया में पहचान बनाना हर किसी की बस की बात कहा। तीरंदाजी के खेल के शिखर पर इस तरह पहुंचना कोई कम चमत्कारिक नहीं है। ऐसा ही कुछ रांची के छोटे से गांव में जन्मी दीपिका कुमारी ने कर दिखाया।

तीन बार ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली दीपिका ने विश्व कप, एशियाई चैंपियनशिप, राष्ट्रमंडल खेलों, विश्व चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में कई पदक अपने नाम किए। झारखंड के रांची के पास स्थित राम छत्ती नाम के गांव की चैंपियन तीरंदाज की कहानी दिल छू लेने वाली है। ऐसे में जानते हैं पेरिस ओलंपिक 2024 (Olympics 2024) में हिस्सा ले रही दीपिका कुमारी की स्ट्रगल स्टोरी के बारे में।

Deepika Kumari: आम तोड़ने के लिए पत्थरों से निशाना लगाने से हुई थी तीरंदाजी की पहचान

दरअसल, दीपिका कुमारी एक प्रमुख भारतीय तीरंदाज (आर्चर) हैं। वे भारत की सबसे सफल और प्रसिद्ध तीरंदाजों में से एक मानी जाती हैं। दीपिका ने कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया है और वे अलग-अलग विश्व चैंपियनशिप्स और एशियाई खेलों में पदक जीत चुकी हैं। 

दीपिका कुमारी के लिए तीरंदाजी में नाम कमाना आसान नहीं था। दीपिका के पिता, जो की एक ऑटो-रिक्शा चालक और मां एक नर्स हैं, जिन्होंने अपनी बेटी के सपने को पूरा करने में काफी मेहनत की। रांची से 15 किलोमीटर दूर राटू छत्ती नाम का गांव से हैं।

दीपिका की तीरंदाजी से पहचान तब शुरू हुई जब वह आमों के लिए पत्थरों से निशाना लगाया करती थीं, क्योंकि गरीब परिवार में जन्मी दीपिका के माता-पिता के पास उतने पैसे नहीं हुआ करते थे कि वह तीरंदाजी उपकरण खरीद कर उन्हें दे सके। उन्होंने बांस के बने धनुष और बाण की मदद से तीरंदाजी की शुरुआत की।

दीपिका की इस कहानी से ये सीखने को मिलता है कि चाहे इंसान गरीब हो या अमीर, अगर आपके मन में किसी चीज को पाने की चाहत सच्ची हो, तो कितनी भी चुनौतियां क्यों ना आ जाए आपकी किस्मत कोई नहीं बदल सकता है। 

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दीपिका ने बहन को देखकर तीरंदाजी शुरू की

बता दें कि दीपिका को टाटा आर्चर एकेडमी में प्रशिक्षम का मौका मिला था, जहां उन्हें खाना और तीरंदाजी के उपकरण मिल जाते थे, जो उनके लिए तब काफी कीमती हुआ करता था। उन्होंने अपनी कजिन बहन विद्या कुमारी को देखकर तीरंदाजी शुरू की, जो भी एकेडमी की छात्रा थी। यहीं पर उसे सही उपकरण और यूनिफॉर्म मिला और उसे 500 रुपये की मासिक फीस मिलती थी।

इसके बाद दीपिका कुमारी  ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उन्होंने तीरंदाजी में अपना नाम कमाया। साल 2012 में दीपिका को अर्जुन पुरस्कार, भारत का दूसरा सबसे बड़ा खेल पुरस्कार मिला। साल 2016 में उन्हें पद्म श्री से भी नवाजा गया। 2014 में उन्हें FICCI स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।

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दीपिका ने 2009 में कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतकर तीरंदाजी की दुनिया में खूब नाम हासिल किया। उसी साल उन्होंने ओगडेन, USA में 11वीं युवा विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप भी जीती थी। 2012 में, उन्होंने तुर्की में विश्व कप के व्यक्तिगत स्टेज में रेकर्व गोल्ड मेडल जीता। 2012 के अंत में, वह महिलाओं की रेकर्व तीरंदाजी में विश्व नंबर 1 बन गईं थी।