यदि सच हो गई उत्तर कोरिया के तानाशाह किम की सोच तो उनकी हो जाएगी पौ-बारह
जिन प्रयासों को लेकर किम बातचीत के लिए आगे आ रहे हैं यदि वह हकीकत बन जाता है तो क्या होगा। कहने का अर्थ है कि यदि दोनों देश एकजुट हो जाते हैं तो क्या होगा।
नई दिल्ली [कमल कान्त वर्मा]। पिछले कुछ से उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच जारी शांति के प्रयास लगातार आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। पिछले चार माह के दौरान इन प्रयासों को नए पंख लग गए हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बीते चार माह के दौरान उत्तर कोरिया ने कोई भी परमाणु परिक्षण नहीं किया है। इसके अलावा विंटर ओलंपिक और फिर पेराओलंपिक गेम्स में उत्तर कोरियाई खिलाडि़यों की शिरकत ने भी इन प्रयासों को आगे बढ़ाने का काम किया है। इसके लिए चाहे न चाहे उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन की तारीफ करनी ही पड़ेगी। विंटर ओलंपिक गेम्स के दौरान किम की बहन किम यो को जिस तरह से दक्षिण कोरिया में तवज्जो मिली और जिस तरह से तीन दशक में पहली बार दक्षिण कोरिया का दल बातचीत के लिए प्योंगयोंग गया, वह बताता है कि दोनों देश सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
हालांकि पेराओलंपिक में दोनों कोरियाई देश एक साथ मार्च नहीं करेंगे, जैसा विंटर ओलंपिक में दिखाई दिया था। बहरहाल, किम यह पहले ही साफ कर चुके हैं कि वह दोनों देशों को उत्तर कोरिया के नेतृत्व में एक ही झंडे के नीचे फिर से एकजुट के पक्षधर हैं। भले ही यह दूर की कौड़ी हो, लेकिन फिलहाल उनकी सोच सही दिशा में जाती दिखाई दे रही है। हालांकि किम की यह एक मजबूरी और चाल भी हो सकती है। बहरहाल जिस दिशा में किम सोच रहे हैं यदि वह सच होता है तो यकीनन उनकी ताकत कई गुणा बढ़ जाएगी।
मून को विश्वास शांति की राह लंबी
जहां तक दोनों देशों के करीब होने की बात है तो दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे भी मानते हैं कि दोनों देशों के बीच खुली शांति की राह काफी लंबी है और इसमें कठिनाईयां भी हैं। उनके मुताबिक उत्तर कोरिया को अपने परमाणु हथियारों के विकास को रोकने के लिए काफी मुश्किलें हैं। उनका यहां तक कहना है कि सिर्फ दोनों कोरियाई देशों के बीच बातचीत से कुछ खास हासिल नहीं होने वाला है इसमें अमेरिका के साथ भी वार्ता जरूरी है। उनका यह बयान इसलिए भी खास हो जाता है क्योंकि दक्षिण कोरिया के विशेष दूत से हुई वार्ता के दौरान किम ने अमेरिका के साथ बातचीत को अपनी रजामंदी दे दी है। किम ने इस दौरान अपने मिलिट्री प्रोग्राम को भी रोके रखने पर रजामंदी जाहिर की है। इसके साथ ही उत्तर कोरिया की तरफ से अपनी सुरक्षा और अपनी सरकार के बारे में कोई समझौता न करने की बात भी साफ कर दी है। लेकिन दक्षिण कोरियाई समाचार एजेंसी ने ये भी कहा है कि किम ने साफ कर दिया है कि उसके परमाणु कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं होगा क्योंकि देश को परमाणु संपन्न बनाने का सपना उनके पिता का है जिसको वह पूरा करने में लगे हैं। लिहाजा इस विषय पर कोई बातचीत नहीं होगी।
लगातार कड़े होते प्रतिबंध
आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका लगातार उत्तर कोरिया पर प्रतिबंधों को और कड़े कर रहा है। ऐसे में दूसरे देशों से व्यापार करना न सिर्फ उत्तर कोरिया के लिए मुश्किल हो रहा है बल्कि अन्य देशों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। हालांकि रूस, चीन अब भी दूसरे रास्तों से इस काम को जारी रखे हुए हैं। वहीं भारत ने भी बुधवार को उत्तर कोरिया के साथ व्यापार पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं। आपको बता दें कि उत्तर कोरिया से चीन का करीब 90 फीसद कारोबार होता है तो वहीं भारत से करीब पांच फीसद कारोबार होता है। चीन और भारत उत्तर कोरिया से व्यापार के मामले में नंबर एक और दो पर आते हैं। बहरहाल भारत ने साफ किया है कि विदेश व्यापार महानिदेशालय ने यह कदम संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंधों के अनुसार उठाया है। इसके मुताबिक कच्चे तेल की आपूर्ति, बिक्री, स्थानांतरण या निर्यात संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के दायरे में आएगा। इसी तरह हेलीकॉप्टरों पर व्यापार प्रतिबंधों के दायरे में अब नए व पुराने पोत भी आएंगे। इसके अलावा औद्योगिक मशीनरी, लोहे, इस्पात व अन्य धातुओं के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाए गए हैं। उत्तर कोरिया से खाद्य व कृषिगत उत्पादों व इलेक्ट्रिकल उपकरणों के आयात पर नए प्रतिबंध लगाए गए हैं।
