दक्षिण कोरियाई नेता है अमेरिकी मदद को लेकर चिंता, जानें क्यों
दक्षिण कोरिया में विपक्ष के नेता होंग जून प्यो ने अमेरिका की मदद को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। उत्तर कोरिया की वजह से समूचे कोरियाई प्रायद्वीप में लगातार तनाव बना हुआ है। वहीं दूसरी ओर उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच जुबानी जंग भी चल रही है। इस बीच दक्षिण कोरिया में विपक्ष के नेता होंग जून प्यो ने अमेरिका की मदद को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। उनका कहना है कि उत्तर कोरिया ने आईसीबीएम का निर्माण अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए नहीं बल्कि दक्षिण कोरिया को हथियाने के लिए किया है। उन्होंने यह बात एक स्थानीय यूनिवर्सिटी में दिए एक लेक्चर में कही है। उन्होंने अपने संबोधन में यहां तक कहा कि अमेरिका के लिए उनका देश पहले आता है न की दक्षिण कोरिया की सुरक्षा। प्यो का कहना था कि ट्रंप प्रशासन के लिए अमेरिका फर्स्ट है और उन्हें इस बात को लेकर संदेह है कि वक्त पड़ने पर अमेरिका समय पर उन्हें बचाने आएगा भी या नहीं। उनका यह बयान ऐसे समय में सामने आया है जब चीन की तरफ से उत्तर कोरिया को होने वाले पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात रोक दिया है। वहीं दूसरी तरफ रूस भी मध्यस्थता करने की बात कर रहा है।
चीन से मिलते सकारात्मक संकेत
अमेरिकी दबाव के बीच चीन की तरफ से कुछ सकारात्मक संकेत मिलते दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, यह बात जगजाहिर है कि उत्तर कोरिया पर जो प्रतिबंध अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से लगाए गए थे उन्हें सही मामले में अगर कोई लागू कर सकता था तो वह चीन ही है। ऐसा इसलिए है कि क्योंकि चीन उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है। हालांकि अब ऐसे संकेत मिल रहे हैं जिनको देखकर लगता है कि उत्तर कोरिया के मामले में चीन अमेरिका का साथ दे रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले कुछ समय में चीन से उत्तर कोरिया को पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात नहीं किया है। हालांकि कोरियाई समाचार एजेंसी की मानें तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद फिलहाल चीन के उठाए कदमों को रिव्यू करने में लगा हुआ है। इस बीच कुछ अखबारों के माध्यम से यह भी कहा गया है कि चीन उत्तर कोरिया से अवैध रूप से लेन-देन जारी रखे हुए है। ऐसे करीब 30 मामले सामने आए हैं जो मीडिया द्वारा उजागर किए गए हैं।
रूस मध्यस्थता करने को इच्छुक रूस
दूसरी तरफ उत्तर कोरिया के मुद्दे पर रूस भी सकारात्मक संकेत दे रहा है। अब इसको लेकर मध्यस्थता करने की बात करने लगा हैं। हम आपको बता दें कि इससे पहले जर्मनी और फ्रांस ने भी इसी तरह की मंशा जताई थी। इन दोनों की तरफ से कहा गया था कि यदि अमेरिका और उत्तर कोरिया चाहेगा तो वह इसके लिए तैयार हैं। इसके अलावा अमेरिका ने भारत से भी कुछ ऐसी ही उम्मीद जाहिर की थी। रूस का कहना है कि अगर दोनों पक्ष इसके लिए राजी हों तो वह यह भूमिका निभाने के लिए तैयार है। रूस लंबे समय से दोनों देशों से तनाव कम करने के लिए बातचीत करने की मांग कर रहा है। उत्तर कोरिया के संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों की अवहेलना कर परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम जारी रखने से तनाव बढ़ा है। रूस के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने मंगलवार को कहा कि तनाव कम करने की रूस की तत्परता स्पष्ट है।
वार्ता शुरू करने की पेशकश
रूस के विदेश मंत्री सर्जेई लावरोव ने सोमवार को अमेरिका और उत्तर कोरिया को बातचीत शुरू करने को कहा था। उन्होंने यह भी कहा था कि रूस इस बातचीत को शुरू कराने के लिए तैयार है। उधर अमेरिका के राजनयिकों को कहना है कि वे मामले के राजनयिक हल का प्रयास कर रहे हैं। जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि बातचीत शुरू होने से पहले उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार त्यागने होंगे। उल्लेखनीय है कि दुनिया के तमाम अनुरोध को दरकिनार कर उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन ने हाल ही में परमाणु परीक्षण किया। इसे लेकर अमेरिकी प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए। हालांकि इन प्रतिबंधों का किम पर कोई असर नहीं हुआ।
चीन ने नहीं किया प्रेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात
आपको बता दें कि चीन ने नवंबर में उत्तर कोरिया को किसी तरह के पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात नहीं किया। उसने एक तरह से उत्तर कोरिया तक पेट्रोलियम उत्पादों की पहुंच सीमित करने के यूएन के प्रयास से आगे बढ़कर काम किया। यही नहीं चीन ने नवंबर में उत्तर कोरिया से कच्चा लोहा, कोयला या लेड का आयात भी नहीं किया।
कॉर्न का निर्यात भी घटा
पिछले सप्ताह यूएन सुरक्षा परिषद ने उस पर नए व्यापार प्रतिबंध लगाए। इसमें उत्तर कोरिया को एक साल में पेट्रोलियम उत्पाद 500,000 बैरल मिलना सीमित किया गया था। यहां आपको बता दें कि उत्तर कोरिया के लिए चीन ईंधन का प्रमुख स्रोत है। हाल ही में जारी सीमा शुल्क डाटा के अनुसार, पिछले महीने चीन ने अलग-थलग पड़े प्योंगयांग को गैसोलिन, जेट ईंधन, डीजल या ईंधन तेल निर्यात नहीं किया। इसके अलावा चीन से उत्तर कोरिया को कॉर्न का निर्यात भी घट गया। पूरे साल चीन और उत्तर कोरिया के बीच व्यापार में भी कमी आई है। नवंबर में प्योंगयांग के साथ चीन का कुल व्यापार 38.8 करोड़ डॉलर (करीब 2485 करोड़ रुपये) का रहा। यह इस साल के महीनों में सबसे कम में शामिल है। इस बीच नवंबर में चीन से उत्तर कोरिया को रसोई गैस और एथनॉल के निर्यात में क्रमश: 58 और 82 फीसद की वृद्धि हुई।
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