Assembly Bypoll Results: सात में तीन सीटें जीतकर भाजपा ने पुराना प्रदर्शन रखा बरकरार, UP की घोसी सीट गंवाई
विपक्षी दलों को आइएनडीआइए नाम से नए स्वरूप में लाने के प्रयासों के बीच विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव के नतीजों ने भविष्य के संकेत दे दिए हैं। आम चुनाव से सात महीने पहले हुए इस चुनाव को सेमीफाइनल बताया जा रहा है। भाजपा के कब्जे में पूर्व से त्रिपुरा की धनपुर उत्तराखंड की बागेश्वर एवं बंगाल की धूपगुड़ी सीटें थीं। इनमें धूपगुड़ी भाजपा के हाथ से चली गई।
By Jagran NewsEdited By: Anurag GuptaUpdated: Fri, 08 Sep 2023 08:26 PM (IST)
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। विपक्षी दलों को आइएनडीआइए (I.N.D.I.A) नाम से नए स्वरूप में लाने के प्रयासों के बीच विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव के नतीजों ने भविष्य के संकेत दे दिए हैं। भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए के साथ छह राज्यों में विपक्षी दलों का यह पहला संघर्ष था। देशभर की नजर थी। किंतु सात में तीन सीटें जीतकर भाजपा ने अपने पुराने प्रदर्शन को बरकरार रखा।
दूसरी ओर बंगाल एवं केरल में आइएनडीआइए के घटक दलों ने आपस में ही टकराकर दूसरे को हराया। त्रिपुरा में मिलकर भी दोनों सीटों को भाजपा की झोली में जाने से रोक नहीं पाए। मुस्लिम बहुल सीट बक्सानगर में भी भाजपा ने माकपा को हराकर पहली बार कब्जा जमा लिया। अलग-अलग कारणों से छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर पांच सितंबर को वोट डाले गए थे।
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संसदीय आम चुनाव से सात महीने पहले हुए इस चुनाव को सेमीफाइनल बताया जा रहा है। भाजपा के कब्जे में पूर्व से त्रिपुरा की धनपुर, उत्तराखंड की बागेश्वर एवं बंगाल की धूपगुड़ी सीटें थीं। इनमें धूपगुड़ी भाजपा के हाथ से चली गई। उसकी जगह एक नई सीट त्रिपुरा की बक्सानगर आई है।
मतलब तीन की तीन रह गई। तीन अन्य में यूपी की घोसी पर सपा, झारखंड की डुमरी पर झामुमो एवं केरल की पुथुपल्ली पर कांग्रेस ने अपना कब्जा बरकरार रखा है।
क्या माकपा और कांग्रेस के बीच होगा गठबंधन?
उपचुनाव के नतीजे आगाह कर रहे हैं कि बंगाल और केरल में विपक्षी गठबंधन की अवधारणा पूरी तरह सफल नहीं हो सकती है। केरल में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एवं पूर्व सीएम ओमान चांडी की सीट पर माकपा ने प्रत्याशी देकर साफ कर दिया कि संसदीय चुनाव में भी वह गठबंधन के लिए तैयार नहीं होगी।
एक अन्य बड़ा संकेत है कि मिशन-24 में दो प्रमुख प्रत्याशियों के बीच ही आरपार की लड़ाई हो सकती है। तीसरे की संभावना सिमट सकती है। चाहे वह राष्ट्रीय दल ही क्यों ना हो? बसपा एवं जदएस जैसे छोटे होते दलों के लिए यह ट्रेंड एक चेतावनी है, जो किसी खेमे के साथ खड़े होने के लिए उन्हें प्रेरित कर सकता है।