दक्षिण कोरिया के करीब आने की वजह
प्रतिबंधों के इन्ही डर की वजह से किम को दक्षिण कोरिया के करीब आने के अलावा अब और कोई चारा नहीं बचा है। सैन्य ताकत के रूप में यदि दोनों देशों पर करीब से नजर डालें तो यह साफ समझ आ जाता है कि बीते कुछ दशकों में इस तरफ उत्तर कोरिया ने काफी तरक्की की है। इसके बाद भी वह अभी दक्षिण कोरिया से काफी पीछे आता है। ग्लोबल फायर पावर की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 133 देशों की सूची में जहां उत्तर कोरिया 23वें नंबर पर आता है वहीं दक्षिण कोरिया 12वें नंबर पर आता है। इसके अलावा दक्षिण कोरिया ने अपने व्यापार को जिस तेजी से पूरी दुनिया में फैलाया है वह किसी से अछूता नहीं है। सैन्य क्षमता और कारोबार में उत्तर कोरिया से आगे निकलने वाला दक्षिण कोरिया आज भी अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका के मजबूत कंधों की तरफ ही निर्भर दिखाई देता है।
एक बड़ा सवाल
इस बीच एक बड़ा सवाल ये उभरकर आता है कि जिन प्रयासों को लेकर किम बातचीत के लिए आगे आ रहे हैं यदि वह हकीकत बन जाता है तो क्या होगा। कहने का अर्थ है कि यदि दोनों देश एकजुट हो जाते हैं तो क्या होगा। यह एक ऐसा सवाल है जिसको कोरी कल्पना के आधार पर कहा जा सकता है, लेकिन नकारा फिर भी नहीं जा सकता है।
दक्षिण कोरिया में दुनिया की बड़ी कंपनियां
लिहाजा इसके जवाब को भी तलाशना बेहद जरूरी हो जाता है। आपको बता दें कि दुनिया की कुछ बड़ी कंपनियों में दक्षिण कोरिया की करीब चार कंपनियां आती हैं। इन कंपनियों का पूरी दुनिया में कारोबार है और कहा जा सकता है कि कारोबारी दुनिया में इनका कोई सानी नहीं है। इन कंपनियों का लोहा पूरा विश्व मानता है। इनमें एलजी, सैमसंग इलैक्ट्रॉनिक्स, हुंडई मोटर्स, पास्को, हुंडई हैवी इंडस्ट्री का नाम शामिल है। हम ये इसलिए बता रहे हैं कि यदि कोरियाई प्रायद्वीप के ये दो देश एक हो जाते हैं तो किसके हाथ क्या आएगा और दूसरे शब्दों में कहें तो किम जोंग उन की ताकत कितनी बढ़ जाएगी। यहां आपको ये भी बता दें कि अपुष्ट खबरों के मुताबिक किम जोंग उन की कुल संपत्ति करीब 7 बिलियन यूएस डॉलर तक बताई गई है।
ऐसी है दोनों देशों की माली हालत
इसके अलावा दोनों देशों की यदि माली हालत पर भी नजर डालते हैं तो ये साफ जाहिर होता है कि दक्षिण कोरिया उत्तर कोरिया की तुलना में ज्यादा मजबूत है। दोनों देशों के जीडीपी की तुलना करें तो उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था जहां 33 बिलियन डॉलर की है तो वहीं दक्षिण कोरिया की करीब 1.19 ट्रिलियन डॉलर है। वहीं प्रतिव्यक्ति आय में भी उत्तर के मुकाबले दक्षिण कोरिया कहीं आगे है। दक्षिण कोरिया में प्रति व्यक्ति आय 33200 डॉलर है तो वहीं उत्तर कोरिया में यह महज 1800 डॉलर ही है। इसके बाद भी दक्षिण कोरिया के ऊपर करीब 385600000000 डॉलर का कर्ज है तो वहीं 5000000000 डॉलर का कर्ज है। इसके अलावा दक्षिण कोरिया के पास जहां विदेशी मुद्रा और गोल्ड का करीब 372700000000 डॉलर का भंडार है वहीं उत्तर कोरिया के पास करीब 6000000000 डॉलर का विदेशी मुद्रा और गोल्ड का भंडार है।
बिना विवाद सुलझे आखिर कैसे 1 और 1 ग्यारह हो सकते हैं भारत और चीन
लेबर फोर्स पर नजर
इसके अलावा यदि दोनों देशों में कामगारों की तुलना की जाए तो दक्षिण कोरिया में करीब 27250000 लेबर फोर्स मौजूद है। वहीं यहां बड़े पोर्ट 8 हैं। 3381 किमी के दायरे में यहां पर रेल का नेटवर्क फैला है। इसके अलावा देशभर में करीब 111 एयरपोर्ट मौजूद हैं। यहां पर करीब 103029 किमी के दायरे में सड़कें फैली हैं। वहीं उत्तर कोरिया की यदि हम बात करते हैं तो वहां पर लेबर फोर्स करीब 14000000 है तो पूरे देश में करीब आठ बड़े बंदरगाह भी हैं। इसे अलावा 5242 किमी के दायरे में रेल नेटवर्क भी फैला है और देश में करीब 82 एयरपोर्ट हैं। दक्षिण कोरिया की तुलना में यहां का रोड़ नेटवर्क भी कम है। यह आंकड़े उस सवाल का सीधा जवाब देते दिखाई देते हैं जो ऊपर किया गया था। इनसे साफ जाहिर होता है कि यदि किम दोनों देशों को एक करने में कामयाब हो गए तो इसका सबसे अधिक फायदा भी उनको ही होगा।
उत्तर और दक्षिण कोरिया में बन गई बात, अप्रैल में मिलेंगे मून से मिलेंगे किम!
सोवियत रूस का हिस्सा रहा यूक्रेन पहले ही गिरा चुका है लेनिन की हजारों प्रतिमाएं