राष्ट्रीय राजनीति को नया उबाल देगी बिहार की जातिवार गणना रिपोर्ट, OBC पर BJP के वर्चस्व को तोड़ने की कोशिश तेज
राष्ट्रीय स्तर पर जातिवार जनगणना कराने की मांग का कांग्रेस मुखर समर्थन कर रही है। आइएनडीआइए में इस पर लगभग व्यापक सहमति है। केवल तृणमूल कांग्रेस ने जातिवार जनगणना पर अपना रुख सार्वजनिक करने से अब तक परहेज किया है। मगर आइएनडीआइए में शामिल राजद जदयू द्रमुक सरीखे प्रमुख दल जिस तरह ओबीसी को अपनी सियासी धुरी का आधार बना रहे हैं।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। बिहार में जातिवार गणना के आंकड़े जारी होने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में ओबीसी ट्रंप कार्ड का दांव खेलने की सियासत का गरम होना तय हो गया है। नीतीश सरकार के इस कदम ने 2024 के चुनाव से ठीक पहले मंडल दौर के बाद ओबीसी सियासत को नया उबाल देने का रास्ता भी खोल दिया है। भाजपा के ओबीसी वर्चस्व को तगड़ी चुनौती देने की विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए की कोशिशों को भी इससे रफ्तार मिलना तय हो गया है।
भाजपा के लिए सियासी चुनौती
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार की इस पहल को बिना देरी लपकते हुए जितनी जिसकी आबादी उतनी उसकी भागीदारी का नारा बुलंद कर भाजपा के महिला आरक्षण के नैरेटिव को ओबीसी ट्रंप कार्ड के जरिये गंभीर चुनौती देने का संकेत दे दिया। जातिवार गणना की बिहार की यह पहल केवल लोकसभा चुनाव ही नहीं इसी नवंबर-दिसंबर में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भी भाजपा के लिए सियासी चुनौती बन गई है।
कांग्रेस का मुखर समर्थन
राष्ट्रीय स्तर पर जातिवार जनगणना कराने की मांग का कांग्रेस मुखर समर्थन कर रही है। आइएनडीआइए में इस पर लगभग व्यापक सहमति है। केवल तृणमूल कांग्रेस ने जातिवार जनगणना पर अपना रुख सार्वजनिक करने से अब तक परहेज किया है। मगर आइएनडीआइए में शामिल राजद, जदयू, द्रमुक सरीखे प्रमुख दल जिस तरह ओबीसी को अपनी सियासी धुरी का आधार बना रहे हैं, उससे साफ है कि विपक्ष ने जातिवार गणना पर अपनी पोजिशन ले ली है। अब भाजपा पर अपना नजरिया स्पष्ट करने का दबाव बढ़ गया है।
भाजपा का सुप्रीम कोर्ट में विरोध
दिलचस्प यह है कि बिहार भाजपा ने जातिवार जनगणना की मांग का समर्थन किया था, मगर केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट में इस पहल का विरोध किया था। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा ने जातिवार जनगणना पर स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाने से परहेज किया है और इसीलिए विपक्ष यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि भाजपा इसके खिलाफ है। बिहार के जातीय आंकड़े आने के साथ मंडल आरक्षण के दूसरे दौर की सियासत इस लिहाज से भी गरम होगी कि इसके सहारे आरक्षण की अधिकतम 50 प्रतिशत की संवैधानिक सीमा की बाध्यता को हटाने की मांग एक बार फिर तेज होगी।
सियासत को ओबीसी फैक्टर करता है प्रभावित
सपा, राजद से लेकर द्रमुक जैसी पार्टियां पहले से ही इस सीमा को हटाने की मांग करती रही हैं। विपक्षी खेमे का यह दांव भाजपा के लिए 2024 में इसीलिए भी चुनौती बन सकता है, क्योंकि उत्तर के राज्यों में सियासत को ओबीसी फैक्टर पूरी तरह प्रभावित करता है। सपा, राजद और जदयू जैसी पार्टियां यह बखूबी जानती हैं कि ओबीसी वर्ग के भाजपा के साथ जाने के बाद उनकी राजनीतिक ताकत घटी है। सीएसडीएस जैसी एजेंसियों के आंकड़े बताते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी के चेहरे के कारण भाजपा के ओबीसी वोट में करीब दोगुने की बढ़ोतरी हुई और 2019 में इस आंकड़े में और इजाफा हुआ।
जातीय जनगणना एक मजबूत औजार
विपक्षी पार्टियों के लिए ओबीसी के अपने छिटके आधार को वापस पाने के लिए जातीय जनगणना एक मजबूत औजार दिख रहा है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के जरिये संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के भाजपा के सियासी दांव को थामने के लिए विपक्ष ने ओबीसी और जातिवार जनगणना का कार्ड चलने का साफ संदेश लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान ही दे दिया था। उस समय राहुल गांधी ने केंद्र के 90 सचिवों में से केवल तीन ओबीसी होने का मुद्दा उठाया था और जातिवार जनगणना की मांग की थी।