तेलंगाना में भाजपा ने तैयार की सत्ता विरोधी लहर, पर फायदा उठाने में जुटी है कांग्रेस; क्या पार्टी पर भारी पड़ेगी गुटबाजी?
हैदराबाद निगम चुनाव में भाजपा की बड़ी सफलता एवं विधानसभा उपचुनाव में तीन में से दो सीटों पर कब्जा के बाद लगने लगा था कि तेलंगाना में भाजपा बड़ा विकल्प बनकर उभरने जा रही है लेकिन हाल के कुछ गलत निर्णयों का फायदा उठाने में हाशिये पर खड़ी कांग्रेस ने देर नहीं की और सधे कदमों से संघर्ष में खुद को वापस कर दिया।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। तेलंगाना में भाजपा के अति आत्मविश्वास के चलते संघर्ष में कांग्रेस की वापसी होती दिख रही है। संसदीय चुनाव में प्रदेश की 19 में से चार सीटों पर जीत के बाद भाजपा ने सतत सक्रिय रहकर बीआरएस सरकार के विरुद्ध माहौल बनाया, लेकिन विधानसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले की आपसी रस्साकशी एवं शीर्ष नेतृत्व की सुस्ती ने कांग्रेस को लड़ाई में वापस कर दिया।
भाजपा को लगाना पड़ रहा जोर
अगर प्रदेश में भाजपा अपनी गति बनाए रखती तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह को अंतिम समय में इतनी मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती और एंटी इनकंबेंसी का फायदा कांग्रेस को न मिलकर भाजपा को मिलता। बहरहाल, भाजपा को अपनी जमीन पर लगाई फसल की हिफाजत के भी लिए अब जोर लगाना पड़ रहा है।
हैदराबाद निगम चुनाव में भाजपा की बड़ी सफलता एवं विधानसभा उपचुनाव में तीन में से दो सीटों पर कब्जा के बाद लगने लगा था कि तेलंगाना में भाजपा बड़ा विकल्प बनकर उभरने जा रही है। शीर्ष नेतृत्व की सक्रियता और प्रदेश भाजपा की आक्रामक शैली से के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) सरकार के अंत का इंतजार होने लगा था।
भाजपा के गलत फैसलों का कांग्रेस ने उठाया फायदा
तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बंडी संजय के जरिए भाजपा ने लगातार मेहनत कर सत्ता विरोधी हालात बनाए, लेकिन हाल के कुछ गलत निर्णयों का फायदा उठाने में हाशिये पर खड़ी कांग्रेस ने देर नहीं की और सधे कदमों से संघर्ष में खुद को वापस कर दिया।
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2020 में हैदराबाद निगम चुनाव में 48 सीटें जीतकर दूसरी बड़ी ताकत बनकर उभरी भाजपा ने सत्ता विरोधी हवा को विस्तार देने के लिए हैदराबाद में जुलाई 2022 में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर इरादे जाहिर कर दिए थे। इसके बाद हुए तीन उपचुनावों में उसने दो सीटें झटक कर केसीआर सरकार की नींद उड़ा दी थी। इन्हीं परिस्थितियों में केसीआर के प्रमुख सहयोगी एवं प्रदेश सरकार के मंत्री एटला राजेंदर भी भाजपा के साथ खड़े हो गए, लेकिन भाजपा की मुश्किलें यहीं से बढ़ने लगीं।
गुटबाजी का भाजपा को हुआ नुकसान
तेलंगाना में भाजपा पर वर्चस्व के लिए बंडी संजय एवं एटला के अलग-अलग गुट बन गए। दोनों में छत्तीस का आंकड़ा हो गया। मतभेद का स्तर इस तरह बढ़ गया कि प्रदेश भाजपा को नुकसान होने लगा तो नेतृत्व ने शक्ति संतुलन के लिए संजय को हटाकर प्रदेश की कमान केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी को सौंप दी। फिर भी दोनों गुटों की दूरी बढ़ती चली गई।
विधानसभा चुनाव में सक्रिय नहीं दिख रहे संजय
संजय के लोगों ने खुद को समेट लिया। यहां तक कि विधानसभा चुनाव में भी संजय सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस को तेलंगाना में भाजपा की ऐसी ही चूक का इंतजार था। उसने इसका संदेश नीचे तक पहुंचाना शुरू कर दिया।
कविता प्रकरण से कांग्रेस को हुआ फायदा
दिल्ली शराब घोटाले में फंसी मुख्यमंत्री केसीआर की पुत्री के. कविता के प्रकरण से भी कांग्रेस ने फायदा उठाया। तेलंगाना में माना जा रहा था कि कविता की गिरफ्तारी तय है, लेकिन जब नहीं हुई तो कांग्रेस ने संदेश फ्लैश करवाने में देर नहीं की कि भाजपा और बीआरएस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं।
भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि संजय की ओर से भी भाजपा का बीआरएस के साथ आंतरिक समझौते की बात फैलाई जा रही है। इधर, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान के विधानसभा चुनावों में जुटी भाजपा को कांग्रेस की चाल का जब तक अहसास होता, तब तक बातें आगे बढ़ चुकी थीं।
भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ अभियान किया तेज
कांग्रेस ने नीचे तक भाजपा के विरुद्ध हवा तैयार कर दी थी। हालांकि भाजपा ने देर से ही सही, लेकिन अब मैदान में पूरी ताकत झोंक दी है और आखिरी दौर में अपने समर्थकों एवं कार्यकर्ताओं को बिखरने से बचाकर कांग्रेस के आरोपों को झुठलाने का प्रयास तेज कर दिया है।