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ट्रंप ने बढ़ाई चीन और पाकिस्तान की मुश्किलें, भारत की बल्लेे-बल्ले

अमे‍रिका ने अपनी सुरक्षा नीति का ऐलान कर दिया है। इसकी चार बेहद अहम बातें हैं लेकिन इन्हीं की वजह से पाकिस्तान और चीन परेशान हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 24 Dec 2017 03:26 PM (IST)
ट्रंप ने बढ़ाई चीन और पाकिस्तान की मुश्किलें, भारत की बल्लेे-बल्ले

नई दिल्ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने अपनी बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की घोषणा कर दी है। इसकी घोषणा के बाद से ही इसकी चर्चा खासतौर पर चीन और पाकिस्‍तान में जोर-शोर से हो रही है। इसकी वजह है इस घोषणा में मौजूद चार अहम बातें, जो न सिर्फ पाकिस्‍तान बल्कि चीन के लिए भी परेशानी का सबब बन सकती हैं। ट्रंप ने इस रणनीति की घोषणा ऐसे समय में की है जब चीन और भारत के बीच डोकलाम विवाद फिर बढ़ता दिखाई दे रहा है। इसके अलावा चीन की महत्‍वाकांक्षी योजना ओबीओआर को लेकर चर्चा गर्म है। वहीं चीन और पाकिस्‍तान के लिए यह बात भी परेशान करने वाली हो सकती है कि अमेरिका भारत को विभिन्‍न मुद्दों पर खुला समर्थन देने को तैयार है।

ये हैं घोषणा की चार अहम बातें

इस घोषणा की चार अहम बातों में पहली है कि अमेरिका ने माना है कि चीन उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी है। इसके अलावा उन्‍होंने चीन से निपटने की भी बात की है। इस घोषणा की दूसरी अहम चीज है कि अमेरिका ने भारत को महत्वपूर्ण सहयोगी करार देते हुए द्विपक्षीय रिश्‍तों को मजबूत करने की बात की है। इसकी तीसरी अहम बात है अमेरिका ने भारत को एक अग्रणी वैश्विक शक्ति के तौर पर चिह्न्ति किया है और वह महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारतीय रुख का खुलेआम समर्थन करने को भी तैयार दिखाई दे रहा है। इस घोषणा की चौथी अहम चीज थी कि अमेरिका ने पाकिस्‍तान को एक बार फिर से अपनी जमीन पर मौजूद आतंकी संगठनों को खत्‍म करने के लिए आगाह किया है।

चीन का बयान

ट्रंप की पॉलिसी को लेकर चीन में काफी नाराजगी देखी जा रही है। चीन की तरफ से विदेश मंत्रालय की प्रवक्‍ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग करने के अलावा कोई दूसरा विकल्‍प नहीं है। उन्‍होंने यह भी कहा कि चीन अमेरिका से यह अपील करता है कि उसके रणनीतिक इरादों का गलत अर्थ न निकाला जाए। उन्‍हें ध्‍यान रखना चाहिए कि शीतयुद्ध का समय बीत चुका है, अब इस बारे में सोचना भी बेकार है। यह केवल दोनों देशों का नुकसान ही कर सकता है। उन्होंने यह भी माना है कि दो बड़े देश होने के साथ दोनों देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद हैं। दोनों देशों को इन मतभेदों को आपसी बातचीत से दूर करना चाहिए। यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि दोनों देशों के हित लगभग समान है, लिहाजा दोनों को ही टकराव से बचना चाहिए।

पाकिस्‍तान के लिए सीधा और अहम संदेश

56 पन्‍नों के दस्‍तावेज में पाकिस्‍तान का जिक्र सिर्फ आतंकियों के खात्‍मे के लिए ही किया गया। अपने भाषण में ट्रंप ने यहां तक कहा कि पाकिस्‍तान को अमेरिका की तरफ से हर वर्ष मिलने वाली आर्थिक मदद के लिए शुक्रिया अदा करना चाहिए। उन्‍होने यह भी कहा कि यदि पाकिस्‍तान अमेरिका के साथ रिश्‍तों को बनाए रखना चाहता है तो उसको अपने यहां मौजूद आतंकियों को हर हाल में खत्‍म करना ही होगा। ट्रंप ने इस घोषणा के तहत यह भी साफ कर दिया है कि अमेरिका लगातार पाकिस्‍तान में मौजूद आतंकी संगठनों की वजह से खतरा महसूस करता रहा है।

ट्रंप की घोषणा में चीन के कदमों की आलोचना

आपको बता दें सुरक्षा के मुद्दे पर ट्रंप प्रशासन की यह पहली नीति है जिसमें अमेरिका ने निकट भविष्य में अपने हितों के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों और उनके खिलाफ भावी रणनीति को पेश किया है। इसमें चीन के कई कदमों की आलोचना की गई है। मसलन, दक्षिण चीन सागर समेत दुनिया के अन्य हिस्सों में चलाए जा रहे चीन की वन बेल्ट, वन रोड (ओबोर) परियोजना का जिक्र कर कहा गया कि इनकी वजह से कई देशों की संप्रभुता का हनन हो रहा है। इसे भारत के संदर्भ में भी देखा जा सकता है, क्योंकि गुलाम कश्मीर में चीन की ओबोर परियोजना का एक बड़ा हिस्सा गुजर रहा है। इस वजह से भारत इसका कड़ा विरोध करता है। पिछले दिनों जब ओबोर पर चीन ने वैश्विक सम्मेलन बुलाया था तब भारत ने यह कहते हुए हिस्सा नहीं लिया था कि यह परियोजना उसकी संप्रभुता को नुकसान पहुंचा रहा है।

सहयोग बढ़ाने की ओर अमेरिका

गौरतलब है कि अक्टूबर, 2017 में अमेरिका और भारत के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी विज्ञप्ति में पहली बार यह संकेत दिया गया था कि अमेरिका संप्रभुता के मुद्दे पर भारत के पक्ष में आ रहा है। इसके अलावा अमेरिका ने अपनी ताजा घोषणा में भारत के अलावा जापान, आस्ट्रेलिया के साथ चार देशों के सहयोग को भी बढ़ाने की भी बात कही है। यहां पर यह बात ध्‍यान रखने वाली है कि नवंबर, 2017 में पहली बार उक्त चार देशों की बैठक मनीला में हुई थी। वैश्विक कूटनीति के जानकार मानते हैं कि शीत युद्ध काल के बाद पहली बार कुछ अहम शक्तियों का एक रणनीतिक गठबंधन बन रहा है, लेकिन अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में इसके जिक्र का अलग महत्व है।

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