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Exclusive Naveen Kumar: 'दादा' के कारण कबड्डी में बना पाया करियर, जानें कैसे पड़ा 'नवीन एक्‍सप्रेस' नाम

प्रो कबड्डी लीग का 11वां सीजन 18 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। दबंग दिल्ली अपने पहले मुकाबले में यू मूंबा से भिड़ेगी। नवीन कुमार दबंग दिल्ली फ्रेंचाइजी के एक प्रमुख खिलाड़ी हैं। तेज तर्रार रेडर होने के चलते नवीन कुमार को नवीन एक्सप्रेस नाम दिया गया है। वह भारतीय कबड्डी टीम का भी प्रमुख हिस्सा हैं। एशियन गेम्स 2023 में बेहतरीन प्रदर्शन किया था।

By Umesh Kumar Edited By: Umesh Kumar Updated: Thu, 12 Sep 2024 02:48 PM (IST)
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दबंग दिल्ली के रेडर नवीन कुमार से खास बातचीत।

उमेश कुमार, नई दिल्ली। आज के दौरा में जहां कई युवा क्रिकेट में पहचान बनाकर स्टारडम हासिल करना चाहते हैं तो वहीं, कुछ युवा ऐसे भी हैं जो अन्य खेलों के जरिए अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं हरियाणा के नवीन कुमार।

नवीन का जन्म 14 फरवरी 2000 को हरियाणा के भिवानी जिले में हुआ था। तेज तर्रार रेडर होने के चलते नवीन कुमार को 'नवीन एक्सप्रेस' नाम दिया गया है। नवीन भारतीय कबड्डी टीम का भी प्रमुख हिस्सा हैं। इसके अलावा प्रो कबड्डी लीग की दबंग दिल्ली फ्रेंचाइजी के मुख्य खिलाड़ी हैं।

एशियन गेम्स 2023 में फाइनल में नवीन ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से भारत को गोल्ड जीतने में मत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। प्रो कबड्डी लीग के 11वें सीजन की लाइव स्ट्रीमिंग 18 अक्टूबर से स्टार स्पोर्ट्स नेटवर्क पर की जाएगी। लीग शुरू होने से पहले नवीन कुमार से जागरण ऑनलाइन मीडिया ने खास बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश:-

एक तरफ जहां युवा क्रिकेट में अपनी पहचान बनाने में लगे हुए हैं, वहीं आपकी रूचि कबड्डी में कैसे बनी?

- हम गांव के रहने वाले हैं तो इतना पैसा नहीं होता था कि बैट खरीदें, बल्ला खरीदें। गांव में ही कई सीनियर खिलाड़ी थे जो कबड्डी खेला करते थे तो उन्हीं के साथ जाता था और कबड्डी खेल लेता था।

आपके कबड्डी करियर में आपके दादा का क्या रोल रहा है?

जब मैं छठवीं या 7वीं क्लास में था तो पढ़ाई से बचने के लिए खेलने चला जाता था। उस वक्त सरकार की एक मुहिम चलाई थी कि जो जितने ज्यादा प्वाइंट लाएगा तो उसे 1000 से 2500 तक डाइट के पैसे दिए जाते थे। वो भी अटेंडेंस लगने पर। स्कूल से बचने के लिए एक ट्रायल में चला गया था। वहां मेरा सेलेक्शन हो गया। पता चला कि स्टेडियम में जाकर प्रैक्टिस करनी पड़ेगी। तभी पैसा मिलेगा। स्कूल में मास्टर जी की मार से बचने के लिए स्टेडियम में चला गया। वहां भी कोच साहब डंडा लेकर खड़े थे। डर से मैं प्रैक्टिस में नहीं गया। तीन चार दिन हो गए, तो ये बात मेरे दादा को पता चली। फिर वो एक दिन मुझे लेकर स्टेडियम गए और कोच साहब से बोले कि इसे मारिएगा मत अब से ये रोज प्रैक्टिस करने आएगा। एक हफ्ते तक दादा मुझे साथ लेकर स्टेडियम जाते रहे, फिर बीच-बीच में केले और दूध वगैरा लेकर आते। पिता जी ड्राइवर थे तो वह अधिकतर बाहर ही रहते थे। दादा जी ने ही मेरी लाइफ बदली है।

किसको आप अपना आदर्श मानते हैं?

