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विदेश मंत्री बोले- चीन के साथ तालमेल एक बड़ी चुनौती, बिना वजह पूर्वी लद्दाख में बढ़ाया था तनाव

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि दुनिया अंतरराष्ट्रीय संबंधों के नए चरण में प्रवेश कर रही है। मौजूदा वक्‍त में यदि हम वैश्विक दबदबे के लिहाज से देखें तो अमेरिका एक मजबूत शक्ति के रूप में स्पष्ट रूप से संघर्ष कर रहा है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Tue, 07 Sep 2021 12:48 AM (IST)
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि दुनिया अंतरराष्ट्रीय संबंधों के नए चरण में प्रवेश कर रही है।
नई दिल्ली, जेएनएन। पिछले साल चीनी सेना ने बिना किसी खास कारण के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ की है जिसकी वजह से भारत व चीन के रिश्तों में बड़े बदलाव आ गए हैं। भारत के लिए फिलहाल चीन के साथ रिश्तों का तालमेल बिठाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है। यह बात विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने सोमवार को आस्ट्रेलियाई सेंट्रल यूनिवर्सिटी को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अभी जो हालात बने हैं उसे देखते हुए चीन के साथ रिश्तों में कोई बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।

मौजूदा माहौल में क्‍वाड जरूरी 

विदेश मंत्री ने क्वाड (भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान का संगठन) को मौजूदा माहौल में ज्यादा जरूरी बताया और इसे भी चीन के एक बड़ी शक्ति के तौर पर उभरने से जोड़ कर देखा। विदेश मंत्री ने यह बात भी सामने रखी कि चीन के एक शक्ति के तौर पर बढ़ने से कई देशों पर भारी असर होगा।

हिंद-प्रशांत का क्षेत्र बेहद अहम 

क्वाड को विदेश मंत्री ने वैश्विक माहौल में हो रहे बदलाव का ही एक परिणाम के तौर पर चिह्नित किया। उन्होंने कहा कि हम देख रहे हैं कि एकल शक्ति का दौर खत्म हो गया। द्विपक्षीय संबंधों की अपनी सीमाएं हैं। बहुपक्षीय संगठन काम नहीं कर पा रहे। जिस तरह के बदलाव का दौर चल रहा है हमें पता नहीं है कि आगे क्या होगा लेकिन निश्चित तौर पर हिंद-प्रशांत का क्षेत्र इस बदलाव के केंद्र में होगा।

चीन की मजबूती से होगा असर 

इस क्रम में उन्होंने आगे कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंध भी कई तरह के बदलाव से गुजर रहे हैं और चीन के एक शक्ति के तौर पर उभरना उन देशों पर ज्यादा असर डालेगा जो पहले से विश्व शक्ति नहीं हैं। यह स्पष्ट रहना चाहिए कि चीन का उभरना किसी दूसरी शक्तियों के उभरने जैसा नहीं है।

चीन की आक्रामकता से बिगड़ा माहौल  

चीन और भारत के रिश्तों पर उन्होंने कहा कि वर्ष 1988 में पूर्व पीएम राजीव गांधी ने जब चीन की यात्रा की थी तो द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर यह संभावना बनी थी कि हमारी सीमाओं पर अमन व शांति बनी रहेगी। हमने इस उद्देश्य से ही कई समझौते किये जिसका मकसद यही था कि कोई भी अपनी सेना सीमा पर नहीं ले जाएगा। लेकिन पिछले साल स्थिति पूरी तरह से पलट गई।

बिना वजह के सीमा पर भेजे सैनिक 

बगैर किसी कारण के भारतीय सीमा पर बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों का जमावड़ा हो गया। गलवन घाटी में जो हुआ उससे द्विपक्षीय रिश्ते दूसरी दिशा में चले गये। भारत के लिए चीन के साथ तालमेल बनाना काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है।