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सोमनाथ मंदिर संबंधी टिप्पणी पर कांग्रेस का भाजपा पर पलटवार, कहा- नेहरू के पत्र सार्वजनिक रूप से हैं उपलब्ध

कांग्रेस ने भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी के उन दावों पर पलटवार किया कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के सोमनाथ मंदिर से जुड़ाव का विरोध किया था। पार्टी ने कहा कि नेहरू पूरी तरह पारदर्शी थे। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट में कहा कि सुधांशु त्रिवेदी ने सोमनाथ मंदिर पर पंडित नेहरू के कुछ पत्रों को लहराया था।

By Agency Edited By: Amit Singh Updated: Fri, 12 Jan 2024 06:30 AM (IST)
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सुधांशु त्रिवेदी की टिप्पणी पर कांग्रेस का पलटवार
पीटीआई, नई दिल्ली। कांग्रेस ने भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी के उन दावों पर पलटवार किया कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के सोमनाथ मंदिर से जुड़ाव का विरोध किया था। पार्टी ने कहा कि नेहरू पूरी तरह पारदर्शी थे। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट में कहा कि सुधांशु त्रिवेदी ने सोमनाथ मंदिर पर पंडित नेहरू के कुछ पत्रों को लहराया था।

तत्कालीन गृह मंत्री राजाजी और तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद समेत नेहरू के लिखे ये और कई अन्य पत्र सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं। त्रिवेदी के दावों के विपरीत इनसे कोई बड़ा रहस्योद्घाटन नहीं होता। नेहरू पूरी तरह पारदर्शी थे और अपने पीछे खुद के लिखे रिका‌र्ड्स छोड़ गए हैं। इसके साथ ही जयराम ने अपनी पोस्ट के साथ उन पत्रों को भी साझा किया। 11 मार्च, 1951 को नेहरू के लिखे पत्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने तत्कालीन गृह मंत्री सी. राजगोपालाचारी को बताया, 'मैंने उन्हें लिखा कि इस मंदिर या किसी अन्य मंदिर या अन्य पूजास्थल पर उनके सामान्य रूप से जाने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इस विशेष अवसर पर मंदिर के उद्घाटन का एक निश्चित महत्व और कुछ निहितार्थ होगा। इसलिए अपनी ओर से, मुझे अच्छा लगता अगर वह खुद को इस तरह से नहीं जोड़ते।'

नेहरू ने यह भी कहा, 'चूंकि राष्ट्रपति भी स्वयं को इस समारोह से जोड़ने के लिए उत्सुक हैं, मुझे नहीं पता कि क्या मेरे लिए यह आग्रह करना उचित है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। इसलिए आपकी सलाह के अनुसार मैं उन्हें यह बताने का प्रस्ताव करता हूं कि वह इस मामले में अपने विवेक का प्रयोग कर सकते हैं, हालांकि मुझे अभी भी लगता है कि उनके लिए वहां नहीं जाना ही बेहतर होगा।'

13 मार्च, 1951 को नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को भी उनकी सोमनाथ यात्रा को लेकर पत्र लिखा था। उन्होंने कहा था, 'अगर आपको लगता है कि निमंत्रण अस्वीकार करना आपके लिए ठीक नहीं होगा तो मैं अपनी बात पर और जोर नहीं देना चाहूंगा।' नेहरू ने प्रसाद को फिर लिखा था कि उनकी सोमनाथ मंदिर की यात्रा ''एक निश्चित राजनीतिक महत्व'' ले रही है और कहा कि उनसे संसद में इसके बारे में सवाल पूछे जा रहे थे, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है।