वैश्विक स्तर पर भारत का कद बढ़ाने में शिंजो आबे का महत्वपूर्ण योगदान रहा
वर्ष 2015 में जापान के प्रधानमंत्री के तौर पर शिंजो आबे (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ आरती की थाली लिए हुए) जब भारत की यात्रा पर आए थे तब वह वाराणसी भी गए थे और गंगा आरती में विशेष रूप से सम्मिलित हुए थे। फाइल
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 12 Jul 2022 11:57 AM (IST)
विवेक ओझा। विश्व के सबसे सुरक्षित देशों में से एक माने जाने वाले जापान में वहां के लोकप्रिय नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पर हमला हैरान करने वाला है। शिंजो आबे पर कातिलाना हमला एक बड़े षड्यंत्र की तरफ इशारा कर रहा है और इसके दूरगामी परिणाम साबित हो सकते हैं। शिंजो आबे ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने 2007 में हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए ‘कान्फ्लूएंस आफ द टू सीज’ की अवधारणा देते हुए साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी में चीन के प्रभुत्व को चुनौती दी थी। इसके बाद उन्होंने चीन के बेल्ट रोड पहल और मोतियों की लड़ी की नीति को काउंटर करते हुए एशिया सिक्योरिटी डायमंड इनीशिएटिव भी लान्च किया था जिसमें उन्होंने एशिया के लोकतांत्रिक देशों को एक साथ आने की बात कही थी।
शिंजो ने अमेरिका, आस्ट्रेलिया भारत और जापान के संगठन क्वाड को मूर्तमान स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शिंजो भारत के सबसे मजबूत सहयोगियों में से एक थे। उन्हीं के समय में भारत ने जापान के साथ ‘कंप्रिहेंसिव इकोनमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट’ किया और एफटीए की ओर बढ़ा। भारत जापान का डिफेंस पार्टनर और स्ट्रैटेजिक पार्टनर भी है, एक्ट ईस्ट पालिसी, इंडो पेसिफिक स्ट्रेटजी, हिंद महासागर की सुरक्षा जैसे कई अन्य मामलों में जापान भारत का सदाबहार मित्र रहा है। भारत जापान विजन 2025 इसका सबूत है कि वह हमें हर स्तर पर मदद दे रहा है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका की साङोदारी को मजबूती देने वाले नेता बहुत से देशों और संगठनों को रास नहीं आते। लेकिन इस आधार पर शिंजो पर हमला लोकतांत्रिक ताकतों पर हमला है।
भारत हितैषी : शिंजो आबे के ही नेतृत्व में जापान एकमात्र ऐसी विदेशी शक्ति के रूप में हमारे सामने आया जिसने भारत के संवेदनशील उत्तर पूर्वी क्षेत्र में अवसंरचनात्मक विकास की परियोजनाओं को चलाने का निर्णय किया। इसके लिए 2017 में दोनों देशों ने मिलकर एक्ट ईस्ट फोरम का गठन किया जिसका मुख्य उद्देश्य जापान द्वारा भारत के पूवरेत्तर राज्यों में अवसंरचनात्मक विकास के लिए निवेश को बढ़ावा देना है। भारत और जापान ने चीन के मोतियों की लड़ी की नीति के जवाब में एशिया अफ्रीका ग्रोथ कारिडोर की शुरुआत का निर्णय 2019 में किया था जो भारत और जापान की एक महत्वाकांक्षी सामुद्रिक अंतरसंपर्क पहल है।
शिंजो आबे के समय में ही भारत और जापान के मध्य भुगतान संतुलन की समस्या से निपटने के लिए वर्ष 2019 में 75 अरब डालर का करेंसी स्वैप समझौता भी किया गया। इसके अलावा शिंजो आबे के समय में भारत और जापान के रक्षा संबंधों को नई ऊंचाई दी गई और इसी कड़ी में 30 नवंबर 2019 को भारत और जापान के बीच नई दिल्ली में पहली टू प्लस टू वार्ता संपन्न हुई। यह इस बात का प्रमाण है कि प्रतिरक्षा और सामरिक महत्व के मामलों में दोनों देश आपसी सहयोग को एक नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं। दोनों देशों की विशेष सामरिक साङोदारी को बढ़ावा देने पर केंद्रित इस वार्ता में जापानी विदेश मंत्री तोशी मित्सू और रक्षा मंत्री तारो कोनो तथा भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस वार्ता के दौरान कई महत्वपूर्ण मामलों पर सार्थक संवाद किया। इसलिए इस वार्ता को टू प्लस प्लस टू संवाद भी कहते हैं।
