Indira Gandhi: इलाहाबाद हाईकोर्ट का वो फैसला, जिसके बाद लगी इमरजेंसी; देश में बनी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार
12 जून 1975 का इमरजेंसी से गहरा संबंध है। आज के ही दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया था जिसने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया। आखिर क्या था वह फैसला और आपातकाल से उसका क्या संबंध है? आइए जानते हैं...
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला बना इमरजेंसी लगाने का आधार
आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस, घनश्याम तिवारी और अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।जब से मैंने आम लोगों और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी।
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— Dainik Jagran (@JagranNews) June 12, 2023
राजनारायण ने इंदिरा के खिलाफ दायर किया मुकदमा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजनारायण के आरोपों को माना सही
राजनारायण के इन आरोपों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सही माना। वोटरों को घूस देना और सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल करने जैसे 14 आरोप सिद्ध होने के बाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को दोषी मानते हुए छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया। (फोटो- इलाहाबाद हाईकोर्ट)इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की अपील
- राजनारायण ने 1971 के आम चुनाव में रायबरेली संसदीय क्षेत्र से इंदिरा गांधी के हाथों चुनाव हारने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला दर्ज कराया था।
- जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।
- हालांकि, इंदिरा ने उच्च न्यायालय के फैसले को नहीं माना और सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी।
- 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को तो बरकरार रखा, लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की इजाजत दे दी।
देश में आपातकाल कब लागू हुआ?
देश में आपातकाल 25 जून 1975 को लागू हुआ। यह 21 मार्च 1977 तक यानी 21 महीने तक रहा। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में इसे सबसे विवादास्पद फैसला माना जाता है। इसे भारतीय लोकतंत्र में काला अध्याय भी कहा जाता है। (फोटो- इंदिरा गांधी के खिलाफ लगा पोस्टर)आपातकाल का असर
- आपातकाल में चुनाव को स्थगित कर दिया गया।
- नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की जाने लगी।
- पुलिस ने इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया।
- इतना ही नहीं, प्रेस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।
- इंदिरा के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया।
- 'लोकनायक' जयप्रकाश नारायण ने इसे भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि कहा था।
आरएसएस पर लगा बैन
आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है यानी आरएसएस पर बैन लगा दिया गया। ऐसा माना गया कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है और यह सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर सकती है। पुलिस ने आरएसएस के हजारों कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया। हालांकि, संघ ने फैसले को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ सत्याग्रह में हिस्सा लिया। इसके अलावा, अकाली दल ने आपातकाल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया ।आपातकाल लागू करने का फैसला इंदिरा गांधी को पड़ा भारी
आपातकाल लागू करने के करीब दो साल बाद इंदिरा गांधी ने अपने पक्ष में विरोध की लहर तेज होती देख लोकसभा को भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश की। हालांकि, यह फैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ खुद इंदिरा को अपनी सीट रायबरेली में हार का सामना करना पड़ा। जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। वहीं, संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 50 से घटकर 153 हो गई।30 साल बाद देश में बनी गैर-कांग्रेसी सरकार
भारतीय राजनीति में यह महत्वपूर्ण समय था, क्योंकि 30 साल बाद केंद्र में कोई गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी। कांग्रेस को बिहार, पंजाब, हरियाणा,उत्तर प्रदेश और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली। नई सरकार ने आपातकाल के दौरान किए गए फैसलों की जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया। हालांकि, नई सरकार दो साल ही टिक पाई और आपसी कलह के कारण 1979 में गिर गई।कभी संसद न जाने वाले प्रधानमंत्री बने चौधरी चरण सिंह
चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता को लेकर सवाल उठाया, जो जनसंघ के भी सदस्य थे। चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के सहयोग से केंद्र में सरकार बना ली। वे प्रधानमंत्री बने। हालांकि, उनकी सरकार भी महज पांच महीने ही रही। चरण सिंह कभी संसद न जाने वाले प्रधानमंत्री थे।आपातकाल के बारे में जरूरी बातें
- जय प्रकाश नारायण ने 25 जून को आपातकाल के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन करने का एलान किया। उन्होंने इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने की मांग करते हुए संपूर्ण क्रांति का नारा दिया, जिसके बाद राष्ट्रपति के द्वारा अध्यादेश को मंजूरी देने के बाद देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।
- संजय गांधी ने 1976 में देशभर में नसबंदी अभियान चलाया। इस दौरान पुरुषों की जबरदस्ती नसबंदी कराई गई। इसे लेकर संजय गांधी को आलोचना का भी सामना करना पड़ा।
- 18 जनवरी 1976 को इंदिरा गांंधी ने लोकसभा भंग करते हुए देश में आम चुनाव कराने की घोषणा की।
- उन्होंने कहा कि मार्च में चुनाव होंगे।
- सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।
- इसके दो महीने बाद 23 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त कर दिया गया।
इंदिरा ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को हटाया
कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने अपनी मर्जी से कानून लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने खिलाफ लगे सभी आरोपों को नए कानून पास कर हटा दिए। संविधान का 42वां संशोधन यही कहानी बयां करता है। इंदिरा के पास उस समय लोकसभा में दो तिहाई बहुमत था, जिसका उन्होंने बखूबी फायदा उठाया।अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की। आपातकाल 25 जून 1975 को लागू किया गया।
आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 यानी 21 महीने की अवधि तक लागू रहा। इसके बाद आम चुनाव की घोषणा की गई और सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को अपने एक फैसले में इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अमान्य करार दिया था। कहा जाता है कि इस फैसले के बाद ही सत्ता जाने के डर की वजह से इंदिरा ने देश में आपातकाल लागू कर दिया।
1975 के आपातकाल के समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। हालांकि, आपातकाल लागू करने का फैसला उन्हें भारी पड़ा और 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
भारत में प्रथम आपातकाल 25 जून 1975 को लगा था। उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं।