Paris Paralympics: मां ने ही छोड़ दी थी जिसकी जिंदगी की आस, उस योगेश ने दी मौत को मात, पेरिस में दिखाया जलवा
पेरिस पैरालंपिक-2024 में योगेश ने भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। इस जीत के बाद योगेश ने कहा कि वह अगले पैरालंपिक खेलों में मेडल का रंग बदलना चाहेंगे। योगेश की मां के लिए ये मेडल ही गोल्ड की तरह है। आठ साल की उम में पैरालाइज होने के बाद महीनों व्हीलचेयर पर बिताने वाले योगेश के जिंदा रहने की उम्मीद उनकी मां को भी बहुत कम थी।
जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : पेरिस में चल रहे पैरालंपिक गेम्स की चक्का फेंक एफ-56 स्पर्धा में बहादुरगढ़ की राधा कालोनी निवासी योगेश कथुनिया ने रजत पदक हासिल किया है। टोक्यो के बाद यह उनका लगातार इसी स्पर्धा में दूसरा रजत पदक है। योगेश के रजत को लेकर उनकी मां मीना देवी ने कहा कि योगेश मेरे लिए किसी हीरो से कम नहीं है।
आठ वर्ष की आयु में जब योगेश कई माह बीमार रहा तो यह भी आशा नहीं थी कि वह जिंदा रहेगा भी या नहीं। मां ने कहा, "तीन साल तक व्हीलचेयर पर रहने वाले योगेश से यह आशा तो बिल्कुल भी नहीं थी वो एक दिन लगातार दो पैरालंपिक में रजत पदक हासिल करेगा। योगेश ने पेरिस में भी रजत पदक जीता है। यह मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है। योगेश ने पदक चाहे कोई भी जीता हो लेकिन मेरे लिए वह किसी गोल्ड से कम नहीं है।"
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भावुक हो गईं मां
भावुक होकर मां मीना देवी ने आगे बताया, "2006 में जब योगेश आठ वर्ष का था, तब पार्क में खेलने गया था। अचानक गिर गया। बाद में पता चला वह पैरालाइज हो गया। अस्पताल लेकर गए तो जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि उसे गिलियन बैरे सिंड्रोम हो गया है। जिंदगी का यह वक्त परिवार के लिए सबसे कठिन था। तीन साल खूब मेहनत की। इस दौरान खुद ही फिजियोथैरेपी सीखी। फिर जब योगेश पैरों पर खड़ा हुआ, तब कुछ उम्मीद जगी। कालेज में पढ़ने लगा तो वर्ष 2017 में एक सहपाठी सचिन यादव की मदद से चक्का फेंक स्पर्धा में खेलने लगा। इस तरह योगेश ने पैरालंपिक तक का सफर तय किया है।