Bihar Politics: PK के आने से बिहार उपचुनाव कैसे हुआ दिलचस्प, RJD-JDU को सता रहा किस बात का डर?
Bihar by polls प्रशांत किशोर की नई पार्टी जन सुराज ने बिहार में किसी चुनाव को लगभग दो दशक बाद पहली बार त्रिकोणीय बना दिया है। प्रचार की शैली और गठबंधनों की बेचैनी बता रही कि परिणाम बड़ा संदेश दे सकता है। जातीय समीकरण में उलट-पलट के सहारे सत्ता की सियासत पर असर डाल सकता है। यह उपचुनाव पीके के लिए भी बड़ी अग्निपरीक्षा की तरह है।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। Bihar by polls लोकसभा चुनाव के बाद बिहार में चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव का कोई सटीक पूर्वानुमान नहीं है। प्रशांत किशोर (पीके) की नई पार्टी जन सुराज ने बिहार में किसी चुनाव को लगभग दो दशक बाद पहली बार त्रिकोणीय बना दिया है। प्रचार की शैली और गठबंधनों की बेचैनी बता रही कि परिणाम बड़ा संदेश दे सकता है। जातीय समीकरण में उलट-पलट के सहारे सत्ता की सियासत पर असर डाल सकता है।
पीके के लिए अग्निपरीक्षा है ये उपचुनाव
चुनावी रणनीति को पीछे छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में कदम रखने वाले पीके के लिए भी यह उपचुनाव बड़ी अग्निपरीक्षा की तरह है। साथ ही तीन दशकों से बिहार की सत्ता में गहराई तक जड़ जमाकर बैठे दोनों बड़े गठबंधनों (राजग और महागठबंधन) के लिए भी यह मुश्किल घड़ी है, क्योंकि जन सुराज का प्रयास दोनों गठबंधनों के कोर वोटरों में सेंधमारी कर अपना रास्ता बनाने का है।
जाहिर है, परिणाम ही बताएगा कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा के आम चुनाव के पहले सियासत की कैसी बिसात बिछेगी? राजद, जदयू एवं भाजपा के कोर वोटर कितना एकजुट रह पाएंगे? पीके किसी परिवर्तन के वाहक बनेंगे या खुद परिवर्तित होकर फिर से पारिश्रमिक लेकर राजनेताओं की कुंडली बांचने लग जाएंगे?
सेमीफाइनल साबित होगा ये उपचुनाव
फिलहाल इतना साफ है कि इस उपचुनाव से बिहार की सत्ता में कोई परिवर्तन नहीं होने जा रहा है, किंतु आम चुनाव से एक वर्ष पहले हो रहे इस सियासी संघर्ष को सेमीफाइनल की तरह माना जा रहा है। उपचुनाव के परिणाम की तरह भविष्य की संभावनाओं के भी तीन कोण होंगे।सवर्ण राजनीति हाशिये पर
बिहार में पिछले चार दशक से भी ज्यादा समय से सवर्ण राजनीति हाशिये पर है। लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने माय (यादव-मुस्लिम) समीकरण के सहारे भाजपा को अपने बूते बिहार की सत्ता से अभी तक वंचित रखा है। इसी तरह नीतीश कुमार के जदयू ने अन्य पिछड़ी जातियों को गोलबंद कर भाजपा एवं राजद की राजनीति को संतुलित करके रखा है। भाजपा को अपने कोर वोटरों के साथ-साथ नीतीश कुमार की पिछड़े वर्ग में पैठ का भी सहारा है। केंद्र में सरकार के साथ खड़े होने से नीतीश कुमार के वोट बैंक में एकजुटता आई है।