भारत के लिए मुसीबत बन सकता है रूस का पाकिस्तान और चीन के करीब आना
बीते कुछ समय में रूस ने जिस तरह से अपना दायरा भारत के घुर विरोधी पाकिस्तान और चीन की तरफ बढ़ाया है उससे कहीं न कहीं भारत को कुछ गलत होने की आशंका हो रही है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। भारत और रूस के बीच वर्षों से मजबूत संबंध रहे हैं। कई मुश्किल हालातों में रूस ने भारत का साथ भी दिया है। भारत और रूस में भले ही कोई सरकार रही हो सभी ने इन संबंधों को नया आयाम देने की भरपूर कोशिश की है। यह दोनों देशों की विदेश राजनीति का एक अहम हिस्सा भी रही है। कश्मीर मामले पर भी रूस हमेशा से ही भारत का साथ देता रहा है। लेकिन अब कुछ समय से उसके रुख में इस मुद्दे पर बदलाव आता दिखाई देने लगा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बीते कुछ समय में रूस ने जिस तरह से अपना दायरा भारत के घुर विरोधी पाकिस्तान और चीन की तरफ बढ़ाया है उससे कहीं न कहीं भारत को कुछ गलत होने की आशंका हो रही है। हालांकि रूस इस आशंका को एक बार सिरे से खारिज कर चुका है। लेकिन यह हकीकत है कि यदि रूस के संबंध पाकिस्तान और चीन से मजबूत होते हैं तो इसका खामियाजा कहीं न कहीं भारत को भुगतना ही पड़ेगा।
रूस के रुख में बदलाव
दरअसल, इसकी वजह रूस के रुख में बदलाव को माना जा रहा है। रूस की क्षेत्रीय जरूरत और उसकी प्राथमिकता में हो रहा बदलाव भारत के लिए समस्या बन सकता है। हम आपको बता दें कि पिछले वर्ष दिसंबर में इस्लामाबाद में छह देशों की सदनों के स्पीकर की कांफ्रेंस हुई थी। इसमें रूस के साथ-साथ चीन, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की और पाकिस्तान ने हिस्सा लिया था। इसमें जिस साझा घोषणापत्र पर इन सभी देशों ने हस्ताक्षर किए थे उस लिहाज से रूस ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की लाइन का समर्थन किया था। इसमें कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान को जम्मू कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव के द्वारा सुलझाना चाहिए।
ओबोर में हिस्सेदार बनने का आग्रह
इतना ही नहीं इसी समय रूस के विदेश मंत्री सर्गी लैवरोव ने भी भारत की यात्रा की थी और इस दौरान उन्होंने चीन के ओबोर प्रोजेक्ट में भारत को साझेदार बनने की सलाह दी थी। इतना ही नहीं सर्गी ने अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया द्वारा ओबोर का जवाब देने के लिए बनाए गए प्रोजेक्ट पर यह कहते हुए सवाल उठाए थे कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में रुकावट डालकर कुछ हासिल नहीं होने वाला है बल्कि इसके लिए सभी को एकजुट होकर खुले दिमाग के साथ आगे बढ़कर काम करना चाहिए। पाकिस्तान और चीन के संबंध में कही गई उनकी यह दोनों ही बातें कहीं न कहीं भारत को परेशानी में डालने के लिए काफी हैं।
रूस के लिए पश्चिम बना सिरदर्द
ऑब्जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत भी ऐसा ही मानते हैं। उनका कहना है कि रूस के लिए पश्चिम हर मोर्चे पर बहुत बड़ी चुनौती खड़ा कर रहा है। वहीं अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को लगता है कि विश्व राजनीति में रूस की बराबर विध्वंसकारी राजनीति और किसी देश की नहीं है। उनकी निगाह में यह चीन से भी कहीं आगे है। बीता एक वर्ष रूस और अमेरिका के रिश्तों में कई मोर्चों पर खटास लेकर आया है। वहीं अमेरिका और भारत के बीच इस दौरान संबंध मजबूत हुए हैं। रूस के रुख में बदलाव की एक वजह यह भी हो सकती है। जहां तक भारत की बात है तो चीन की हिंद महासागर में दखल किसी से भी छिपी नहीं है। चीन लगातार दक्षिण एशिया में अपने पांव पसार रहा है। इतना ही नहीं वह कई बार भारतीय सीमाओं का उल्लंघन तक कर चुका है। इस वजह से भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा है।
चीन-पाकिस्तान बड़ी समस्या