इस वार्ता के दौरान हिंद महासागर और प्रशांत महासागर सहित विश्व के अन्य सागरों, महासागरों की स्वतंत्रता, नौगमन की स्वतंत्रता की आवश्यकता पर बल देते हुए समुद्री क्षेत्र में सहयोग को सुनिश्चित करने की बात की गई। भारत और जापान दोनों एशियाई शक्ति के रूप में एशिया पैसिफिक और हिंद प्रशांत क्षेत्र में प्रभुत्व की राजनीति, क्षेत्रीय विवादों, प्राकृतिक और अन्य संसाधनों पर स्वामित्व के अनैतिक प्रयासों जैसी गतिविधियों पर लगाम लगाना चाहते हैं, क्योंकि इन सागरीय क्षेत्रों में स्थिरता, व्यापारिक मार्गो की स्वतंत्रता इन दोनों देशों के आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकती है। दोनों देशों ने वार्ता में इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा पर विशेष बल दिया।
शिंजो के कार्यकाल में ही भारत और जापान के बीच अमेरिका के ‘कामकेसा समझौते’ की तर्ज पर एक अति महत्वपूर्ण सैन्य समझौता ‘एक्विजिशन एंड क्रास सर्विग एग्रीमेंट (एसीएसए) को मूर्तमान स्वरूप देने का निर्णय वर्ष 2018 में हुआ था। यह लाजिस्टिक्स (सैन्य और अन्य सामग्री जैसे खाद्य सामग्री आदि) को आपस में साझा करने का समझौता है। अमेरिकी नौसेना के साथ दोनों देश हिंद तथा प्रशांत महासागर में जिस तरह से अभ्यास करते हैं, उस दृष्टि से सैन्य उपकरणों का एक दूसरे को साझा करने का निर्णय काफी तार्किक था। वर्ष 2021 में यह समझौता कार्यशील हो गया है जिसने हिंद महासागर में भारत और जापान के रणनीतिक संबंधों को एक नया आयाम प्रदान किया।
इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा : भारत और जापान के लिए इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता का प्रश्न महत्वपूर्ण है। वर्ष 2019 में ही भारत जापान और श्रीलंका ने हिंद महासागर में चीन प्रभाव वाले हंबनटोटा बंदरगाह के निकट कंटेनर टर्मिनल खोलने का निर्णय किया है। इसी प्रकार यदि एशिया पैसिफिक के लिहाज से बात करें तो प्रशांत महासागर के भाग पूर्वी चीन सागर में जापान के सेनकाकू द्वीप को चीन दियायू द्वीप नाम देते हुए उस पर कब्जा करने का भरसक प्रयास करता आया है। इसलिए इन मामलों में साङो विचार के साथ भारत और जापान ने टू प्लस टू वार्ता के तहत जापान के स्वतंत्र और मुक्त इंडो पैसिफिक विजन और भारत के एक्ट ईस्ट पालिसी को नई ऊर्जा के साथ बढ़ावा देने की बात की है।
वर्ष 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जापान यात्र के दौरान दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि उनके बीच ‘विशेष सामरिक और वैश्विक साङोदारी’ केंद्रित संबंध रहे। वर्ष 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्ट ईस्ट पालिसी की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना था। इस पालिसी में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सहयोग के अलावा एशिया पैसिफिक के अन्य देशों के साथ सहयोग और समन्वय पर बल दिया गया। इस पालिसी के एक अपरिहार्य हिस्से के रूप में भारत ने जापान की पहचान की और यही कारण है कि वर्ष 2015 में दोनों देशों ने ‘जापान भारत विजन 2025 विशेष सामरिक और वैश्विक साङोदारी’ की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य हंिदू प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि के लिए काम करना है।
वर्ष 2016 में उस समय के जापानी प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि भारत जापान संबंध का नया युग शुरू हो चुका है। आपसी संबंधों को मजबूती देने के इन क्रमिक प्रयासों के पीछे दोनों देशों के साझा और व्यक्तिगत हित दोनों ही छिपे हुए हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण एशिया को एक ध्रुवीय अर्थव्यवस्था की चाह रखने वाले चीन को प्रतिसंतुलित करने की जरूरत है।जापान के प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 2007 में शिंजो एबी जब पहली बार भारत आए थे, तब उन्होंने भारतीय संसद में एक ऐतिहासिक भाषण दिया था। इस भाषण को ‘दो समुद्रों के मिलन’ के रूप में जाना जाता है। अपने इसी भाषण में शिंजो आबे ने फ्री और ओपन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की वकालत की थी। वर्ष 2015 में वह फिर भारत की यात्रा पर आए थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ वाराणसी में गंगा आरती में भी शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत की जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि जापान लंबे समय से भारत के लोगों से परिचित है। योग, सिनेमा, खानपान के साथ ही भारतीय संस्कृति जापान में काफी लोकप्रिय है। इसे भारत जापान सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती देने वाली यात्र कहा गया था।
भारत जापान संबंधों की इसी मजबूत नींव को रखने के चलते भारत सरकार ने 2021 में देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से शिंजो एबी को सम्मानित किया था। वर्ष 2012 के बाद शिंजो एबी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भारत-जापान के रिश्ते बेहद मजबूत हुए। दोनों देशों के बीच बुलेट ट्रेन, समुद्री सुरक्षा, नागरिक परमाणु ऊर्जा, एक्ट ईस्ट पालिसी समेत कई महत्वपूर्ण समझौते हुए थे। एबी के प्रधानमंत्री रहते जापान की सेल्फ-डिफेंस फोर्स और भारतीय सेना के बीच सप्लाई और सर्विसेज के आदान-प्रदान का समझौता हुआ था।
शिंजो आबे जापान में सबसे लंबे समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री थे। वह 2006 में पहली बार जापान के प्रधानमंत्री बने थे। हालांकि यह कार्यकाल उनका केवल एक साल का था। इसके बाद 26 दिसंबर 2012 से 16 सितंबर 2020 तक उन्होंने तीन बार देश का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। वर्ष 2020 में स्वास्थ्य कारणों से प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था।भारत की विकासात्मक आकांक्षाओं में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया जैसी पहल का समर्थन करने के लिए उन्होंने भारत सरकार से हाथ मिलाया और जापान भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रमुख स्रोत के रूप में उभरा। उनके नेतृत्व में मालाबार अभ्यास में नियमित भागीदार के रूप में जापान के शामिल होने से भारतीय नौसेना के साथ उसका सहयोग और गहरा हुआ। उनकी निगरानी में जमीनी स्तर पर सेनाओं के बीच अभ्यास भी शुरू हुआ।वहीं 2020 में हुए टोक्यो ओलिंपिक के आयोजन के दौरान सुरक्षा व्यवस्था को मजबूती देने के लिए एक संबंधित अभ्यास में भारतीय सेना ने जापान के सैनिकों को आतंकवाद निरोधक अभियानों का प्रशिक्षण दिया था। शिंजो ने भारत द्वारा शुरू की गई ‘हिंद-प्रशांत महासागर पहल’ की सराहना भी मुक्त कंठ से की। वर्ष 2017 में जब चीन ने भूटान में डोकलाम के विवाद को बढ़ावा दिया था, उस समय क्वाड जैसे संगठन को पुनर्जीवित करने में शिंजो की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इस प्रकार यह साफ है कि भारत जापान द्विपक्षीय संबंधों की मजबूत नींव का जिक्र जब भी होगा वह शिंजो एबी के उल्लेख के बिना अधूरा रहेगा।[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]