साथ ही लोकसभा की 16 सीटें जीतकर मोदी सरकार 3.0 में अहम सहयोगी की भूमिका में उभरे। उनका लौटना कोई सामान्य घटना नहीं है। 13 साल 247 दिन तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने खुद को राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित कर लिया था।
हैदराबाद को विकसित करने में नायडू की रही अहम भूमिका
मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान नायडू की छवि एक आर्थिक सुधारक और सूचना प्रौद्योगिकी आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले नेता की रही है। उन्होंने हैदराबाद को साइबर सिटी के तौर पर विकसित किया और राज्य के बुनियादी ढांचे के विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिसमें नई राजधानी अमरावती का निर्माण भी शामिल है। उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जाने लगा था।
जब जनता के बीच भावुक हो उठे थे नायडू
ऐसे में उनका सत्ता से हटना, फिर गिरफ्तारी और 52 दिन की जेल ने उन्हें हाशिए में डाल दिया था। लगभग आठ महीने पहले जब वह जेल से बाहर आए तो शायद वह खुद पर भी इतना भरोसा नहीं कर पा रहे थे कि सक्रिय राजनीति में इस तरह लौट पाएंगे, तभी उन्होंने कुरनूल की जनसभा में आंध्र प्रदेश की जनता से मार्मिक अपील की कि यदि आप मुझे और मेरी पार्टी को चुनकर विधानसभा भेजते हैं, तभी आंध्र प्रदेश विकास का मुंह देख पाएगा, अन्यथा यह मेरा आखिरी चुनाव होगा। इस अपील ने काम किया और जनता ने उन्हें सत्ता सौंप दी।
चुनावी रण में उतरकर सत्तासीन जगन मोहन रेड्डी को शिकस्त देकर उन्होंने राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति के दरवाजे पर जो जोरदार दस्तक दी है। उससे साबित हो गया कि वह वाकई ‘वास्तुकार’ हैं। उन्हें टूटी, बिखरी चीजों को समेटकर को बखूबी अच्छा गढ़ना आता है।
पीएचडी अधूरी छोड़ राजनीति में कूदे
उम्र के 74वें पड़ाव पर चल रहे चंद्रबाबू नायडू भारतीय राजनीति के उन चंद किरदारों में से हैं, जिन्होंने अपनी एक कार्यशैली विकसित की। उनका जन्म अब दक्षिण-पूर्वी आंध्र में तिरुपति के पास एक छोटे से गांव नरवरिपल्ली में एक किसान परिवार में हुआ। पांच भाई-बहनों के परिवार में चंद्रबाबू सबसे बड़े हैं।
चूंकि उनके गांव में कोई स्कूल नहीं था, इसलिए उन्होंने पास के शेषपुरम के सरकारी स्कूल से पांचवीं और चंद्रगिरि के सरकारी स्कूल से बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी की। जब वह तिरुपति के श्री वेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी कालेज ऑफ आर्ट्स से स्नातक कर रहे थे, उसी समय उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रख दिया था।1972 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और स्नातकोत्तर की पढ़ाई जारी रखी। 1974 में, प्रोफेसर डा. डीएल नारायण के मार्गदर्शन में उन्होंने प्रोफेसर एनजी रंगा के आर्थिक विचारों के विषय पर अपनी पीएचडी पर काम शुरू किया, लेकिन पीएचडी पूरी नहीं की। शुरुआती जीवन में वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे।
ससुर के खिलाफ बगावत और तख्तापलट
वर्ष 1980 में एन. चंद्रबाबू नायडू ने दक्षिण भारत के ख्यात अभिनेता व तेलुगुदेशम (एनटीआर) के संस्थापक एनटी रामाराव की बेटी नारा भुवनेश्वरी से शादी की। शादी के बाद भी नायडू कांग्रेस में रहे। 1983 में वह टीडीपी के प्रत्याशी से विधानसभा चुनाव हार गए। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर टीडीपी का दामन थामा।
