शांति की खबरों के बीच अब फिर बढ़ रहा है कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव
पिछले दिनों उत्तर कोरिया को लेकर कुछ सकारात्मक खबरें आने के बाद अब फिर यह प्रायद्वीप तनाव से गुजर रहा है। इसके पीछे ये है वजह।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। कोरियाई प्रायद्वीप इन दिनों जबरदस्त तनाव से गुजर रहा है। इसकी वजह है वहां हो रहा युद्धाभ्यास। दरअसल अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों के युद्धाभ्यासों के बीच चीन और रूस ने युद्ध के खतरों से दुनिया को आगाह किया है। उत्तर कोरिया ने भी कहा है कि अमेरिका की वजह से यह पूरा क्षेत्र परमाणु युद्ध के खतरे की तरफ बढ़ रहा है। इस बीच चीन ने उत्तर कोरिया की समुद्री सीमा के निकट लाइव फायर ड्रिल शुरू कर दी है। यह सबकुछ ऐसे वक्त हो रहा है जब कुछ ही दिन संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के तौर पर जेफ्री फेल्टमैन ने उत्तर कोरिया का दौरा किया था। वहीं अमेरिका ने भी उत्तर कोरिया से बिना शर्त वार्ता की बात कही थी।
चीन की लाइव फायर ड्रिल
आपको बता दें कि चीन ने लूशून से लगती समुद्री सीमा के करीब 276 किमी के दायरे में लाइव फायर ड्रिल शुरू की है। लूशून चीन की आर्मी का अहम नेवल बेस है। यहां पर यह भी ध्यान रखना होगा कि पिछले सप्ताह ही चीन ने पूर्वी चीन सागर में बड़ी एक्सरसाइज की थी, जिसमें करीब 40 युद्धपोतों ने हिस्सा लिया था। इससे पहले यहीं पर चीन की एयरफोर्स ने भी एक एक्सरसाइज की थी।
काम कर रही है दबाव की रणनीति
उत्तर कोरिया के मुद्दे पर बात करते हुए दक्षिण कोरिया में भारत के पूर्व राजदूत स्कंद एस तायल ने कहा कि किम को रोकने के लिए ट्रंप की दबाव की रणनीति कुछ काम कर रही है। दूसरी तरफ ट्रंप प्रशासन के अन्य लोग बातचीत के जरिए इस विवाद का हल निकालने की भी कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ जिम मैटिस और दूसरी तरफ रेक्स टिलरसन इस काम को पिछले काफी समय से अंजाम दे रहे हैं। वहीं बीते कुछ वर्षों में यह पहली बार देखने को मिला है कि कुछ देशों ने इस तनाव को कम करने के लिए मध्यस्थता करने की बात की है। यहां तक कि इसके लिए अमेरिका ने भारत से भी उम्मीद जताई है। हालांकि तायल का मानना है कि इसमें भारत की भूमिका कुछ सीमित दायरे में हो सकती है। उनके मुताबिक भारत इस बात पर तभी तवज्जो देना चाहेगा, जबकि इस तरह की अपील उत्तर कोरिया की तरफ से की जाएगी।
चीन ने सयंम बरतने की दी है सलाह
क्षेत्र में बढ़ते तनाव को देखते हुए चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने बीजिंग में दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जेई-इन से वार्ता की और किसी भी स्थिति में उत्तर कोरिया से युद्ध न होने पर जोर दिया। चीन हालांकि इस बात को शुरू से ही कहता रहा है। चीन उत्तर कोरिया पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए पहले ही साफ कर चुका है कि वह किसी भी सूरत से इस क्षेत्र में युद्ध की मंजूरी नहीं देगा। राष्ट्रपति चिनफिंग ने राष्ट्रपति मून के साथ हुई बैठक में भी इस समस्या का समाधान बातचीत के जरिए निकालने की बात कही है। वहीं रूस ने चेताया है कि युद्ध के परिणाम प्रलयंकारी हो सकते हैं, इसलिए उससे हर संभव तरीके से बचा जाए।
परमाणु हथियारों के खात्मे पर यूएन का जोर
जापान पहुंचे संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने कहा है कि क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिए उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों का खात्मा जरूरी है। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों को पूरी गंभीरता के साथ लागू करना होगा। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी से मुलाकात के बाद गुतेरस ने कहा कि भविष्य में होने वाली किसी भी बातचीत के लिए परमाणु निशस्त्रीकरण मुख्य मुद्दा होना चाहिए। उत्तर कोरिया पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के निर्देशों का पूरी तरह से पालन करे, इसके बाद ही उससे बात शुरू की जाए। यह उत्तर कोरिया के भी हित में होगा और उसके खिलाफ खड़े देशों के हित में भी। गुतेरस ने कहा कि सुरक्षा परिषद की एकजुटता बहुत मायने रखती है। उसी से कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियार रहित बनाने का रास्ता खुलेगा।
रूस का ये है रुख
अमेरिका द्वारा उत्तर कोरिया से बिना शर्त वार्ता का रूस ने भी स्वागत किया है। रूस का कहना है कि यह एक बहुत अच्छा संकेत है जो यह दिखाता है कि अमेरिकी नेतृत्व हकीकत से वाकिफ होने की दिशा में बढ़ रहा है। रूस का कहना है कि उकसाने की कार्रवाई को बंद करना होगा। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि उत्तर कोरिया अमेरिका से डरा हुआ महसूस करता है और उसे अपने असतित्व के लिये जनसंहार के हथियार विकसित करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं सूझ रहा। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि रूस उत्तर कोरिया के परमाणु दर्जे को मान्यता नहीं देता और हमें अत्यधिक सावधान रहने की जरूरत है। हालांकि जापान के प्रधानमंत्री एबी का मानना है कि यह समय प्योंगयांग पर अधिकतम दबाव बनाने का है, न कि उससे बातचीत शुरू करने का। उन्होंने कहा कि कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु मुक्त क्षेत्र बनाने से कम शर्त पर कोई बातचीत नहीं होनी चाहिए।
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