थ्रो के बाद अपने गुस्से के लिए इंटरनेट मीडिया पर चर्चा का विषय बने नवदीप ने बताया कि भारत की जर्सी पहनते ही अपने आप जोश आ जाता है। स्वर्ण पदक विजेता एथलीट ने बताया कि उन्होंने नीरज चोपड़ा से प्रेरणा लेकर ही भाला फेंक शुरू किया था और तय किया था कि उनका कद छोटा है, पर वह उनके काम बड़े होंगे। अभिषेक त्रिपाठी ने नवदीप से विशेष बातचीत की, पेश हैं मुख्य अंश..
प्रधानमंत्री से भेंट कैसी रही? उस प्रसंग के बारे में बताइए जब प्रधानमंत्री कैप पहनने के लिए जमीन पर बैठ गए?
सभी एथलीटों को सम्मानित करने के लिए प्रधानमंत्री ने घर पर बुलाया था। वहां उन्होंने हमें आगे के लिए प्रोत्साहित किया। मैंने सर को कैप गिफ्ट की। मैं सोच रहा था कि उन्हें पहनाऊं या कैसे कहूं लेकिन प्रधानमंत्री इतने सहज हैं। उन्होंने पता चल गया और उन्होंने कहा कि मैं नीचे बैठ जाता हूं और मैंने उन्हें कैप पहना दी। यह मेरे लिए बेहद चौंकाने वाला घटनाक्रम था। मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि प्रधानमंत्री ऐसा करेंगे, पर बहुत अच्छा लग रहा है कि सर ने हमें इतना सम्मान दिया। हमें उन्होंने देश का भविष्य कहकर संबोधित किया।
आप उन्हें टोपी पहनाने गए थे या सिर्फ देने गए थे?
भइया टोपी नहीं कैप कहिए (हम दोनों ही हंस दिए)। मुझे बहुत डर लग रहा था। मैं उन्हें कैप गिफ्ट करने गया था, लेकिन मन में इच्छा हुई कि उन्हें पहना दूं। पर अगर वह ले भी लेते तो यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात होती। हालांकि, उन्होंने जो किया वह उम्मीदों से काफी अधिक था। बहुत अच्छा लग रहा था।
प्रधानमंत्री ने भी जीतने के बाद आपके आक्रामक जश्न पर बात की। यह विराट कोहली से मिलता जुलता है इतनी आक्रामकता कैसे आती है?
जब मैं थ्रो कर रहा था तब मुझे नवदीप के नाम से कोई नहीं जान रहा था। उधर, मैं सिर्फ देश की जर्सी पहने हुए था और लोग मुझे केवल एक भारतीय एथलीट के रूप में जान रहे थे। मैं वहां भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा था। जब शरीर पर हर जगह इंडिया लिखा हो तो जोश अपने आप आ जाता है। उसके लिए कुछ करना नहीं पड़ता है वह स्वयं आ जाता है।
स्पर्धा से पहले क्या लग रहा था कि पदक जीत जाएंगे?
मैंने टोक्यो पैरालंपिक में भाग लिया था और तब चौथे स्थान पर रहा था इसलिए इस बार लक्ष्य केवल पदक जीतना ही था क्योंकि तैयारी भी अच्छी चल रही थी और प्रदर्शन भी अच्छा हो रहा था। बाकी यकीन तो था कि पदक जीत जाऊंगा लेकिन ऐसा प्रदर्शन होगा, यह उम्मीद से थोड़ा अधिक है। कोच बहुत खुश हूं। उन्हें भी मुझ पर पूरा भरोसा है।
भाला फेंकने के बाद आपने कोच से पूछा था कि कितना थ्रो हुआ, जब उन्होंने बताया तो आपने कहा मां कसम खाओ?
मैं थ्रो कर रहा था। थ्रो काफी अच्छा निकला और जब पहला वैलिड थ्रो अच्छा निकल जाता है तो इसका मतलब है अभी और बेहतर करने की पूरी क्षमता है। उसी को देखते हुए जब कोच ने बताया कि 46.39 मीटर का थ्रो लगा है तो मैं आश्चर्यचकित था कि आगे क्या होगा। उस थ्रो में मैंने व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ किया है तो आगे और अच्छा ही करूंगा। मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा था कि इसलिए यकीन करने के लिए मैंने उनसे कहा कि खाओ मां कसम।
मतलब अब भी कसम पर भरोसा है?
हां, बिल्कुल मैं कसम पर बहुत भरोसा रखता हूं क्योंकि कसम तो झूठी कोई नहीं खाएगा। यही झूठी हो गई तो फिर किस पर भरोसा करेंगे।
पहले पानीपत को वहां पर हुई तीन प्रसिद्ध लड़ाई के लिए जाना जाता था, अब वहां पर दो प्रसिद्ध भाला फेंक एथलीट रहते हैं?