अगस्त 1995 में नायडू ने एनटी रामाराव (एनटीआर) की दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती (या पार्वती) के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अपने ससुर के खिलाफ एक सफल इंट्रापार्टी बनाकर तख्तापलट किया। उसके बाद में उन्हें सर्वसम्मति से लेतुगूदेशम पार्टी का नेता चुना गया और उन्होंने एनटीआर के स्थान पर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला।उन्होंने पार्टी को मजबूत करना जारी रखा और 1996 के लोकसभा चुनाव में तेलुगूदेशम ने कुल 16 सीटें जीतीं। सितंबर-अक्टूबर 1999 के लोकसभा चुनावों में तेलुगूदेशम ने और भी बेहतर प्रदर्शन किया, 29 सीटें हासिल कीं और एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में नायडू की प्रतिष्ठा को मजबूत किया।
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राजग को (शामिल हुए बिना) अपनी पार्टी का समर्थन दिया, जिसने 1999 और 2004 के बीच देश पर शासन किया था। इसके अलावा अक्टूबर 1999 में उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लिया। उस समय उन्होंने अपनी आधुनिक सोच और कार्यशैली के आधार पर हैदराबाद को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने की कोशिश की थी और इन्फ्रा स्ट्रक्चर विकसित किया था। इस दौर में उनके लिए एक शब्द इस्तेमाल किया जाने लगा था कॉरपोरेट सीएम'।
राज्य विभाजन के बाद फिर मुख्यमंत्री बने
वर्ष 2014 और 2019 में चंद्रबाबू नायडू, जगन मोहन रेड्डी की पार्टी से चुनाव हार गए थे। वर्ष 2004 में वह फिर प्रदेश की सत्ता लौटे। आंध्र प्रदेश से विभाजन कर तेलंगाना का गठन किए जाने के बाद वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। सूचना प्रौद्योगिकी के विकास पर नायडू के जोर ने विभाजन से पहले आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद को नए निवेश के लिए भारत के सबसे आकर्षक स्थलों में से एक में बदलने में मदद की।
उन्हेंने हैदराबाद का असल वास्तुकार माना जाता है। जब यह तेलंगाना का हिस्सा बन गया तो उन्होंने हैदराबाद के टक्कर में अमरावती को विकसित कर आंध्र प्रदेश की नई राजधानी बनाने की घोषणा की थी। शपथ ग्रहण से एक दिन पहले भी उन्होंने अमरावती को राजधानी बनाने की अधूरी योजना को पूरा करने के संकल्प को दोहराया। चूंकि आंध्र प्रदेश का सरकारी खजाना खाली है, ऐसे में इस योजना के साथ उनकी 'सुपर सिक्स' योजना कैसे पूरा करेंगे, इस पर सबकी नजर रहेगी।
राष्ट्रीय राजनीति में दबदबा
राज्य में हार-जीत और राजनीतिक उठापटक के बावजूद चंद्रबाबू नायडू का दबदबा कायम था। उनकी नजर पूरी तरह से राष्ट्रीय राजनीति पर थी और उसके लिए वह सुनियोजित ढंग से आगे भी बढ़ रहे थे। वर्ष 1996 और 1998 के चुनाव के दौरान एचडी देवेगौड़ा व आइके गुजराल के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान संयुक्त मोर्चा का नेतृत्व किया है।वर्ष 1998 में उन्होंने अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार को समर्थन दिया। उन्होंने अटल बिहारी के नेतृत्व में बनीं राजग सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया था। वह राजग के संयोजक भी रहे।
मुख्यमंत्री बनकर ही सदन में लौटने का दावा किया पूरा
