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UK Politics: कंजर्वेटिव पार्टी के लिए आसान नहीं होगा नए पीएम का चुनाव, चुन भी लिया तो सामने चुनौतियों का पहाड़

लिज ट्रस के इस्तीफे के बाद कंजर्वेटिव पार्टी के लिए नए प्रधानमंत्री का चयन करना आसान नहीं है। यदि नए प्रधानमंत्री का सलेक्‍शन कर भी लिया जाता है तो उसके सामने चुनौतियों का पहाड़ होगा जिससे निपटना इतना आसान भी नहीं है। पढ़ें ब्रिटिश पॉलिटिक्‍स की पड़ताल करती रिपोर्ट...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Updated: Fri, 21 Oct 2022 07:57 PM (IST)
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जानें कंजर्वेटिव पार्टी के लिए नया पीएम चुनना कितना चुनौतीपूर्ण है।
नई दिल्‍ली, आनलाइन डेस्‍क। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रस के इस्तीफे के बाद संभावित दावेदारों को लेकर अटकलों का दौर जारी है। समाचार एजेंसी रायटर ने अपनी रिपोर्ट में बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) और ब्रिटेन के पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक को संभावित दावेदारों में सबसे अग्रणी बताया है। इसकी कई वजहें बताई जा रही हैं। हालांकि दावेदारों को सोमवार तक कंजर्वेटिव सांसदों से 100 वोट हासिल करने होंगे, ताकि वे आगे की प्रतियोगिता में बने रह सकें। आइए इस रिपोर्ट में जानें ब्रिटेन के सियासी गलियारों से क्‍या संकेत मिल रहे हैं और कंजर्वेटिव पार्टी के लिए नया पीएम चुनना कितना चुनौतीपूर्ण है।

पार्टी ने उत्तराधिकारी चुनने की प्रक्रिया शुरू की

लिज ट्रस का उत्तराधिकारी चुनने के लिए कंजर्वेटिव पार्टी में नामांकन प्रक्रिया गुरुवार शाम से शुरू हो गई। यह प्रक्रिया सोमवार दोपहर दो बजे तक जारी रहेगी। अगर दो से ज्यादा उम्मीदवारों ने प्रधानमंत्री पद के लिए नामांकन पत्र भरे तो उन्हें दो प्रत्याशी होने तक वोटिंग होगी। इसके बाद दो प्रत्याशियों के बीच मुकाबला होगा और विजयी प्रत्याशी प्रधानमंत्री बनेगा। यह प्रक्रिया 28 अक्टूबर तक पूरी कर ली जाएगी। अगर एक ही नामांकन प्राप्त हुआ या किसी प्रत्याशी पर आम सहमति बन गई तो मतदान नहीं होगा और पहले ही उसका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित कर दिया जाएगा।

आम चुनाव हुए तो कंजरवेटिव के हारने का अनुमान

संभावित दावेदारों के बीच से विजेता की घोषणा सोमवार या अगले शुक्रवार को की जाएगी। बोरिस जॉनसन और ऋषि सुनक को प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। विश्‍लेषकों का कहना है कि बोरिस जॉनसन अगला आम चुनाव जीत सकते हैं लेकिन उन पर जिस तरह से आरोप लगे हैं उससे यह भी हो सकता है कि वे कंजर्वेटिव सांसदों के 100 मतों की सीमा तक न पहुंच पाएं। हालांकि जनमत सर्वेक्षणों में कहा गया है कि यदि अभी राष्ट्रीय चुनाव करा दिए जाएं तो मुमकिन है कि सभी कंजरवेटिव दिग्‍गज हार जाएं।

लोक्रप्रियता के मामले में जानसन और सुनक ही प्रबल दावेदार 

फाइनेंशियल टाइम्स (Financial Times) की रिपोर्ट कहती है कि बोरिस जानसन यदि सत्‍ता में वापसी करते हैं तो यह ब्रिटेन की सियासत के लिए 'हास्यास्पद' स्थिति होगी। वहीं सट्टेबाजों के पूर्वानुमानों में ब्रिटेन के पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक सबसे प्रबल दावेदार के तौर पर उभर रहे हैं जबकि जॉनसन को दूसरे स्‍थान पर बताया जा रहा है। तीसरे स्थान पर पेनी मोर्डंट (Penny Mordaunt) का नाम आ रहा है जो पूर्व रक्षा मंत्री हैं। पेनी मोर्डंट (Penny Mordaunt) पार्टी सदस्यों के बीच लोकप्रिय हैं। पिछली बार पेनी मोर्डंट (Penny Mordaunt) तीसरे स्थान पर थीं। 

नया पीएम चुनना बेहद चुनौतीपूर्ण

ऋषि सुनक जिन्होंने लिज ट्रस की वित्तीय योजना से अर्थव्यवस्था को खतरा बताया था, साथ ही बोरिस जॉनसन के खिलाफ विद्रोह को हवा देने में मददगार भूमिका निभाई थी, उनके चयन में समस्‍या यह है कि वह अभी भी पार्टी के कुछ सदस्यों के बीच अलोकप्रिय बने हुए हैं। यानी ऋषि सुनक और बोरिस जॉनसन लोकप्रिय होने के बावजूद पार्टी के भीतर में प्रतिकूल स्थितियों का सामना कर रहे हैं। पेनी मोर्डंट (Penny Mordaunt) को एक नए चेहरे के रूप में देखा जा रहा है लेकिन लोकप्रियता के मामले में जानसन और सुनक से पीछे हैं। यही कारण है कि कंजर्वेटिव पार्टी के लिए नया पीएम चुनना बेहद चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है।

विपक्ष कर रहा आम चुनाव कराने की मांग 

मजेदार बात यह कि इनमें से किसी दिग्‍गज ने अभी तक अपनी उम्‍मीदवारी की औपचारिक घोषणा नहीं की है। मौजूदा वक्‍त में ब्रिटेन के सियासी तापमान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2016 के ब्रेक्सिट वोट के बाद यह बेहद अस्थिर नजर आ रही है। भले ही कंजर्वेटिव पार्टी के पास संसद में बड़ा बहुमत है और अगले दो साल तक उसके आम चुनाव में जाने की संभावना नहीं है, लेकिन विपक्षी दलों, कुछ अखबारों और यहां तक कि उसके कुछ सांसदों ने भी आम चुनाव कराए जाने की जरूरत बताई है।

नया पीएम चुन भी लिया तो उसके सामने चुनौतियों का पहाड़ 

वहीं विश्‍लेषकों का कहना है कि ब्रिटेन की कमान जो भी संभाले उसके सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा होगा। नए नेता को एक ऐसी अर्थव्यवस्था विरासत में मिलेगी जो मंदी की ओर बढ़ रही है। देश में बढ़ती ब्याज दरों और 10% से अधिक मुद्रास्फीति के साथ लाखों लोगों को जीवन-यापन की दुश्‍वारियों का सामना करना पड़ रहा है। ताजा सर्वेक्षणों से पता चला है कि ब्रिटिश कारोबारियों ने अपने खर्चों पर लगाम लगाई है। वहीं सार्वजनिक उधारी के उम्मीद से बदतर आंकड़े गंभीर आर्थिक चुनौतियों का इशारा कर रहे हैं।

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