आंध्र प्रदेश के बाद अब गहलोत सरकार भी स्थानीय लोगों को निजी क्षेत्र में देगी 75 फीसदी आरक्षण
कहीं ऐसा ना हो कि स्थानीय लोगों को 75 फीसद आरक्षण देने पर राजस्थान में उद्योग लगने ही बंद हो जाएं। इसलिए इस मामले में पहले निजी क्षेत्र की रायशुमारी बहुत जरूरी है।
By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Sun, 15 Sep 2019 10:35 PM (IST)
जयपुर [ नरेन्द्र शर्मा ]। आंध्रप्रदेश के बाद अब राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार निजी क्षेत्र की नौकरियों में राजस्थान के मूल निवासियों को 70 से 75 फीसदी आरक्षण देने की तैयारी कर रही है। गहलोत सरकार सरकार से पैकेज का फायदा उठाने वाले बड़े उधोगों से लेकर पब्लिक-प्राइवेट पार्टर्नशिप में चल रहे प्रोजेक्ट एवं छोटे उधोगों में भी प्रदेश के लोगों को रोजगार में आरक्षण मिलेगा।
गहलोत सरकार के इस फैसले से सबसे अधिक असर प्रदेश के निजी क्षेत्र में काम कर रहे बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों पर होगा। इन दोनों राज्यों के लोग बड़ी संख्या में प्रदेश के निजी क्षेत्र में काम कर रहे है। स्थानीय लोगों को आरक्षण देने के साथ ही न्यूनतम वेतन को लेकर भी सरकार गाइडलाइन तय करेगी। गाइडलाइन के हिसाब से ही निजी क्षेत्र स्थानीय लोगों को वेतन देंगे।आंध्रप्रदेश सरकार ने स्थानीय लोगों को 75 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया था। राज्य के उधोग मंत्री परसादी लाल मीणा का कहना है कि जब अन्य राज्य ऐसा कर रहे हैं तो हम अपने युवाओं के लिए ऐसा निर्णय क्यों नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल में होने वाली सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं में एक पेपर स्थानीय भाषा का होता है। इससे इन तीनों राज्यों के युवाओं को सरकारी नौकरियों में अन्य प्रदेशों के युवाओं के मुकाबले अधिक अवसर मिलता है।किसी तरह का भेदभाव नहीं
उन्होंने कहा कि हम किसी तरह का भेदभाव नहीं करते, लेकिन स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र में आरक्षण पर विचार किया जा रहा है। अंतिम निर्णय विचार-विमर्श के बाद ही होगा।
निजी क्षेत्र से विचार-विमर्श होगास्थानीय लोगों को निजी क्षेत्र में रोजगार में आरक्षण देने को लेकर 19 सितंबर को शासन सचिवालय में एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में उधोग संघों के प्रतिनिधियों के साथ ही बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधियों को भी बुलाया गया है। बैठक में राज्य सरकार के उधोग एवं श्रम विभाग के अधिकारी मौजूद रहेंगे।अधिकारियों का मानना है कि निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने के रास्ते में कई तरह की दिक्कतें भी है। फार्मा, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग और केमिकल सहित कई उद्योग ऐसे है, जिनमें कर्मचारियों की नियुक्ति अखिल भारतीय स्तर पर होती है, उनमें स्थानीय स्तर पर योग्य कर्मचारी न मिलने का भी खतरा है। निजी क्षेत्र के बैंकों में भी स्थानीय स्तर पर आरक्षण लागू करने में कई तरह की बाधाएं है। इन बाधाओं को देखते हुए ही सरकार ने निजी क्षेत्र से इस पूरे मामले में चर्चा करने का फैसला किया है।
राजनीतिक लाभ लेने की रणनीति आंध्रप्रदेश में जगनमोहन रेड्डी सरकार ने निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों को 75 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया तो वहां के युवाओं में उनके प्रति लगाव बढ़ा है। आंध्रप्रदेश सरकार के फैसले के बाद कनार्टक,गुजरात और तमिलनाडु में भी इसी तरह की मांग उठने लगी है।गहलोत सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि यह निर्णय राजनीतिक रूप से यह फैसला सत्ताधारी पार्टी के लिए फायदेमंद है। आगामी स्थानीय निकाय एवं पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में कांग्रेस को इस निर्णय से लाभ हो सकता है। हालांकि अधिकारियों का मानना है कि इसके साइड इफेक्ट भी कम नहीं है।
अधिकारियों का कहना है कि कहीं ऐसा ना हो कि स्थानीय लोगों को 75 फीसद आरक्षण देने पर राजस्थान में उद्योग लगने ही बंद हो जाएं। इसलिए इस मामले में पहले निजी क्षेत्र की रायशुमारी बहुत जरूरी है। राजस्थान के श्रमिकों से लेकर उद्योगपति तक दूसरे राज्यों में है। ऐसे में अगर दूसरे राज्यों में भी इस तरह का आरक्षण लागू हुआ तो निजी क्षेत्र में दूसरे राज्यों में काम कर रहे राजस्थान के श्रमिक और कर्मचारियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।