Nishad Kumar Exclusive: 8 साल की उम्र में कट गया था हाथ, फिर मां ने दी नई जिंदगी, निषाद कुमार अब बने सफलता की मिसाल
निषाद कुमार ने पेरिस पैरालंपिक में हाई जम्प में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। वह इससे खुश तो हैं लेकिन कहीं न कहीं उन्हें इस बात का मलाल है कि वह अपने मेडल का रंग नहीं बदल सके। निषाद ने टोक्यो पैरालंपिक में भी सिल्वर मेडल जीता था। इस बार उनकी कोशिश गोल्ड जीतने की थी जिसमें वह सफल नहीं हो सके.
अजय अत्री, जेएनएन, नई दिल्ली। टोक्यो के बाद पैरिस पैरालंपिक में ऊंची कूद-टी47 स्पर्धा में 2.04 मीटर की कूद के साथ लगातार दूसरा रजत पदक जीतने वाले हिमाचल के ऊना के निषाद कुमार स्वर्ण न जीत पाने से थोड़े निराश तो हैं, लेकिन इस बात की तसल्ली भी है कि दूसरी बार भी देश की उम्मीदों पर खरे उतरे।
निषाद का कहना है कि इस संघर्ष भरे सफर में उनके परिवार और सबसे अधिक उनकी मां का हाथ रहा है। उन्होंने कभी महसूस नहीं होने दिया कि वह दिव्यांग हो गए हैं। अजय अत्री ने निषाद कुमार से विशेष बातचीत की।
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पेश हैं मुख्य अंश :-
सवाल: निषाद आपको पैरालंपिक में रजत जीतने पर बधाई। देश की उम्मीदों पर दोबारा खरा उतरने का दबाव तो बहुत होगा, मुकाबले के दौरान खुद को कैसे संयमित किया?-
जवाब: मुकाबला शुरू होने से पहले दबाव जरूर था, लेकिन मैदान में उतरते ही सिर्फ लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित हो गया। अफसोस है कि पदक का रंग नहीं बदल सका, लेकिन इस बात की खुशी है कि लगातार दूसरी बार देश के लिए पदक जीत पाया>
सवाल: टोक्यो में आपका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ 2.06 मीटर था। क्या कारण रहा कि पेरिस में आप वहां तक नहीं पहुंच पाए?-जवाब: इसकी वजह तो कुछ नहीं। कोई खास दिन आपका होता है और उस दिन आप बहुत अच्छा प्रदर्शन कर जाते हैं पर यहां 2.04 की ऊंची कूद लगाई। आखिरी प्रयास में और अधिक करने की कोशिश की, लेकिन नहीं कर पाया।
सवाल: जब अंतिम प्रयास में चूके तो निराश थे पर तभी स्वर्ण जीतने वाले रोड्रिक टाउनसेंड ने आपको बाहों में भर लिया। उस लम्हे के बारे में कुछ बताइए?-जवाब: बेशक, बहुत भावप्रवण लम्हा था। अंतिम प्रयास में फाउल हो जाने के बाद मैं वहीं लेट गया। समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या हो गया लेकिन तभी रोड्रिक आए, हाथ बढ़ाकर उठाया और कहने लगे-निषाद खेल में ऐसा होता है। उठो और दर्शकों का अभिवादन स्वीकार करो जो आपके लिए तालियां बजा रहे हैं।
सवाल: आप अपनी प्रेरणा किन्हें मानते हैं?-जवाब: मेरी मां ही प्रेरणा हैं। जब आठ वर्ष की आयु में मेरे साथ हादसा हुआ और बाजू कट गया तो मां ने ही मुझे हौसला दिया। वह हर कदम पर मेरे पीछे चट्टान की तरह खड़ी थीं। वह वॉलीबाल की राज्यस्तरीय खिलाड़ी रही हैं। इस तरह कह सकता हूं कि मेरी प्रथम कोच मां ही रहीं। राष्ट्रीय कोच सत्य नारायण का भी आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने मुझे यहां तक पहुंचाने में बहुत मेहनत की है।
सवाल: देश के युवाओं के लिए कुछ कहना चाहेंगे?-जवाब: अधिक तो कुछ नहीं, लेकिन इतना जरूर कहना चाहूंगा कि असफलताओं से कभी घबराना नहीं चाहिए। हौसला बनाए रखिए और ईमानदारी के साथ अपना कर्म करते जाओ कामयाबी आप पर जरूरी मुस्कुराएगी।यह भी पढ़ें- Paris Paralympics 2024: 17 साल की शीतल देवी ने रचा इतिहास, राकेश कुमार के साथ मिलकर जीता ब्रॉन्ज