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अब मिजोरम फतह पर हिमंत बिस्वा सरमा की निगाहें, पूर्वोत्तर में भाजपा की जीत में निभाई अहम भूमिका

अब असम के मुख्यमंत्री सरमा की नजर मिजोरम पर है जो पूर्वोत्तर का एकमात्र राज्य है जहां भाजपा सत्ता में नहीं है। राज्य में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं और असम के मुख्यमंत्री निश्चित तौर पर वहां भाजपा के अच्छे प्रदर्शन के लिए अपनी ताकत झोंक देंगे।

By AgencyEdited By: Mohd FaisalUpdated: Sun, 05 Mar 2023 03:29 PM (IST)
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अब मिजोरम फतह पर हिमंत बिस्वा सरमा की निगाहें (फाइल फोटो)
गुवाहाटी, एजेंसी। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में पूर्वोत्तर में भाजपा गठबंधन को बड़ी जीत मिली है। इस जीत का श्रेय मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को दिया जा रहा है, क्योंकि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पूर्वोत्तर में भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं। वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का छह साल से अधिक समय से नेतृत्व कर रहे हैं।

सनबोर शुलई ने हिमंत बिस्वा सरमा पर की टिप्पणी

दरअसल, मेघालय में कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के साथ संभावित गठबंधन पर टिप्पणी करते हुए भाजपा नेता और मेघालय के पूर्व मंत्री सनबोर शुलई ने हिमंत बिस्वा सरमा पर टिप्पणी की थी। उन्होंने नतीजों वाले दिन कहा था कि एनपीपी के साथ गठबंधन करने का निर्णय सरमा द्वारा लिया जाएगा। उस शाम असम के मुख्यमंत्री ने ही बीजेपी और एनपीपी के बीच गठजोड़ की घोषणा की थी।

सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने निभाई अहम भूमिका

बता दें कि मेघालय में साल 2018 के चुनावों में बीजेपी और एनपीपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। भाजपा उस राज्य में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी और अंत में 47 सीटों पर लड़ने के बाद भी केवल दो सीटें जीतने में सफल रही। हालांकि, यह सरमा का जादू ही था, जिसने भाजपा को एनपीपी के साथ उस राज्य में सत्ता का आनंद लेने दिया। इस बार भी एनपीपी और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा।

चुनाव के बाद संगमा के साथ बातचीत को खुला रखा

असम के मुख्यमंत्री ने कॉनराड संगमा के साथ बातचीत को खुला रखा। ताकि अगर एनपीपी बहुमत से कम हो जाए तो बीजेपी सत्ता में वापस आ सके। पहाड़ी राज्य में मतगणना के दिन से ठीक पहले सरमा और संगमा ने गुवाहाटी के एक होटल में बैठक भी की थी। उस बैठक में सरकार के गठन के लिए संभावित गठजोड़ का गठन किया गया था। राजनीतिक पंडित अक्सर कहते हैं कि त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदलने के पीछे सरमा का दिमाग था और यह निर्णय भाजपा के लिए अच्छा रहा।

टिपरा मोथा पार्टी के प्रमुख के साथ अच्छे संपर्क किए स्थापित

त्रिपुरा में चुनाव से ठीक पहले बीजेपी की स्थिति अस्थिर थी और सरमा ने नई उभरी शक्तिशाली टिपरा मोथा पार्टी (टीएमपी) के साथ बातचीत करके स्थिति का प्रबंधन किया। वह टीएमपी प्रमुख और शाही वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा के बीच हुई कई दौर की वार्ता के सूत्रधार थे। हालांकि किशोर और भाजपा के बीच अलग तिप्रालैंड राज्य के पक्ष में किशोर की राय के कारण चर्चा विफल रही। हालांकि, भाजपा ने अपनी अलग राज्य की मांग को लेकर टिपरा मोथा पर हमला किया था, लेकिन सरमा के प्रद्योत किशोर के साथ अच्छे संपर्क में थे। यह इस कारण से स्पष्ट था कि यदि भाजपा के पास संख्याबल कम होता तो त्रिपुरा के शाही परिवार के वंशज के साथ एक नई चर्चा शुरू की जा सकती थी।

सरमा ने किया था जमकर चुनाव-प्रचार

त्रिपुरा में अपने दम पर भाजपा के जादुई आंकड़े को पार करने के बाद भी सरमा ने शनिवार को टिप्पणी की है कि वार्ता भाजपा और टीएमपी के बीच फिर से शुरू हो सकती है, लेकिन यह संवैधानिक ढांचे के तहत होना चाहिए, न कि त्रिपुरा को विभाजित करने की शर्त पर। इसके अलावा सरमा ने 16 फरवरी से पहले त्रिपुरा में अपने सभी मंत्रियों, अधिकांश विधायकों और सांसदों को जोरदार प्रचार करने के लिए उतारा था। असम के मुख्यमंत्री भी भाजपा के अभियान की गति को उच्च बनाए रखने के लिए त्रिपुरा में जमीन पकड़ रख रहे थे।

मिजोरम पर है सरमा की नजर

अब असम के मुख्यमंत्री सरमा की नजर मिजोरम पर है, जो पूर्वोत्तर का एकमात्र राज्य है जहां भाजपा सत्ता में नहीं है। राज्य में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं और असम के मुख्यमंत्री निश्चित तौर पर वहां भाजपा के अच्छे प्रदर्शन के लिए अपनी ताकत झोंक देंगे।