(हंसते हुए) बिल्कुल.. यहां तीन बड़े युद्ध हुए हैं तो यहां बलिदान की वजह से यहां कि मिट्टी में कुछ आ गया है। पानीपत के खून में कुछ ऐसा है। यहां से एक-दो और भाला फेंक एथलीट अच्छा कर रहे हैं। यहां तीन बड़े युद्ध हुए हैं उससे हमें भाला फेंक की प्रेरणा मिल गई है या क्या मुझे नहीं पता पर इससे देश का नाम रोशन हो रहा है। नीरज चोपड़ा भाई साहब की वजह से भाला फेंक बहुत तेजी से बढ़ रहा है। जब उन्होंने जूनियर का रिकार्ड बनाया था तो मेरे मन में इस खेल के प्रति प्यार बढ़ गया।
पहले देश में डिसेबिलिटी होने पर विकलांग का संबोधन होता था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने दिव्यांग शब्द दिया। क्या इन पहल से प्रभावित लोगों को ऊर्जा मिलती है?
जब प्रधानमंत्रीजी देश को कोई संदेश देते हैं तो पूरा देश इसे बहुत ध्यान से सुनता है। जब जागरूकता प्रधानमंत्री द्वारा चलाई जाती है तो लोगों के देखने का नजरिया बदलता है। विचार काफी शुद्ध हो जाते हैं। हम जैसे दिव्यांग लोगों को बहुत सम्मान मिलता है। प्रधानमंत्री ने जब से हमें दिव्यांग कहना शुरू कर दिया हम लोग देश के काम में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं और आगे आ रहे हैं।
जाटों की एक छवि होती है कि वे लंबे, तगड़े और ताकतवर होंगे लेकिन आप चार फीट चार इंच के हैं। बचपन में लोग चिढ़ाते थे?
हां जी, बचपन से ही मुझे बहुत ये सब झेलना पड़ा, लेकिन मैंने इसे दिल से नहीं लगाया। आपकी जाट वाली बात सच है। बहुत से लोग मेरे कद को देखकर कहते थे कि जाट तो ऐसे होते नहीं होते, तू कैसा जाट है। इन सब चीजों का जवाब मेरे पास नहीं था। भगवान की जो इच्छा हुई, मैं वैसा ही हूं। मैं इससे प्रभावित नहीं हुआ क्योंकि मुझे पता था कि कद छोटा है, पर मेरे काम बड़े होंगे। उसी चीज से प्रेरणा लेकर मैंने खेलना शुरू किया और इस जगह पहुंच सका हूं। अब पूरा देश मुझ पर गर्व कर रहा है।
क्या जो लोग तंग करते थे उनकी बधाइयां आ रही हैं?
जी, अब बधाई तो आएगी ही। अब सब जान रहे हैं, पहचान रहे हैं तो काफी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। काफी खुशी मिल रही है। ठीक है वो चिढ़ा रहे थे, ये उनकी मानसिकता थी, लेकिन धीरे-धीरे अब दिव्यांगों के प्रति लोगों की मानसिकता बदल रही है।
अब आप उन लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे जो दिव्यांग है या जिनका कद छोटा है?
अगर हम स्वयं को कमजोर समझकर बैठेंगे तो कुछ नहीं होगा। मैं जानता हूं हमें बाकी लोगों से अधिक मेहनत करनी होगी, परंतु अगर हम अपना लक्ष्य ठान लें तो भविष्य में अच्छा कर पाएंगे और देश हम पर गर्व करेगा क्योंकि जब सफलता आपके पास होती है तब लोग यही बोलते हैं कि देखो उसने ऐसे हाल में भी ऐसा किया। अगर हम खुद को कमजोर समझेंगे तो दुनिया हमें और कमजोर बनाएगी। हम अपनी कमजोरी को ताकत बनाकर आगे बढ़ें। हम कमजोर नहीं हैं, हम बहुत तगड़े हैं।
पैरालंपिक तक का आपका यह सफर कैसा रहा?
पहले सिर्फ पढ़ाई करता लेकिन पापा ने मुझे कुश्ती में डाला लेकिन मेरी पीठ में चोट आ गई। पिता जी ग्राम सचिव थे। कुछ वर्ष बाद वापसी की कोशिश की लेकिन नहीं हो पाया। फिर मैंने दौड़ना शुरू कर दिया। राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी आए लेकिन मेरी स्पर्धा को हटा दिया गया तो काफी निराशा हुई।2016 में नीरज भाई साहब ने अंडर-20 में विश्व रिकार्ड बनाया। उससे प्रेरणा लेकर 2017 में भाला फेंक में आया। कुछ समय सोनीपत में अभ्यास किया और बाद में दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में अभ्यास करने लगा। जब मैं स्टेडियम आता-जाता था तो लोग अजीब ढंग से देखते थे।
जब मैंने जूनियर में विश्व रिकार्ड बनाया तो खेलो इंडिया में चयन हुआ। इसके बाद मुझे स्टेडियम के अंदर रहने की अनुमति मिल गई। केंद्र सरकार ने बहुत समर्थन किया। फिर मैंने टोक्यो पैरालंपिक का कोटा जीता। वहां चौथे स्थान पर रहा। संकल्प था कि पदक जीतना है और इस बार पेरिस में यह सपना पूरा हुआ।
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