यूरोप में नए राष्ट्रवाद की प्रतिनिधि जार्जिया मेलोनी, शरणार्थी नीति के खिलाफ; एक्सपर्ट व्यू
हिजबुल्ला और हमास जैसे आतंकवादी संगठन सत्ता में भागीदारी या सत्ता हासिल करने में सफल क्यों हो जाते हैं? 20 वर्षों तक आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई के बाद भी तालिबान अफगानिस्तान पर काबिज हो जाते हैं क्यों?
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Tue, 04 Oct 2022 11:30 AM (IST)
डा. रहीस सिंह। जार्जिया यूरोप की शरणार्थी नीति के खिलाफ हैं। इसे बहुत सारे बुद्धिजीवी इस्लामोफोबिया का हिस्सा मान रहे हैं। हो सकता है यह सही हो, लेकिन एक सवाल तो है कि क्या सिर्फ ‘ब्रेड, बाथ एंड बेड’ की चाहत रखने वाले शरणार्थी यूरोप में सिर्फ यहीं तक सीमित रहेंगे या फिर उनकी चाहते और उद्देश्य बदलेंगे? वर्ष 2016 में ट्रंप ने अपने एक बयान में कहा था कि शरणार्थी समस्या से यूरोप का अंत भी हो सकता है।
यह वैसा ही बयान है जैसा इमैनुएल मैक्रों का था कि इस्लामवादी हमसे हमारा भविष्य छीनना चाहते हैं। तो क्या इन निष्कर्षों के केंद्र में यूरोप में शरणार्थियों एवं सामान्य माइग्रेशन के जरिए यूरोप में बढ़ रही मुस्लिम आबादी नहीं है? हटिंगटन और बेरेट जैसे पाश्चात्य बुद्धिजीवी भी काफी पहले ही ईसाई दुनिया को चेतावनी दे चुके हैं कि 2025 तक इस्लाम ईसाइयत को दुनिया के मुख्य धर्म होने से वंचित कर देगा। यदि ऐसा है तो पश्चिमी दुनिया की आधुनिकता और उदारता को डरने के पर्याप्त कारण हैं।
यूरोप में शरणार्थियों की संख्या
विशेषकर उन स्थितियों में जब ‘एमआई 5’ (ब्रिटिश खुफिया एजेंसी) के प्रमुख कुछ वर्ष पहले इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हों कि खतरों के खिलाफ रणनीति बनाई जा सकती है, उन्हें कम किया जा सकता है, लेकिन यदि हम उन्हें सौ प्रतिशत खत्म करने की कल्पना करते हैं तो हमें निराशा ही होगी। जैसे-जैसे यूरोप में शरणार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है, यूरोप एक द्वंद्वात्मक समाज की ओर बढ़ता दिख रहा है। यह बात केवल सामाजिक आंदोलन या प्रतिक्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे लेकर यूरोप राजनीतिक विभाजन से भी गुजरता हुआ दिख रहा है। ब्रेक्जिट तथा जर्मनी, ग्रीस और दूसरे यूरोपीय देशों के बीच तनातनी इसके कुछ उदाहरण हैं।
यदि वास्तव में मध्य-पूर्व, अफ्रीका, अफगानिस्तान या अन्य इस्लामी देशों के लोगों को मुक्त समाज और उदार विचारधारा व व्यवस्थाओं में जीवन जीना पसंद है तो फिर वे अपने देशों में कट्टरपंथ का संगठित विरोध क्यों नहीं करते, पलायन का ही आश्रय क्यों लेते हैं? क्यों एर्दोगान जैसे कट्टरपंथी किसी कमाल पाशा के आधुनिक व पाश्चात्य टर्की (अब तुर्किये) को कट्टर एवं प्राच्य व्यवस्था में बदलने में कामयाब हो जाते हैं?