Paris Olympics 2024: कब तक सिर्फ दिल जीतते रहेंगे, ओलंपिक में भारत की फिर अधूरी रह गई आस, नहीं हुआ दहाई का आंकड़ा पार
भारत के 117 खिलाड़ी इस बार पेरिस ओलंपिक-2024 में हिस्सा लेने पहुंचे थे। उम्मीद थी कि टीम इंडिया इस बार दहाई के अंक में मेडल जीतेगी और टोक्यो ओलंपिक-2020 के सात मेडलों के आंकड़े को पार करेगी लेकिन सारी उम्मीदें धराशायी हो गईं। दिग्गज एथलीट करीब आकर मेडल से चूक गए। भारत के हिस्से एक भी गोल्ड मेडल नहीं आया।
अभिषेक त्रिपाठी, जागरण,नई दिल्ली: 1900 में पेरिस में हुए ओलंपिक से भारतीय दल खेल महाकुंभ में भाग ले रहा है। आजादी के बाद से भारत 16 ओलंपिकों में भाग ले चुका है लेकिन हम अब भी वहां दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर सके हैं। भारत ने पिछली बार टोक्यो ओलंपिक में एक स्वर्ण सहित कुल सात पदक जीतकर खेल महाकुंभ का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। इस बार हम सिर्फ छह पदक ही जीत पाए हैं।
हम इस बार एक भी स्वर्ण पदक नहीं जीत पाए। सिर्फ नीरज चोपड़ा ने रजत पदक जीतकर हमारी कुछ लाज रख ली। दुनिया की पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था और सबसे ज्यादा जनसंख्या होने का दंभ भरने वाले भारतीय हुक्मरानों को सोचना होगा कि ऐसा क्या है कि हम पदक तालिका में 69वें नंबर पर मौजूद हैं। पड़ोसी पाकिस्तान एक स्वर्ण जीतकर 53वें नंबर पर है।
करोड़ों हुए खर्च
भारतीय एथलीटों पर केंद्र सरकार ने 470 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया। 117 एथलीटों के भारतीय दल में केवल मनु भाकर एक मात्र ऐसी एथलीट रहीं, जिन्होंने देश को दो पदक दिलाए। भारतीय पुरुष हॉकी टीम और नीरज ने निरंतरता बरकरार रखते हुए कांस्य और रजत जीता, परंतु शेष सभी दिग्गज फ्रांस की राजधानी में देश की आशाओं को पूरा नहीं कर सके। 2008 में बीजिंग के बाद टोक्यो में पहली बार स्वर्ण पदक का दर्शन करने वाले भारतीय एथलीटों के लिए इस बार भी स्वर्ण केवल एक स्वप्न ही रहा।इसका प्रमुख कारण है कि 2008 से लेकर अब तक केवल कुश्ती को छोड़ दें तो कभी किसी खेल में भारतीय एथलीटों के प्रदर्शन में निरंतरता नहीं दिखी है। पुरुष हॉकी टीम ने लगातार दो ओलंपिक में पदक जीतकर हमारे स्वर्णिम दौर की स्मृतियां ताजा भी की हैं, परंतु अन्य खेलों में हमें निराशा ही हाथ लगी है।
भारत का ओलंपिक इतिहास
अगर ओलंपिक इतिहास की बात करें तो मेजर ध्यानचंद की हॉकी ने भारतीय पदकों की झोली स्वर्ण से भरी, मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा ने दिल जीता, लिएंडर पेस और कर्णम मल्लेश्वरी ने पदक जीतना सिखाया, अभिनव बिंद्रा और नीरज ने अन्य खेलों में भी स्वर्णिम चमक दिखाई लेकिन हम चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी जैसे विकसित देश तो छोड़ो, छोटे से देश उज्बेकिस्तान, युद्ध में जूझते यूक्रेन और गरीबी से परेशान अफ्रीकी देश केन्या तक से इस मामले में कमतर हैं।
ऐसा नहीं है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने कोई कसर छोड़ रखी है। केंद्र सरकार जहां तैयारियों पर करोड़ों खर्च कर रही है तो अधिकतर राज्यों ने पदक जीतने की स्थिति में करोड़ रुपये की इनामी राशि के अलावा जमीन और सरकारी नौकरी देने का प्रावधान कर रखा है। कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में पदक जीतने पर भी सम्मान और बड़ी राशि मिलती है।केंद्र सरकार ने 13 एथलीटों की ट्रेनिंग पर एक-एक करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए गए। ट्रेनिंग के लिए मनमाफिक विदेशी दौरे कराए गए। मनपसंद कोच, फिजियो और सपोर्ट स्टाफ दिया गया लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। चार ओलंपिक खेलने के बावजूद महिला धनुर्धर दीपिका कुमारी एक पदक नहीं जीत सकी हैं। पहलवान विनेश फोगाट 100 ग्राम ज्यादा वजन होने के कारण फाइनल से अयोग्य घोषित हो गईं और छह एथलीट चौथे स्थान पर रहे।
कई एथलीट तो ऐसे हारे जैसे पहली बार खेलने उतरे हों। पदक के मुख्य दावेदार लक्ष्य सेन आखिरी समय में भटक गए। कब तक हम सिर्फ दिल जीतते रहेंगे? अगर भारत को 2036 ओलंपिक की मेजबानी करनी है तो उसे दिल जीतने की जगह पदक जीतने वाला देश बनना होगा।