- मैं अपना आदर्श अजय ठाकुर को मानता हूं। क्योंकि उनकी स्किल बहुत अच्छी लगती है। जब से उनको प्रो कबड्डी में देखा है, उनकी टेक्निक पसंद है। उनसे काफी कुछ सीखा भी है। वैसे तो सभी के आईडियल मां-बाप होते हैं, जो इतनी मेहनत करते हैं। हमारे लिए पैसे इकट्ठा करते हैं। हमें सफल बनाते हैं।

पढ़ाई के दौरान नौकरी मिली और फिर कबड्डी में कैसे आना हुआ?

-12वीं की पढाई पूरी होते ही मुझे जॉब मिल गई थी। एयरफोर्स में ज्वाइन किया। वहां भी कबड्डी ही खेला करता था। वहीं, गुजरात जायंट्स के कोच राम मेहर सिंह (अर्जून पुरस्कार) से मुलाकात हुई तो उनकी संरक्षण में सीखता गया और आगे बढ़ता गया।

जब पीकेएल में कैसे चयन हुआ और उस वक्ता क्या फिलिंग रही थी?

- हमारा सबकुछ तो कबड्डी ही है। सेलेक्शन से पहले एनओआईपी या फिर ट्रायल में हिस्सा लेना पड़ता है। मैं जूनियर नेशनल में गोल्ड जीतकर आया था, एनओआईपी ने कैंप लगाया था। मेरा पहला नंबर था तो वहीं से मेरा चयन हुआ था। जब मेरा चयन हो गया तो घर में सभी खुश थे। गांव वाले खुश थे। शायद मैं पहला था अपने गांव से जो प्रो कबड्डी खेलने जा रहा था। मिठाइयां बांटी गई थी। अब तो सभी का सपना है कि प्रो कबड्डी खेलें। आस-पास के लोग जानें। गांव में नाम हो।

रेडर बनने के पीछे और 'नवीन एक्सप्रेस' नाम पड़ने के पीछे की क्या कहानी रही है?

- हमारे बैच में बहुत सारे सीनियर खिलाड़ी थे तो पहले मैं कॉर्नर खेला करता था। मैं अच्छा खेलता था और सीनियर से सीखता था। सीनियर खिलाड़ियों ने मौका दिया रेड करने की। गांव में जब टूर्नामेंट खेला करता था तो कोच साहब ने भी रेड करने को कहा, मेरा फुटवर्क अच्छा। नंबर लाए तो रेड करने में मजा आने लगा। अब अपनी रेड को एन्जॉय करता हूं। अब तो रेडिंग में ज्यादा फोकस करते हैं।

दबंग दिल्ली में सबसे फनी और सुस्त खिलाड़ी कौन है?

- सच बताऊं तो अभी दो दिन ही हुए हैं कैंप लगे। वैसे तो कोई भी सुस्त नहीं है। कोच साहब सभी को एक्टिव रखते हैं। सभी यंग प्लेयर हैं टीम में और कोच जोगिंदर साहब के होते हुए कोई सुस्त हो ही नहीं सकता। फनी विजेंदर चौधरी हैं। राजस्थान से हैं। वो टीम के खिलाड़ियों को हंसाते रहते हैं।

अगर कबड्डी प्लेयर नहीं होते तो किसमें अपना करियर बनाते?

-पढ़ाई में वैसे भी अच्छा नहीं था, अगर कबड्डी प्लेयर नहीं होता तो फौजी होता, जो अब भी हूं। एयरफोर्स में नौकरी है। काफी अच्छा लगता है खेल के साथ-साथ देश की सेवा करने का मौका मिल रहा है। दोनों काम साथ-साथ चल रहा है।

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