वर्ष 2019 के चुनाव में तेलुगूदेशम पार्टी बुरी तरह से हार गई। विपक्ष के नेता के तौर पर उनकी मौजूदगी थी, लेकिन वर्ष 2021 में परिवार के सदस्य के खिलाफ टिप्पणी के विरोध में नायडू ने विधानसभा से बहिर्गमन किया था और कहा कि वह मुख्यमंत्री बनने के बाद ही सदन में लौटेंगे।उनकी यह शपथ पूरी होते हुए दिख रही है। स्किल डेवलपमेंट घोटाले में राज्य की सीआईडी ने उन्हें 9 सितंबर 2023 को गिरफ्तार किया। वह लगभग 52 दिन राजा महेंद्रवरम केंद्रीय जेल में रहे।
स्ट्रैटेजिक प्लानर
नायडू के बेटे नारा लोकेश बताते हैं उनके पिता बेहद अच्छे स्ट्रैटेजिक प्लानर हैं। वह जितने दिन जेल में रहे, उन्होंने उस समय को चुनावी रणनीति बनाने में लगाया। 2019 में जब वह चुनाव हारे थे, उसके एक महीने के भीतर उन्होंने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। श टाइम कंसल्टिंग के साथ वह नियमित रूप से बैठक करते थे। विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने जगन सरकार को घेरना शुरू कर दिया था।हालांकि जब वह जेल गए तो हम लोग ना उम्मीद हो गए थे, पर उन्होंने जेल में बिताए 52 दिनों का प्लानिंग बनाने में बहुत बेहतर ढंग से उपयोग किया। जब वह जेल में थे तो जनसेना पार्टी के पवन कल्याण को मिलने नहीं दिया गया, लेकिन किसी को यह पता नहीं था कि वे दोनों वर्ष 2022 में ही मिल चुके थे और अगली सरकार के लिए योजना बना चुके थे।2019 में जिन 6000 पंचायत कर्मियों को मजबूरन जगन सरकार में शामिल होना पड़ा था, उन्हें वापस लाने के लिए ग्राउंड वर्क किया। इस चुनाव में वह मददगार साबित हुआ। चंद्रबाबू नायडू ने बेरोजगारी और निवेश में कमी को मुद्दा बनाया और चुनावी लड़ाई को जगन सरकार और आम लोगों के बीच की लड़ाई बनाने में सफल हुए।
वैश्विक गैर राजनीतिक थिंक टैंक की स्थापना
सिर्फ राजनीतिक परिदृश्य पर ही नहीं, ग्लोबल लीडर के तौर पर भी अपनी छाप छोड़ने की चाह रखते हैं। उन्होंने एनटीआर मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की, जिसमें मुफ्त शिक्षा प्रदान करना, रक्त आधान सुविधाएं प्रदान करना, स्वास्थ्य शिविर आयोजित करना और सशक्तिकरण और आजीविका कार्यक्रमों का समर्थन करना जैसी पहल शामिल है।ट्रस्ट हैदराबाद में एक ब्लड बैंक और थैलेसीमिया केंद्र के साथ-साथ विशाखापत्तनम और तिरुपति में भी ब्लड बैंकों का प्रबंधन करता है। उन्होंने सतत परिवर्तन के लिए हैदराबाद में चंद्रबाबू नायडू ग्लोबल फोरम फार सस्टेनेबल ट्रांसफार्मेशन (जीएफएसटी) की वर्ष 2020 में स्थापना की। इसे अर्थव्यवस्थाओं और समुदायों में स्थिरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक वैश्विक गैर-लाभकारी और अराजनीतिक थिंक टैंक के रूप में तैनात किया गया है।
एक उद्यमी भी हैं नायडू
जून 2023 में इसने हैदराबाद में 'डीप टेक्नोलॉजीज' पर एक सेमिनार की मेजबानी की। इसकी परियोजनाओं में भारत की स्वतंत्रता के 100वें वर्ष के अनुरूप विजन इंडिया@2047 का विकास शामिल है। वह एक उद्यमी भी हैं। 1992 में उन्होंने एक डेयरी उद्यम हेरिटेज फूड्स लिमिटेड की स्थापना की।वर्तमान में नायडू की पत्नी नारा भुवनेश्वरी उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक का पद संभालती हैं, जबकि नायडू की बहू नारा ब्राह्मणी कार्यकारी निदेशक के रूप में कार्य करती हैं। हेरिटेज के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सैकड़ों आउटलेट हैं। चुनाव जीतने के बाद इस कंपनी के शेयर में काफी उछाल आया। इसकी काफी चर्चा थी।
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