रावी नदी पर बांध बनाएगा भारत, पाकिस्तान की तरफ घटेगा पानी का प्रवाह
बांध बनने के बाद पंजाब में पांच हजार हेक्टेयर जबकि जम्मू-कश्मीर में 32 हजार 172 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी।
By Rahul SharmaEdited By: Updated: Fri, 07 Dec 2018 02:07 PM (IST)
जम्मू, राहुल शर्मा। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर और पंजाब की सीमा पर रावी नदी पर शाहपुर कंडी बांध परियोजना को मंजूरी दे दी है। पंजाब सरकार और केंद्र इस परियोजना को 2022 तक पूरी कर लेगी। यही नहीं करीब 2793 करोड़ रूपये के इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार 485.38 करोड़ रूपये की सहायता भी देगी। बांध बनने के बाद पंजाब में पांच हजार हेक्टेयर जबकि जम्मू-कश्मीर में 32 हजार 172 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। सिंचाई के लिए पानी मिलने से जम्मू संभाग में कई दशक पहले देखे गए हरित क्रांति का सपना पूरा होगा। हजारों किसानों की किस्मत बदलेगी। कंडी में हरियाली होगी।
इस परियोजना के जरिए पाकिस्तान जाने वाले रावी नदी के पानी को नियंत्रित किया जा सकेगा। बांध परियोजना के लिए केंद्र सरकार से दी जाने वाली राशि नाबार्ड के जरिए खर्च की जाएगी। सितंबर 2018 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच हुए समझौते के मुताबिक पंजाब और राज्य के अधिकारियों के अलावा केंद्र सरकार के प्रतिनिधि भी निर्माण और नियमों का पालन हो रहा है या नहीं, इसके लिए यहां तैनात रहेंगे।
वर्ष 2022 में पूरा होगा प्रोजेक्ट, 206 मेगावाट अतिरिक्त बिजली पैदा होगी
शाहपुर कंडी बांध प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य वर्ष 2022 रखा गया है। रावी नदी पर बने रंजीत सागर बांध से बिजली बनाने के बाद छोड़े गए पानी को शाहपुर कंडी में बैराज बनाकर इकट्ठा किया जाना है। यहीं पर 206 मेगावाट के छोटे पावर प्लांट भी लगने हैं। रोके गए पानी को नए सिरे से चैनल के माध्यम से जम्मू-कश्मीर और पंजाब को दिया जाना है। प्रोजेक्ट पूरा होने पर 206 मेगावाट अतिरिक्त पन बिजली पैदा हो सकेगी। इससे सालाना 852.73 करोड़ रुपये का सिंचाई और बिजली का लाभ भी होगा। यह प्रोजेक्ट शाहपुर कंडी डैम से छोड़े जाने वाले पानी को नियमित करने में मदद करेगा। जम्मू-कश्मीर सरकार को इस प्रोजेक्ट पर एक पैसा भी खर्च नहीं करना है। यही नहीं नए समझौते के मुताबिक जम्मू-कश्मीर को जितने पानी की भी जरूरत होगी वह बांध से ले सकेगा। इसकी निगरानी के लिए बकायदा प्रोजेक्ट पर दोनों राज्यों के अलावा केंद्र के अधिकारी भी माॅनिटरिंग करेंगे।
प्रोजेक्ट में देरी से यह हो रहा नुकसान
600 मेगावाट तक बिजली पैदा करने वाले रंजीत सागर बांध को यदि पूरी क्षमता से चलाया जाए तो छोड़े गए पानी को संभालने के लिए माधोपुर हैडवकर्स सक्षम नहीं है। इसलिए बांध को आधी क्षमता पर चलाना पड़ता है। पूरी क्षमता से चलाने पर पानी रावी नदी में छोड़ना पड़ता है जो पाकिस्तान चला जाता है। इस पानी को पंजाब या फिर जम्मू-कश्मीर को कोई लाभ नहीं होता है। यदि शाहपुर कंडी बैराज बन जाए तो पानी को यहां रोका जा सकता है। यही नहीं उसका पंजाब, जम्मू-कश्मीर व पाकिस्तान में इस्तेमाल किया जा सकता है। बैराज के न होने से दोनों राज्यों की 35 हजार हेक्टेयर जमीन को नहरी पानी भी उपलब्ध नहीं हो रहा है।
वर्ष 1979 में हुआ था यह समझौतावर्ष 1979 में पंजाब सरकार ने जिला कठुआ के साथ लगती थीन सीमा पर रावी दरिया में रणजीत सागर झील को शामिल करने के बदले में जम्मू-कश्मीर को 1150 क्यूसिक पानी व प्रोजेक्ट में उत्पन्न होने वाली बिजली का बीस फीसद देने पर समझौता किया था। जिस भूमि पर रंजीत सागर बांध का निर्माण होना था, वहां की 65 प्रतिशत भूमि जम्मू-कश्मीर की थी। पंजाब ने इसके बदले में जम्मू-कश्मीर के लिए शाहपुर कंडी बैराज का निर्माण अपने से करने और 1150 क्यूसिक पानी देने के लिए लिखित समझौता किया था। राज्य सरकार ने इसके लिए जम्मू संभाग के एक बड़े सूखे कंडी क्षेत्र को तर करने के लिए रावी तवी इरीगेशन प्रोजेक्ट का निर्माण भी कर डाला। यही नहीं बसंतपुर कठुआ से लेकर विजयपुर तक 84 किलोमीटर लंबी नहर भी बना डाली। नहर का डिजाइन भी 1150 क्यूसिक पानी की क्षमता के अनुसार ही किया गया। लेकिन पंजाब ने वर्ष 2000 में रंजीत सागर बांध का निर्माण पूरा होने के बाद शाहपुर कंडी बैराज का निर्माण ठंडे बस्ते में डाल दिया। शाहपुर कंडी डैम प्रोजेक्ट भी जम्मू कश्मीर की 80 प्रतिशत भूमि पर होना है।
2004 में बना था सतवांई प्रोजेक्टवर्ष 2004 में जब पंजाब ने सभी राज्यों से जल बटवारे के समझौते तोड़ दिए। पंजाब सरकार के इस अड़ियल रवैये का कड़ा संज्ञान लेते हुए नेकां-कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट के अटार्नी जनरल से राय लेकर रंजीत सागर, जिसमें पंजाब सरकार ने पानी स्टोर किया गया है, से अपनी हद सतवांई से सुरंग बनाकर पानी लेने की राय दी। तत्कालीन पीएचई मंत्री ताज मोहि-उ-द्दीन ने सुरंग का निर्माण कर उसके जरिए 1150 क्यूसिक पानी लेने के लिए 2010 में 400 करोड़ का सतवांई प्रोजेक्ट बना डाला। सरकार ने तुरंत इसकी मंजूरी दे दी और टेंडर भी हुए। पंजाब सरकार सकते में आ गई। वर्ष 2013 में पंजाब सरकार ने स्वयं ही बैराज का निर्माण शुरू करा दिया। हालांकि, जहां पंजाब सरकार ने निर्माण शुरू किया, वह भी रंजीत सागर झील की तरह जम्मू-कश्मीर सरकर की ही भूमि थी। बिना अनुमति शुरू किए कार्य को जम्मू-सरकार ने गत 2014 में जबरन रुकवा दिया।