बटुकेश्वर दत्त: एक महान स्वतंत्रता सैनानी जिन्हें आजाद भारत में भी करना पड़ा था संघर्ष
आजादी की खातिर 15 साल जेल में बिताने वाले बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में उन्हें वो सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे। लेकिन अंतिम समय में उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान जरूर किया गया।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 18 Nov 2018 02:15 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। बटुकेश्वर दत्त का नाम जहन में आते ही स्वतंत्रता संग्राम की वह तस्वीर सामने आ जाती है जब भगत सिंह के साथ मिलकर उन्होंने केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका था। इस बम धमाके का मकसद किसी की जान लेना नहीं था बल्कि भारतीयों के हकों को मारने वाली अंग्रेज हुकूमत को नींद से जगाना था। ये दिन 8 अप्रैल 1929 का था। इस एक बम धमाके ने वो काम कर दिया था जिसको भगत सिंह चाहते थे। हालांकि इन दोनों को ही इस घटना के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था। बटुकेश्वर दत्त की यदि बात करें तो उन्होंने आगरा में स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में उल्लेखनीय कार्य किया था। वे एक महान स्वतंत्रता सैनानी थे।
एक परिचय
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, जिला नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था। यहां के अतिरिक्त उनका बचपन बंगाल प्रांत के वर्धमान में भी बीता। लेकिन पढ़ाई लिखाई की बात करें तो उन्होंने स्नातक स्तरीय शिक्षा कानपुर से पूरी की। यहां से ही उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया। यहां पर ही 1924 में उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई थी। इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में काम करना शुरू कर दिया। यहां पर ही उन्होंने बम बनाना सीखा। भगत सिंह के साथ फैंका था बम
8 अप्रैल 1929 को जब भगत सिंह के साथ मिलकर दत्त ने दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा में बम फैंका था उस दिन वहां पर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया जाने वाला था। लेकिन बम धमाके की वजह से यह बिल पास नहीं हो पाया था। इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया।
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, जिला नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था। यहां के अतिरिक्त उनका बचपन बंगाल प्रांत के वर्धमान में भी बीता। लेकिन पढ़ाई लिखाई की बात करें तो उन्होंने स्नातक स्तरीय शिक्षा कानपुर से पूरी की। यहां से ही उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया। यहां पर ही 1924 में उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई थी। इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में काम करना शुरू कर दिया। यहां पर ही उन्होंने बम बनाना सीखा। भगत सिंह के साथ फैंका था बम
8 अप्रैल 1929 को जब भगत सिंह के साथ मिलकर दत्त ने दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा में बम फैंका था उस दिन वहां पर भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया जाने वाला था। लेकिन बम धमाके की वजह से यह बिल पास नहीं हो पाया था। इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया।
लाहौर षड़यंत्र केस
यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षड़यंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। वहीं बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया।
यहां पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षड़यंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। वहीं बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया।
ऐतिहासिक भूख हड़ताल
दत्त ने जेल में 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। बाद में उन्हें 1937 में सेल्यूलर जेल से पटना स्थित बांकीपुर केन्द्रीय कारागार ले जाया गया और फिर यहां से एक वर्ष बाद 1938 में उन्हें रिहा कर दिया गया था। लेकिन काला पानी भेजे जाने के बाद वहां पर उन्हें गंभीर बीमारी हो गई थी। दत्त को पटना से रिहा करने के कुछ समय बाद ही दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और फिर उनहें 1945 में रिहा कर दिया गया। आजाद भारत में भी किया संघर्ष
नवंबर, 1947 में बटुकेश्वर ने अंजली दत्त से शादी की और पटना को ही अपना घर बना लिया। लेकिन आजाद भारत में उन्हें वो सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे। दत्त के जीवन के कई अज्ञात पहलुओं का खुलासा नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब (बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगी) में हुआ है। यह किताब अनिल वर्मा ने लिखी है। इसमें लिखा गया है कि आजादी की खातिर 15 साल जेल में बिताने वाले दत्त ने अपने जीवनयापन के लिए जब रोजगार की तलाश की तो उन्हें एक सिगरेट कंपनी में एजेंट के रूप में पहली नौकरी मिली। इसके बाद उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी का एक छोटा सा कारखाना खोला, लेकिन उसमें काफी घाटा हो गया और जल्द ही बंद हो गया। कुछ समय तक टूरिस्ट एजेंट एवं बस परिवहन का काम भी किया, परंतु एक के बाद एक कामों में असफलता ही उनके हाथ लगी।बीमारी का नहीं हुआ सही इलाज
