तेलंगाना में भाजपा ने तैयार की सत्ता विरोधी लहर, पर फायदा उठाने में जुटी है कांग्रेस; क्या पार्टी पर भारी पड़ेगी गुटबाजी?
हैदराबाद निगम चुनाव में भाजपा की बड़ी सफलता एवं विधानसभा उपचुनाव में तीन में से दो सीटों पर कब्जा के बाद लगने लगा था कि तेलंगाना में भाजपा बड़ा विकल्प बनकर उभरने जा रही है लेकिन हाल के कुछ गलत निर्णयों का फायदा उठाने में हाशिये पर खड़ी कांग्रेस ने देर नहीं की और सधे कदमों से संघर्ष में खुद को वापस कर दिया।
By Achyut KumarEdited By: Achyut KumarUpdated: Sun, 26 Nov 2023 07:48 PM (IST)
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। तेलंगाना में भाजपा के अति आत्मविश्वास के चलते संघर्ष में कांग्रेस की वापसी होती दिख रही है। संसदीय चुनाव में प्रदेश की 19 में से चार सीटों पर जीत के बाद भाजपा ने सतत सक्रिय रहकर बीआरएस सरकार के विरुद्ध माहौल बनाया, लेकिन विधानसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले की आपसी रस्साकशी एवं शीर्ष नेतृत्व की सुस्ती ने कांग्रेस को लड़ाई में वापस कर दिया।
भाजपा को लगाना पड़ रहा जोर
अगर प्रदेश में भाजपा अपनी गति बनाए रखती तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह को अंतिम समय में इतनी मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती और एंटी इनकंबेंसी का फायदा कांग्रेस को न मिलकर भाजपा को मिलता। बहरहाल, भाजपा को अपनी जमीन पर लगाई फसल की हिफाजत के भी लिए अब जोर लगाना पड़ रहा है।
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हैदराबाद निगम चुनाव में भाजपा की बड़ी सफलता एवं विधानसभा उपचुनाव में तीन में से दो सीटों पर कब्जा के बाद लगने लगा था कि तेलंगाना में भाजपा बड़ा विकल्प बनकर उभरने जा रही है। शीर्ष नेतृत्व की सक्रियता और प्रदेश भाजपा की आक्रामक शैली से के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) सरकार के अंत का इंतजार होने लगा था।
भाजपा के गलत फैसलों का कांग्रेस ने उठाया फायदा
तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बंडी संजय के जरिए भाजपा ने लगातार मेहनत कर सत्ता विरोधी हालात बनाए, लेकिन हाल के कुछ गलत निर्णयों का फायदा उठाने में हाशिये पर खड़ी कांग्रेस ने देर नहीं की और सधे कदमों से संघर्ष में खुद को वापस कर दिया।यह भी पढ़ें: Telangana Polls: पार्टियों के दिग्गजों ने तेलंगाना के प्रचार में झोंकी पूरी ताकत, नहीं छोड़ रहे कोई गुंजाइश
2020 में हैदराबाद निगम चुनाव में 48 सीटें जीतकर दूसरी बड़ी ताकत बनकर उभरी भाजपा ने सत्ता विरोधी हवा को विस्तार देने के लिए हैदराबाद में जुलाई 2022 में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर इरादे जाहिर कर दिए थे। इसके बाद हुए तीन उपचुनावों में उसने दो सीटें झटक कर केसीआर सरकार की नींद उड़ा दी थी। इन्हीं परिस्थितियों में केसीआर के प्रमुख सहयोगी एवं प्रदेश सरकार के मंत्री एटला राजेंदर भी भाजपा के साथ खड़े हो गए, लेकिन भाजपा की मुश्किलें यहीं से बढ़ने लगीं।