इन सभी के अलावा चीन और पाकिस्तान की दोस्ती हमेशा से ही भारत के लिए नुकसानदायक रही है। दोनों ही हर मोर्चे पर एक दूसरे का समर्थन करते आए हैं। भारत हर वक्त इन दोनों मोर्चे पर परेशानी झेलता आया है। चीन हमेशा से ही भारत को ग्लोबल पावर मानने से इंकार करता आया है। इतना ही नहीं वह सुरक्षा को लेकर उठाई गई भारत की चिंताओं को भी खारिज करता आया है। दूसरी तरफ वह अपनी ताकत को लगातार बढ़ाता रहा है। ऐसे में पश्चिम से जूझ रहे रूस को चीन के रूप में एक नया कूटनीतिक और रणनीतिक साझेदार मिला है जो अमेरिका को लेकर उसकी ही तरह से सोच रहा है। प्रोफेसर पंत का मानना है कि रूस का पाकिस्तान और चीन के करीब होना भारत और रूस के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। आने वाले समय में भी इस पर अनिश्चितता बरकरार रहेगी।
डोकलाम पर भारत का साथ
यहां पर एक बात और ध्यान में रखने वाली है और वो ये है कि जब भारत और चीन के बीच डोकलाम के मुद्दे पर तनाव चरम पर था और सीमा पर दोनों सेनाओं का जमावड़ा हो रहा था, उस वक्त रूस ने भारत का समर्थन किया था। लेकिन अब कुछ समय में रूस की तरफ से कई मुद्दों पर चुप्पी साध लेना एक संश्य जरूर पैदा करता है। इतना ही नहीं जब जब अमेरिका और चीन में दक्षिण चीन सागर को लेकर तीखी बयानबाजी हुई है तब भी रूस ने खामोशी बरती है। उसकी यह पॉलिसी भी कहीं न कहीं चीन का ही समर्थन करती दिखाई देती है। यहां यह भी ध्यान में रखना होगा कि भारत और रूस के राष्ट्राध्यक्षों के बीच पिछले वर्ष जून में आखिरी मुलाकात हुई थी। उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस की यात्रा पर गए थे। इससे पहले ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आए थे।
शी चिनफिंग की पुतिन से मुलाकात
चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग ने बीते वर्ष नवंबर में वियतनाम में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की थी। इस दौरान शी चिनफिंग ने कहा था कि चीन और रूस अपने मूल हितों की रक्षा के लिए एक दूसरे का समर्थन करना जारी रखेंगे। इस दौरान शी ने यह भी कहा था कि वह रूस को विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार मानता है। इसके अलावा चीन रूस के साथ दोनों देशों के बीच संबंधों के उच्च स्तरीय विकास को आगे बढ़ाना, अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास को और मजबूत करना, क्षेत्रीय और वैश्विक शांति, स्थिरता की रक्षा करना चाहता है। इसी मौके पर व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि रूस दोनों देशों के व्यापक रणनीतिक भागीदारी के विकास पर काफी ध्यान देता है। रूस चीन के साथ आर्थिक, ऊर्जा, कृषि, आधारभूत संरचना, विमानन विनिर्माण और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग को आगे मज़बूत करना चाहता है। साथ ही रूस चीन के साथ अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों पर सहयोग का विकास, एपेक समेत विभिन्न बहुपक्षीय संगठनों में संपर्क और समन्वय को गहरा करना और एशिया प्रशांत मुक्त व्यापार क्षेत्र के निर्माण को बढाना चाहता है।
पुतिन लगातार चौथी बार चुने गए राष्ट्रपति
आपको यहां पर बता दें कि व्लादिमीर पुतिन हाल ही में लगातार चौथी बार रूसी राष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचित हुए हैं। उन्हें इस चुनाव में करीब 76 फीसद वोट मिले और उनकी जीत लगभग एकतरफा रही। यह भारत के लिहाज से काफी अच्छी खबर है। राष्ट्रपति बनने से पहले वह रूस के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। हर चुनाव में उनकी जीत का आंकड़ा बढ़ा ही है। उनकी इस जीत से पहले ही चीन में भी एक बड़े बदलाव के बाद शी चिनफिंग को चीन में हमेशा के लिए राष्ट्रपति चुन लिया गया है। पुतिन की यह जीत ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका के साथ उसके संबंधों में लगातार गिरावट आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पुतिन को इस जीत के लिए बधाई दी है।
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