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Paris Paralympics: मां ने ही छोड़ दी थी जिसकी जिंदगी की आस, उस योगेश ने दी मौत को मात, पेरिस में दिखाया जलवा

पेरिस पैरालंपिक-2024 में योगेश ने भारत को सिल्वर मेडल दिलाया। इस जीत के बाद योगेश ने कहा कि वह अगले पैरालंपिक खेलों में मेडल का रंग बदलना चाहेंगे। योगेश की मां के लिए ये मेडल ही गोल्ड की तरह है। आठ साल की उम में पैरालाइज होने के बाद महीनों व्हीलचेयर पर बिताने वाले योगेश के जिंदा रहने की उम्मीद उनकी मां को भी बहुत कम थी।

By Jagran News Edited By: Abhishek Upadhyay Updated: Tue, 03 Sep 2024 10:19 AM (IST)
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योगेश ने पेरिस पैरालंपिक-2024 में सिल्वर मेडल किया अपने नाम

 जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ : पेरिस में चल रहे पैरालंपिक गेम्स की चक्का फेंक एफ-56 स्पर्धा में बहादुरगढ़ की राधा कालोनी निवासी योगेश कथुनिया ने रजत पदक हासिल किया है। टोक्यो के बाद यह उनका लगातार इसी स्पर्धा में दूसरा रजत पदक है। योगेश के रजत को लेकर उनकी मां मीना देवी ने कहा कि योगेश मेरे लिए किसी हीरो से कम नहीं है।

आठ वर्ष की आयु में जब योगेश कई माह बीमार रहा तो यह भी आशा नहीं थी कि वह जिंदा रहेगा भी या नहीं। मां ने कहा, "तीन साल तक व्हीलचेयर पर रहने वाले योगेश से यह आशा तो बिल्कुल भी नहीं थी वो एक दिन लगातार दो पैरालंपिक में रजत पदक हासिल करेगा। योगेश ने पेरिस में भी रजत पदक जीता है। यह मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है। योगेश ने पदक चाहे कोई भी जीता हो लेकिन मेरे लिए वह किसी गोल्ड से कम नहीं है।"

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भावुक हो गईं मां

भावुक होकर मां मीना देवी ने आगे बताया, "2006 में जब योगेश आठ वर्ष का था, तब पार्क में खेलने गया था। अचानक गिर गया। बाद में पता चला वह पैरालाइज हो गया। अस्पताल लेकर गए तो जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि उसे गिलियन बैरे सिंड्रोम हो गया है। जिंदगी का यह वक्त परिवार के लिए सबसे कठिन था। तीन साल खूब मेहनत की। इस दौरान खुद ही फिजियोथैरेपी सीखी। फिर जब योगेश पैरों पर खड़ा हुआ, तब कुछ उम्मीद जगी। कालेज में पढ़ने लगा तो वर्ष 2017 में एक सहपाठी सचिन यादव की मदद से चक्का फेंक स्पर्धा में खेलने लगा। इस तरह योगेश ने पैरालंपिक तक का सफर तय किया है।

योगेश ने क्या कहा

मेडल जीतने के बाद योगेश ने कहा कि वह अगली बार मेडल का रंग बदलने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा, "प्रतियोगिता ठीक रही, मुझे रजत पदक मिला। मैं अब पदक का रंग बदलने के लिए कड़ी मेहनत करूंगा। पिछले कुछ समय से मैं केवल रजत जीत रहा हूं, चाहे वह टोक्यो (पैरालंपिक) हो या आज, विश्व चैंपियनशिप या एशियाई खेल। हर जगह मैं रजत जीत रहा हूं। गाड़ी अटक गई है। मुझे लगता है कि मुझे और अधिक मेहनत करने की जरूरत है। अब मुझे स्वर्ण पदक चाहिए।"

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