कर्नाटक भाजपा में हर गतिविधि पर केंद्रीय नेतृत्व की नजर, लिंगायत वोट में कोई बिखराव नहीं चाहती पार्टी
अगले साल की शुरूआत में ही कर्नाटक में चुनाव होने हैं। प्रदेश में भाजपा अपने बूते बड़ा बहुमत हासिल करने के लिए यूं तो हर वर्ग में हिस्सा चाहती है लेकिन सबसे बड़ा समर्थक लिंगायत वर्ग है और पार्टी इसमें कोई टूट नहीं चाहती है।
By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Sun, 18 Dec 2022 07:47 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश में कुछ पार्टी नेताओं की गुटबाजी का खामियाजा भुगत चुकी भाजपा कर्नाटक में ऐसी ही गलतियों से बचना चाहती है। हालांकि पिछले कुछ महीनों में प्रदेश के मंत्रियों व पदाधिकारियों के आपत्तिजनक बयानों पर थोड़ा लगाम लगा है लेकिन एकजुटता का संदेश अभी भी कोसों दूर है। नेतृत्व ने प्रदेश नेताओं को स्पष्ट निर्देश दिया है कि पूरी पार्टी का अर्थ है कि पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का पूरा उपयोग हो और किसी भी मायने में इसमें चूक न हो। जबकि प्रदेश इकाई चुनाव के वक्त टूटकर आने वाले नेताओं और कांग्रेस की ओर से होने वाली चूक से आशा जमाए बैठी है।
बीएस येदियुरप्पा का आगामी कर्नाटक चुनाव में पूरा उपयोग करने में जुटी पार्टी
अगले साल की शुरूआत में ही कर्नाटक में चुनाव होने हैं। प्रदेश में भाजपा अपने बूते बड़ा बहुमत हासिल करने के लिए यूं तो हर वर्ग में हिस्सा चाहती है लेकिन सबसे बड़ा समर्थक लिंगायत वर्ग है और पार्टी इसमें कोई टूट नहीं चाहती है। यही कारण है कि केंद्रीय नेतृत्व बार बार प्रदेश इकाई को संदेश दे रहा है कि बीएस येदियुरप्पा का पूरा उपयोग करना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर उन्हें संसदीय बोर्ड में स्थान मिला था और हाल में गुजरात विधायक दल का नेता चुने जाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ उन्हें पर्यवेक्षक बनाया गया था।
लेकिन पिछले हफ्ते कोप्पल में पार्टी कार्यालय के उदघाटन में उन्हें आमंत्रित ही नहीं किया गया था। जब बात राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तक पहुंची तब आनन फानन में उन्हें बुलाया गया और सार्वजनिक रूप से यह संदेश दिया गया कि येदियुरप्पा पार्टी के सम्माननीय हैं। बताया जाता है कि उससे पहले एक पार्टी कार्यक्रम को सरकारी कार्यक्रम बना दिया गया ताकि येदुयुरप्पा को न बुलाना पड़े।
लिंगायत वोट में कोई बिखराव नहीं चाहती भाजपा
सूत्रों के अनुसार प्रदेश नेताओं में भविष्य को लेकर भय है। हाल में येदियुरप्पा के पुत्र विजयेंद्र ने भी कई नेताओं के लिए परेशानी खड़ी कर दी थी जब उन्होंने कहा था कि केंद्रीय नेतृत्व चाहेगा तो वह अपने पिता की सीट छोड़कर सिद्धरमैया को भी चुनौती देने के लिए तैयार हैं। अगर इस प्रयोग पर पार्टी चली तो कई वरिष्ठ नेताओं को कठिन सीट से उतरना पड़ेगा जो कोई नहीं चाहेगा। बताया जाता है कि केंद्रीय नेतृत्व से संदेश दिया गया है कि अब ऐसी कोई चूक न करें क्योंकि पार्टी लिंगायत वोट में कोई बिखराव नहीं चाहती है।लिहाजा केंद्रीय नेतृत्व हर गतिविधि पर नजर रख रहा है।बताया जाता है कि इसी महीने जब प्रधानमंत्री मोदी बेंगलूरू के संस्थापक कैंपेनगौड़ा की भव्य प्रतिमा का उदघाटन करने गए थे उस वक्त भी प्रदेश नेतृत्व की ओर से कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी देवेगौड़ा का आखिरी समय में निमंत्रित किया गया था। इस प्रतिमा के अनावरण को प्रदेश के वोकालिग्गा वर्ग को प्रभावित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है लेकिन वर्तमान वोकालिग्गा नेता देवेगौड़ा के मामले में चूक हो गई।
ध्यान रहे कि कर्नाटक मे भाजपा, कांग्रेस और जदएस का वोट जाति और क्षेत्र के आधार पर लगभग बंटा हुआ है। ऐसे में आधार वर्ग थोड़ा भी हटा तो परेशानी बढ़ सकती है। बताया जाता है कि प्रदेश नेतृत्व दूसरे दलों से प्रभावशाली नेताओं को लाने की भी कोशिश में है। इस अवसर की भी तलाश है कि कांग्रेस के दो सबसे बड़े नेता डी शिवकुमार और सिद्धरमैया में तनाव तेज हो। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व की ओर से निर्देश है कि पहले अपनी जमीन पुख्ता रखें। एकजुटता दिखनी चाहिए और बयानबाजी पर पूरी लगाम लगनी चाहिए।
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