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कांग्रेस ने कर्नाटक में निकाला नया चुनावी मॉडल, थामा पीएम मोदी का करिश्मा; स्थानीय मुद्दे-चेहरे पर चला दांव

पिछले दो लोकसभा चुनाव समेत बीते नौ सालों की कई चुनावी शिकस्तों के बाद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को पहली बार बैकफुट पर धकेलने में मिली कांग्रेस को सफलता स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं के सहारे नया चला दांव-

By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Sat, 13 May 2023 11:11 PM (IST)
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आतंकवाद पर कांग्रेस की कथित नरमी से लेकर संप्रभुता विवाद के जरिए उसके राष्ट्रवाद पर सवाल दागे गए।
नई दिल्ली, संजय मिश्र। कांग्रेस ने करीब नौ साल के लंबे राजनीतिक संघर्ष के बाद कम से कम राज्यों के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्मे को थामते हुए भाजपा को शिकस्त देने का चुनावी मॉडल निकाल लिया है। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक चुनाव में स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं को आगे रखते हुए कांग्रेस ने पीएम मोदी के चेहरे के सहारे चुनाव को राष्ट्रीय पिच पर ले जाने के भाजपा के दांव को पस्त कर दिया है।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को पहली बार बैकफुट पर धकेलने में मिली कांग्रेस को सफलता

कर्नाटक में पार्टी की यह कामयाबी इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लगातार बैकफुट पर रही कांग्रेस ने इस बार फ्रंटफुट पर आकर भाजपा को चुनौती दी। 2014 के बाद यह पहला चुनाव है जिसमें कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ भ्रष्टाचार को न केवल सबसे बड़ा मुद्दा बनाया बल्कि उससे मात देने में भी कामयाब रही है। कर्नाटक में कांग्रेस की चुनावी रणनीति पूरी तरह स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित रही ओर इसमें संदेह नहीं कि मुख्यमंत्री बोम्मई की सरकार के खिलाफ 40 प्रतिशत कमीशन के आरोपों को पार्टी सबसे बड़ा मुद्दा बनाने में सफल रही।

बड़े चेहरों के भाजपा छोड़ने से कांग्रेस को हुआ फायदा

चुनाव अभियान के आगाज से पहले ही कांग्रेस ने सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार, एमबी पाटिल, जी परमेश्वर, मुनियप्पा से लेकर बीके हरिप्रसाद सरीखे सूबे के दिग्गज पार्टी नेताओं के जरिए भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी से लेकर सूबे की सियासी नब्ज को छूने वाले तमाम अहम मुद्दों को लोगों के बीच पहुंचा दिया था। चुनाव से ठीक पहले जगदीश शेटटार तथा लक्ष्मण सावदी जैसे बड़े चेहरों के भाजपा छोड़ने से इसे और हवा मिली। इसीलिए कांग्रेस को कर्नाटक के बाहर के मुद्दों को चुनाव में उठाने की जरूरत ही नहीं महसूस हुई।

शीर्षस्थ नेताओं ने भी स्थानीय मुद्दों के विमर्श पर ही खुद को केंद्रित रखा

खास बात यह रही कि मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत पार्टी के तमाम शीर्षस्थ नेताओं ने भी स्थानीय मुद्दों के विमर्श पर ही खुद को केंद्रित रखा। राहुल गांधी ने अदाणी-हिंडबर्ग विवाद, चीन से सीमा पर जारी टकराव से लेकर पीएम मोदी पर सीधे हमले करने जैसे अपने प्रमुख मुद्दों को उठाने से परहेज किया।

इसी तरह कांग्रेस ने राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म करने के ताजा भावनात्मक मामले को उठाने की कोशिश नहीं की। इस रणनीति के कारण ही कांग्रेस चुनाव को भ्रष्टाचार और दूसरे स्थानीय मुद्दों के इर्द-गिर्द रखने में कामयाब रही। जबकि पूरे चुनाव अभियान में भाजपा चुनावी एजेंडा सेट करने के लिए संघर्षरत दिखाई दी।

कांग्रेस को मिली बड़ी सियासी राहत

2014 में यूपीए सरकार के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का पिछले दो लोकसभा चुनावों में खामियाजा भुगत चुकी कांग्रेस के लिए इससे बड़ी सियासी राहत कि बात नहीं हो सकती कि राष्ट्रीय स्तर पर न सही मगर कम से कम कर्नाटक जैसे अहम सूबे में इस मुद्दों पर वह पिछले नौ साल में पहली बार भाजपा को बैकफुट पर धकलने में सफल रही है।

कर्नाटक के मुद्दों तक ही चुनावी विमर्श को केंद्रित रखने की कांग्रेस की रणनीति को ध्वस्त करने के लिए सूबे में भाजपा के पास कोई भरोसेमंद चेहरा नहीं था। मुख्यमंत्री बोम्मई को भाजपा के लोग ही नेता मानने को राजी नहीं थे तो येदियुरप्पा के चुनाव नहीं लड़ने की वजह से भी कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व की साख को और जयादा बल मिला।

कांग्रेस की चुनावी घोषणा के जरिए बजरंग बलि की इंट्री

भाजपा ने पीएम मोदी पर खरगे के जहरीले सांप और नालायक जैसे मुद्दों को उछाला लेकिन खरगे ने तत्काल खेद जताकर उसे भी ठंडा कर दिया। बजरंग दल पर प्रतिबंध के कांग्रेस की चुनावी घोषणा के जरिए बजरंग बलि की इंट्री हुई और आखिरी नौ-दस दिनों में भाजपा ने इसके सहारे ही चुनावी विमर्श को ध्रुवीकरण की अपनी पिच पर लाने में पूरा जोर लगा दिया।

रिपोर्ट कार्ड को लेकर प्रभावी अभियान चला

आतंकवाद पर कांग्रेस की कथित नरमी से लेकर संप्रभुता विवाद के जरिए उसके राष्ट्रवाद पर सवाल दागे गए। पीएम के इस पर आक्रामक हमलों ने कांग्रेस में हलचल जरूर मचा दी मगर इसके बावजूद पार्टी ने स्थानीय मुद्दों विशेषकर भ्रष्टाचार के सवाल को नहीं छोड़ा। पार्टी ने आखिरी के चार दिन अपने विज्ञापनों में भ्रष्टाचार पर बोम्मई सरकार की रिपोर्ट कार्ड को लेकर प्रभावी अभियान चला चुनावी विमर्श को मोड़ने के पीएम मोदी के दांव को एक बार फिर थाम लिया।

भाजपा इससे इतनी विचलित हुई कि भ्रष्टाचार पर कांग्रेस के इस अभियान के दावे को लेकर चुनाव आयोग तक शिकायत करने पहुंची मगर तब तक चुनावी नैरेटिव और हवा की दिशा लगभग तय हो चुकी थी जो शनिवार को ईवीएम खुलते ही कांग्रेस की बड़ी जीत के रूप में सामने आयी। हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस ने हाल में हुए चुनाव में स्थानीय मुद्दों और चेहरों को आगे रखते हुए जीत हासिल की थी।