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विपक्षी गठबंधन में आए नए दलों में केवल सपा ही कांग्रेस का 'हाथ' थामने को उत्सुक, रिवर्स गियर में I.N.D.I.A की गाड़ी

विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन के दलों के बीच सीटों के तालमेल की सियासी गाड़ी पांच महीने पहले जहां से स्टार्ट हुई वास्तविक रूप में अब तक वहां से आगे नहीं बढ़ पायी है। कांग्रेस के सामने फिलहाल गठबंधन का विकल्प बिहार में राजद झारखंड में झामुमो महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना यूबीटी तथा तमिलनाडु में द्रमुक के साथ ही दिखाई दे रहा है।

By Jagran News Edited By: Anurag GuptaUpdated: Sat, 03 Feb 2024 07:58 PM (IST)
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कांग्रेस से नाराज ममता बनर्जी (फाइल फोटो)
संजय मिश्र, नई दिल्ली। विपक्षी आईएनडीआईए गठबंधन के दलों के बीच सीटों के तालमेल की सियासी गाड़ी पांच महीने पहले जहां से स्टार्ट हुई वास्तविक रूप में अब तक वहां से आगे नहीं बढ़ पायी है। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के आईएनडीआईए गठबंधन के एकजुट मैदान में उतरने के तमाम दावों के विपरीत कुछ एक प्रमुख घटक दल एकला चलो की राह पर चलने की घोषणा कर रहे हैं तो कुछ ने सत्तापक्ष की ओर छलांग मारते हुए पाला ही बदल दिया है।

कांग्रेस को दर्जनभर सीटें देने के लिए तैयार सपा

जदयू के आईएनडीआईए छोड़ने के बाद तृणमूल कांग्रेस के अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने के एलान से साफ है कि विपक्षी गठबंधन के सीटों के तालमेल की गाड़ी आगे बढ़ना तो दूर रिवर्स गियर में दिखाई दे रही है। इस लिहाज से कांग्रेस के लिए उम्मीद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ही है, जो अब भी आईएनडीआईए गठबंधन की मजबूती की पैरोकारी कर रही है। साथ ही कांग्रेस को तकरीबन दर्जनभर लोकसभा सीटें देने के लिए भी तैयार है।

विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए के अस्तित्व में आने के समय से ही कांग्रेस लगातार तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को साधने के लिए उन्हें तवज्जो देती आ रही है, लेकिन दीदी ने सीटों के तालमेल से लेकर पश्चिम बंगाल में राहुल गांधी की न्याय यात्रा को लेकर जैसी बेरूखी दिखाते हुए उनकी राजनीतिक पहल पर टीका-टिप्पणी की। उससे यह साफ है कि तृणमूल सुप्रीमो अपने सूबे में कांग्रेस को एक सीमा से ज्यादा सियासी जगह देने का जोखिम नहीं उठाना चाहती।

TMC ने कांग्रेस को दो सीटों की पेशकश की थी

राजनीतिक वास्तविकता को भांपते हुए कांग्रेस बंगाल में छह लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए सहर्ष तैयार है, मगर ममता दो सीटों से अधिक देने को तैयार नहीं हुई और न्याय यात्रा के दौरान राहुल के माकपा नेताओं संग मंच साझा करने को आधार बनाते हुए अकेले चुनाव मैदान में जाने की घोषणा कर दी, जबकि हकीकत यह भी है कि विपक्षी गठबंधन की बैठकों में नेताओं सीताराम येचुरी और डी राजा जैसे वामपंथी नेताओं संग मंच साझा करने में दीदी को कोई दिक्कत नहीं रही थी।

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ममता का यह रूख कांग्रेस को इस लिहाज से भी आहत करेगा कि आईएनडीआईए के गठन में सूत्रधार की भूमिका निभाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गठबंधन का संयोजक बनाने के प्रस्ताव का उन्होंने विरोध किया तो कांग्रेस नेतृत्व ने उनके सुर में सुर मिलाया। नीतीश के खेमा बदलने की वजह चाहे जो भी हो इसमें एक कारण यह भी रहा है।

मुंबई में पिछले साल एक सितंबर को हुई आईएनडीआईए की बैठक में ममता के साथ आम आदमी पार्टी प्रमुख दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने सीट बंटवारे के लिए 31 अक्टूबर की समयसीमा तय की। पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के व्यस्त रहने की वजह से यह पहल लगभग तीन महीने ठप रही और फिर 31 दिसंबर तक तालमेल को सिरे चढ़ाने की कसरत तेज की गई। इसके बाद मकर संक्राति और फिर 31 जनवरी की दो अन्य समयसीमा भी पार हो चुकी है।

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आईएनडीआईए के इन नेताओं ने फंसाया पेंच

इसी बीच, नीतीश कुमार एनडीए के पाले में जा चुके हैं। ममता ने एकला चलो राग की बात कह दी है। आम आदमी पार्टी को लेकर भी तस्वीर अभी तक साफ नहीं हुई है। ऐसे में कांग्रेस के सामने फिलहाल गठबंधन का विकल्प बिहार में राजद, झारखंड में झामुमो, महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना यूबीटी तथा तमिलनाडु में द्रमुक के साथ ही है। इन दलों से सीट बंटवारे की राह में पार्टी को बहुत दिक्कत इसलिए भी नहीं है कि इन सभी पार्टियों के साथ कांग्रेस का गठबंधन आईएनडीआईए के अस्तित्व में आने से काफी पहले से है। इससे साफ है कि आईएनडीआईए में शामिल हुई पार्टियों में केवल अखिलेश यादव की सपा ही कांग्रेस का हाथ थामने के लिए अब भी तैयार है।