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Limba Ram: आज कांप रहे हैं सधे हाथों से अचूक निशाना लगाने वाले हाथ, खेल मंत्रालय ने दी आर्थिक मदद

भारतीय तीरंदाजी से कभी सुपरस्टार रहे और तीन बार के ओलंपियन लिंबा राम इस समय खतरनाक न्यूरोडीजेनेरेटिव से संबंधित गंभीर बीमारी से पीडि़त हैं।

By Vikash GaurEdited By: Updated: Tue, 07 May 2019 10:04 PM (IST)
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Limba Ram: आज कांप रहे हैं सधे हाथों से अचूक निशाना लगाने वाले हाथ, खेल मंत्रालय ने दी आर्थिक मदद
मनीष गोधा, जेएनएन। कभी सधे हाथों से एक के बाद एक अचूक निशाने लगाने वाले हाथ आज कांप रहे हैं। कभी निशाने पर गहरा ध्यान लगाने वाला मस्तिष्क आज उलझन की अवस्था में है। भारतीय तीरंदाजी से कभी सुपरस्टार रहे और तीन बार के ओलंपियन लिंबा राम इस समय खतरनाक न्यूरोडीजेनेरेटिव से संबंधित गंभीर बीमारी से पीडि़त हैं। बीमारी की वजह से 46 वर्षीय लिंबा राम बुजुर्ग जैसे दिखने लगे हैं। कांपते हुए उनके हाथ, मुरझाये हुए चहरे को जब कोई देखता है तो वह उन्हें पहचान नहीं पाता। डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें पार्किसंस रोग हो सकता है, लेकिन इसकी पुष्टि चिकित्सीय जांच के बाद की जाएगी।

दरअसल अर्जुन और कर्ण जैसे धनुर्धरों के इस देश ने तीरंदाजी को जब भुला दिया था, तब लिंबा राम एकलव्य साबित हुए। भारत को ओलिंपिक में पहला व्यक्तिगत पदक जीतने का सपना लिंबा राम ने ही दिखाया, हालांकि यह सपना पूरा नहीं हो पाया, लेकिन लिंबा राम ने तीरंदाजी को देश के लिए एक संभावना बना दिया। लिंबा राम के ही कारण देश के आदिवासी अंचल में पल-बढ़ रही प्रतिभाओं में आगे बढ़ने की ललक भी जागी।

राजस्थान के उदयपुर जिले की झाड़ोल तहसील के सारादीत गांव में 1972 में जन्मे लिंबा राम आदिवासी भील परिवार की संतान हैं। राजस्थान का यह इलाका आदिवासी आबादी का इलाका है और आज भी यहां के कई गांव विकास की मुख्यधारा से दूर हैं। इस क्षेत्र के आदिवासी उस परंपरा से आते हैं जिन्होंने मेवाड़ के महाराणा प्रताप को अकबर के साथ हुए युद्घ में सहायता की थी। इनके धनुष-बाण शिकार के काम आते रहे हैं। लिंबा राम भी अचूक निशानेबाज थे और अपने तीरों ने तीतर-बटेर के शिकार किया करते थे।

जब लिंबा राम करीब 15 साल के थे, तो वर्ष 1987 में एक दिन उनके चाचा खबर लाए कि सरकार इस इलाके के अच्छे तीरंदाजों का चयन करने के लिए पास के गांव में एक कैंप में लगा रही है। कई लड़के उस कैंप में पहुंचे और लिंबा राम सहित तीन लोगों का चयन हुआ। इनमे एक श्याम लाल भी थे, जिन्हें बाद में अर्जुन अवार्ड मिला। खेल विकास प्राधिकरण इन तीनों को दिल्ली ले आई और यहां आरएस सोढ़ी ने इन्हें प्रशिक्षण देना शुरू किया। यहां से मिले प्रशिक्षण के बाद लिंबा राम ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता जीती और 1988 के सियोल ओलिंपिक में पहली बार यह उम्मीद जागी कि भारत किसी व्यक्तिगत स्पर्धा में ओलिंपिक में कोई पदक जीत सकता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्जित की सफलताएं

राजस्थान के वरिष्ठ खेल विशेषज्ञ और पत्रकार रामेश्वर सिंह बताते हैं कि उस ओलिंपिक में भारत को लिंबा राम से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन ठेठ आदिवासी अंचल से निकलकर इतने बड़े मंच पर पहुंचे लिंबा राम शायद कुछ हड़बड़ा गए और भारत का सपना पूरा नहीं हो पाया, लेकिन इसके बाद लिंबा राम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई सफलताएं अर्जित कीं। उन्होंने आर्चरी एशियन कप, एशियन आर्चरी चैंपियनशिप और कॉमनवेल्थ आर्चरी चैंपियनशिप में गोल्ड और सिल्वर मेडल जीते। वर्ष 1992 में हुई एशियन आर्चरी चैंपियनशिप में तो उन्होंने विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की। इसक बाद 1992 के बार्सीलोना ओलिंपिक में वे सिर्फ एक अंक से कांस्यपदक से दूर रह गए।

तीरंदाजी को भारत में एक संभावनाशील खेल का दर्जा दिलाने में लिंबा राम का बड़ा योगदान है। रामेश्वर सिंह कहते हैं कि लिम्बा राम की सफलता के बाद ही आदिवासी इलाकों से नई प्रतिभाएं सामने आने लगीं। वर्ष 1996 में एक ट्रेनिंग कैंप में फुटबॉल मैच में दौरान उन्हें कंधे की गंभीर चोट आई और इसके बाद वे सही ढंग से तीरंदाजी नहीं कर पाए। सरकार ने उन्हें अर्जुन अवार्ड और 2012 में पद्मश्री से सम्मानित किया। आज वे मस्तिष्क की गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और एम्स में उनका इलाज चल रहा है।

खेल मंत्रालय ने की मदद

राष्ट्रीय तीरंदाजी टीम के पूर्व कोच लिंबा राम इस समय दिल्ली के एम्स में भर्ती हैं उन्हें इलाज के लिए पैसों की जरुरत थी। ऐसे में भारत सरकार के खेल मंत्रालय ने 5 लाख का फंड जारी किया है। डॉक्टरों के अनुसार उनको गंभीर बीमारी है लेकिन उसे दवा के जरिये नियंत्रित किया गया है। 

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