1963 में वह बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। 1964 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब उनकी बीमारी की खबर दिल्ली पहुंची तो केंद्रीय गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा और पंजाब के मंत्री भीमलाल सच्चर ने उनसे मुलाकात की। उनके ईलाज के लिए पंजाब सरकार ने एक हजार रुपए का चेक बिहार सरकार को भेजकर वहां के मुख्यमंत्री केबी सहाय को लिखा कि यदि वे उनका इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं तो वह उनका दिल्ली या चंडीगढ़ में इलाज का व्यय वहन करने को तैयार हैं। इसके बाद भी सही इलाज के अभाव उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया। अंतत: 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया। जद्दोजहद के बाद एम्स में भर्ती
यहां लाने के बाद सबसे पहले उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। लेकिन यहां पर भी वह इलाज नहीं था जो उन्हें चाहिए था। दरअसल उनके इलाज के लिए कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया जाना था जो केवल एम्स में ही उपलब्ध था। तमाम तरह की देरी के बाद 23 नवंबर को पहली बार उन्हें कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया गया और 11 दिसंबर को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया। यहां पर पहली इस बात का पता चला की बटुकेश्वर दत्त को कैंसर है और उनकी जिंदगी के कम ही दिन शेष हैं।अंतिम इच्छा
एक बार उनका हालचाल जानने जब पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन एम्स पहुंचे तो उन्होंने कहा कि वह उनके लिए क्या कर सकते हैं। इस पर बटुकेश्वर ने जवाब दिया कि उनका दाह संस्कार अपने मित्र और साथी भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए। उनके अंतिम दिनों में उनसे मिलने के लिए खुद भगत सिंह की मां भी एम्स आई थीं। 17 जुलाई को वह कोमा में चले गये और 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर दत्त बाबू इस दुनिया से विदा हो गये। उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया। जब चीन के 1500 सैनिकों के लिए काल बन गई थी शैतान की छोटी सी टुकड़ीभारत और मालदीव के लिए बेहद खास है पीएम मोदी का सालेह के शपथ ग्रहण में जाना जब भूख से बिलखती बच्ची को फ्लाइट अटेंडेंट ने पिलाया अपना दूध तो सभी ने कहा- 'वाह'
दत्त ने जेल में 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। बाद में उन्हें 1937 में सेल्यूलर जेल से पटना स्थित बांकीपुर केन्द्रीय कारागार ले जाया गया और फिर यहां से एक वर्ष बाद 1938 में उन्हें रिहा कर दिया गया था। लेकिन काला पानी भेजे जाने के बाद वहां पर उन्हें गंभीर बीमारी हो गई थी। दत्त को पटना से रिहा करने के कुछ समय बाद ही दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया और फिर उनहें 1945 में रिहा कर दिया गया। आजाद भारत में भी किया संघर्ष
नवंबर, 1947 में बटुकेश्वर ने अंजली दत्त से शादी की और पटना को ही अपना घर बना लिया। लेकिन आजाद भारत में उन्हें वो सम्मान नहीं मिल सका जिसके वह हकदार थे। दत्त के जीवन के कई अज्ञात पहलुओं का खुलासा नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब (बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगी) में हुआ है। यह किताब अनिल वर्मा ने लिखी है। इसमें लिखा गया है कि आजादी की खातिर 15 साल जेल में बिताने वाले दत्त ने अपने जीवनयापन के लिए जब रोजगार की तलाश की तो उन्हें एक सिगरेट कंपनी में एजेंट के रूप में पहली नौकरी मिली। इसके बाद उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी का एक छोटा सा कारखाना खोला, लेकिन उसमें काफी घाटा हो गया और जल्द ही बंद हो गया। कुछ समय तक टूरिस्ट एजेंट एवं बस परिवहन का काम भी किया, परंतु एक के बाद एक कामों में असफलता ही उनके हाथ लगी।बीमारी का नहीं हुआ सही इलाज
1963 में वह बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। 1964 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब उनकी बीमारी की खबर दिल्ली पहुंची तो केंद्रीय गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा और पंजाब के मंत्री भीमलाल सच्चर ने उनसे मुलाकात की। उनके ईलाज के लिए पंजाब सरकार ने एक हजार रुपए का चेक बिहार सरकार को भेजकर वहां के मुख्यमंत्री केबी सहाय को लिखा कि यदि वे उनका इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं तो वह उनका दिल्ली या चंडीगढ़ में इलाज का व्यय वहन करने को तैयार हैं। इसके बाद भी सही इलाज के अभाव उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया। अंतत: 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया। जद्दोजहद के बाद एम्स में भर्ती
यहां लाने के बाद सबसे पहले उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। लेकिन यहां पर भी वह इलाज नहीं था जो उन्हें चाहिए था। दरअसल उनके इलाज के लिए कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया जाना था जो केवल एम्स में ही उपलब्ध था। तमाम तरह की देरी के बाद 23 नवंबर को पहली बार उन्हें कोबाल्ट ट्रीटमेंट दिया गया और 11 दिसंबर को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया। यहां पर पहली इस बात का पता चला की बटुकेश्वर दत्त को कैंसर है और उनकी जिंदगी के कम ही दिन शेष हैं।अंतिम इच्छा
एक बार उनका हालचाल जानने जब पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन एम्स पहुंचे तो उन्होंने कहा कि वह उनके लिए क्या कर सकते हैं। इस पर बटुकेश्वर ने जवाब दिया कि उनका दाह संस्कार अपने मित्र और साथी भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए। उनके अंतिम दिनों में उनसे मिलने के लिए खुद भगत सिंह की मां भी एम्स आई थीं। 17 जुलाई को वह कोमा में चले गये और 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर दत्त बाबू इस दुनिया से विदा हो गये। उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया। जब चीन के 1500 सैनिकों के लिए काल बन गई थी शैतान की छोटी सी टुकड़ीभारत और मालदीव के लिए बेहद खास है पीएम मोदी का सालेह के शपथ ग्रहण में जाना जब भूख से बिलखती बच्ची को फ्लाइट अटेंडेंट ने पिलाया अपना दूध तो सभी ने कहा- 'वाह'