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China Sri Lanka Trade Relation: ड्रैगन के पंजे में फड़फड़ाता कर्ज में डूबा श्रीलंका

China Sri Lanka Trade Relation चीन की इस विस्तारवादी नीति और कर्ज जाल से मुक्ति के खिलाफ विश्व के देशों की मुखरता व चीनी साम्राज्यवाद के मुकाबले का सही समय यही है जिसमें भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 22 Mar 2022 01:27 PM (IST)
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China Sri Lanka Trade Relation: चीन के पंजे में फडफ़ड़ाता श्रीलंका

अवधेश माहेश्वरी। श्रीलंकाई राष्ट्रपति के सचिवालय को बुधवार को हजारों की भीड़ ने घेर लिया। पूरी तरह कर्ज में डूबे देश में महंगाई और दैनिक प्रयोग की वस्तुओं की भारी कमी से परेशान लोग राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे का इस्तीफा चाहते थे। आखिर श्रीलंकाई नेतृत्व से कुछ ही समय में यह विश्वास खत्म कैसे हो गया? कुछ साल पहले तक आर्थिक प्रगति के ठीक रास्ते पर चल रहे श्रीलंका में ऐसी स्थिति कैसे पैदा हो गई? इसके पीछे ड्रैगन की कर्ज नीति का जाल और वुहान वायरस का मुख्य योगदान है। उसने एक फलते-फूलते देश को ऐसा जकड़ा कि अब श्रीलंकाई लोग भूख से तड़प रहे तो, देश ड्रैगन के पंजे से छूटने के लिए फडफ़ड़ा रहा है।

पूर्व राष्ट्रपति महेंद्र राजपक्षे विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद चीन की योजनाओं पर दस्तखत करते गए। यहीं से श्रीलंका की आर्थिक स्थिति के दुर्दिनों की नींव रख गई। पेट्रोल की कीमतें फरवरी-2022 की तुलना में 80 फीसद तक बढ़ गई हैं। हालात में सुधार की गुंजाइश दिखाई ना देने की वजह से पासपोर्ट आफिस में युवाओं की कतार लग रही हैं, जो रोजी-रोटी के लिए देश छोडऩा चाहते हैं। श्रीलंकाई रुपये की कीमत डालर की तुलना में पिछले दिनों में ही 25 फीसद गिर गई है, इसमें 15 प्रतिशत तो अवमूल्यन ही किया गया है। इसके बावजूद वहां दैनिक उपभोग की जरूरी वस्तुओं के आयात का बिल चुकाने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है।

श्रीलंका पर 51 अरब डालर का विदेशी ऋण होने से अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां रेटिंग खराब कर चुकी हैं। विदेशी मुद्रा भंडार भी खराब स्थिति के साक्ष्य दे रहा है। जनवरी में श्रीलंका के पास सिर्फ 2.36 अरब डालर मौजूद थे, जबकि देश को चार अरब डालर से ज्यादा इस साल विदेशी कर्जों की किश्त के रूप में चुकाने हैं। संसद में विपक्षी सदस्य और अर्थशास्त्री हर्ष दा सिल्वा ने ऐसे हालात में यथार्थपरक बयान दिया था कि विदेशी मुद्रा भंडार और वर्ष 2022 में विदेशी देनदारी की स्थिति से हम स्थिति का आकलन कर लें। हम दिवालिया होने वाले हैं। परंतु सरकार रास्ता निकालने की कोशिश की बात कर रही है। वह ईरान को तेल के भुगतान के बदले चाय निर्यात पर बात कर रही है। सरकार मान रही है इससे हर माह 50 लाख डालर की भुगतान के आंकड़े में कमी आएगी। यह बहुत मजबूत तर्क नहीं है।

आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए जनवरी में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के दौरे के समय लगभग पांच अरब डालर के चीनी ऋण भुगतान को री शिड्यूल करने की मांग उठाई थी, लेकिन चीनी विदेश मंत्री ने मुंह फेर लिया। यह चीन की नीयत को बता गया। चीन का ऋण सामान्य रूप से एशियाई विकास बैंक की 2.5 प्रतिशत की दर की तुलना में 6.5 प्रतिशत की दर पर लिया गया है। इसमें से 1.4 अरब डालर हम्बनटोटा बंदरगाह के निर्माण पर खर्च की गई धनराशि है। चीन ने श्रीलंका को ऋण जाल में फंसाने के लिए ही वहां दुनिया का सबसे बड़ा ऐसा बंदरगाह बनाया था, जिस पर माल की कोई आवाजाही ही नहीं थी। बिना आय के श्रीलंका इसके ऋण का भुगतान नहीं कर सका तो, 2017 में 99 साल की लीज पर ले लिया। इसके बाद भी हालात सुधर नहीं सके। ऋण चुकाने के लिए देश को पिछले साल चीन से एक अरब डालर और ब्याज पर लेने पड़े।

चीनी ऋण के साथ श्रीलंका को दूसरा दर्द वुहान वायरस ने दिया है। दो साल में विदेशी पर्यटकों का बिस्तर खुला नहीं है। होटल और रिसोर्ट में सन्नाटा रहता है। अब हालात में सुधार के लिए श्रीलंकाई सरकार के पास पश्चिमी देशों और भारत की ओर देखने के अलावा कोई उपाय नहीं है। उसे भारत से संबंध सुधारकर आइएमएफ में उसके प्रभाव का उपयोग करना पड़ेगा। भारत को भी निश्चित रूप से पड़ोसी देश की सहायता करनी ही होगी, जिससे वहां चीन और संपत्ति हासिल करने के लिए सौदेबाजी का रास्ता आगे नहीं बढ़ा सके।

अवधेश माहेश्वरी