Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भाजपा में 'मूल बनाम बाहरी' पर संग्राम, UP में हैट्रिक पर संकट; क्या विपक्ष को मिलेगा इसका फायदा?

    उत्तर प्रदेश भाजपा में मूल बनाम बाहरी नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ गई है जिससे पार्टी की तीसरी बार सत्ता में आने की उम्मीदों पर संकट मंडरा रहा है। कानपुर देहात से उठी यह चिंगारी दूसरे जिलों में भी फैल रही है जिसका फायदा विपक्षी दल उठा सकते हैं। अब नेतृत्व इस खाई को पाटने की कोशिश में जुट गया है।

    By Jagran News Edited By: Deepti Mishra Updated: Mon, 25 Aug 2025 04:05 PM (IST)
    Hero Image
    यूपी चुनाव से पहले भाजपा में अंतर्कलह, क्या मूल बनाम बाहरी गुटबाजी बिगाड़ेगी खेल? फाइल फोटो

    अजय जायसवाल,  लखनऊ ब्यूरो। एक तरफ जहां राज्य राजनीतिक दलों के लिए अगले विधानसभा चुनाव की रणनीति, समीकरण और गठबंधनों का स्वरूप तय करने वाले पंचायत चुनाव की दहलीज पर है, वहीं दूसरी तरफ सत्ताधारी भाजपा अंतर्कलह से जूझती दिखाई दे रही है। कानपुर देहात से भाजपा में उठ रही मोर्चाबंदी की लपटें कुछ ज्यादा ही तेज हो रही हैं। आपसी प्रतिद्वन्द्विता दबी-छिपी नहीं, बल्कि खुलकर पार्टी नेताओं की जुबान पर है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भाजपा में सीधे तौर पर मूल (कार्यकर्ता से नेता बने) बनाम बाहरी (अन्य दलों से आयातित) का पाला खींचा जा रहा है। ऐसे में सत्ताधारियों के सामने बड़ा संकट यह है कि विरोधी दल, भाजपाई अंतर्कलह का लाभ उठाने की ताक में हैं।

    यह किसी से छिपा नहीं कि लंबे अरसे के बाद केंद्र और प्रदेश में भाजपा ने जो सत्ता हासिल की और फिर उसे अब तक बरकरार रखा है, उसमें मूल और आयातित, दोनों का सामूहिक योगदान है। दूसरे दलों से आए तमाम नेताओं ने भाजपा में आकर खुद की अहमियत साबित की, पार्टी को लाभ पहुंचाया और इसके लिए पार्टी ने उनके कद को बढ़ाया।

    इस ताने-बाने में कोई छेद होता है तो अंततः चुनावी नुकसान की ही जमीन तैयार होगी। इसी जोखिम को भांपकर शुरुआत में खामोश नजारा देख रहा नेतृत्व अब टकराव की चिंगारी पर सख्ती का पानी डालने की कोशिश में जुट गया है। अंतर्कलह की आग और भड़की तो लपटों का दायरा बढ़ेगा। ऐसे में विधानसभा चुनाव में हैट्रिक के सपने पर संकट खड़ा हो सकता है।

    दूसरे दलों से आए नेताओं को क्यों मिल रही तवज्जो?

    राजनीतिक पार्टियां दूसरे दलों के नेताओं को तवज्जो उनके प्रभाव से लेकर जातीय समीकरण तक को तौलकर ही देती हैं। भाजपा ने वर्ष 2014 के लोकसभा और फिर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में दूसरे दलों के प्रभावशाली और जीत के समीकरणों में फिट आने वाले नेताओं को दल में शामिल करने का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया। पार्टी के तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अमित शाह ने राज्य में इस प्रयोग को बहुत ही सफलता से आजमाया।

    शाह की रणनीति से प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर भगवा परचम फहरा। तब जाति व क्षेत्र विशेष में प्रभाव रखने वाले छोटे दलों को जोड़ने का सिलसिला भी शुरू हुआ। पिछले वर्ष के लोकसभा चुनाव से पहले इन्हीं प्रयोगों के चलते 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा गठबंधन को बड़ी जीत मिली। वहीं, वर्ष 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने बहुमत की सरकार बनाने का रिकॉर्ड बनाया।

    योगी के कितने मंत्री दूसरे दलों से आए?

    मौजूदा योगी सरकार के 54 मंत्रियों में से 15 ऐसे हैं, जो दूसरे दलों से भाजपा में आए हैं। इनमें बसपा से सांसद रहे उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भाजपा में आने के बाद भी अपना प्रदर्शन कायम रखा। पाठक के सहारे पार्टी ब्राह्मणों को भी साधने में लगी है।

    योगी मंत्रिमंडल में शामिल नंद गोपाल गुप्ता नंदी, राकेश सचान, दारा सिंह चौहान, लक्ष्मी नारायण चौधरी, जयवीर सिंह, नरेन्द्र कश्यप, नितिन अग्रवाल, अनिल राजभर, दिनेश प्रताप सिंह, दयाशंकर मिश्र दयालू, प्रतिभा शुक्ला, संजीव गोंड, विजय लक्ष्मी गौतम व रजनी तिवारी भी दूसरे दलों से भाजपा में शामिल हुए हैं।

    केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी प्रदेश के ऐसे कई चेहरे हैं। सत्ता में आने के बाद से भाजपा नेताओं के बीच वर्चस्व के टकराव की स्थिति बनती रही है, लेकिन अब इस लड़ाई को मूल बनाम बाहरी का रंग देकर लड़ा जा रहा है। कानपुर देहात में राज्यमंत्री प्रतिभा व उनके पति पूर्व सांसद अनिल शुक्ल वारसी की सांसद देवेंद्र सिंह भोले के बीच पहले से तनातनी चली आ रही है।

    प्रतिभा और उनके पति पहले बसपा में थे। मंत्री राकेश सचान, विधायक पूनम भी दूसरे दलों से आने वाले नेताओं में हैं। ऐसे बाहरी नेताओं का दबदबा पार्टी के मूल नेताओं के मुकाबले बढ़ने से वर्चस्व की जंग कई दूसरे जिलों में भी है।

    भाजपा के सामने अब क्या संकट?

    मूल नेता पार्टी के लिए समर्पित होने के बावजूद अनदेखी की दुहाई दे रहे हैं तो बाहर से आने वाले नेता अपना योगदान गिना रहे हैं। स्पष्ट तौर पर कह रहे हैं कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने ही अपनी विस्तार की रणनीति के तहत उन्हें पार्टी में लिया।

    ऐसा भी नहीं कि दूसरे दलों में रहते वे मुख्यधारा से अलग या कामयाब नहीं थे। इस बात से कोई नावाकिफ नहीं, लेकिन कानपुर देहात के बाद अयोध्या में भी इसी तरह के स्वर उठ रहे हैं और यदि समय रहते ऐसे मामले काबू न किए गए तो आने वाले दिनों में अन्य जिलों में भी यह टकराव सतह पर दिखाई देगा।

     ऐसे में पार्टी ने कानपुर में स्थिति को संतुलित करने की कोशिश करते हुए मूल और बाहरी दोनों नेताओं को समान भाव से नोटिस थमा कर सबको भाजपाई दृष्टि से देखने का संदेश देने की कोशिश की है लेकिन टकराव थमता नहीं दिख रहा। ऐसे में माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व आगे बढ़कर और कड़ी कार्रवाई करने के साथ ही मूल बनाम बाहरी नेताओं के बीच पनप रही खाई को जल्द से जल्द पाटने की कोशिश करेगा।