राजनीतिक नवजीवन के उल्लास में इन चुनौतियों को ढंकने से कांग्रेस को होगा बचना, अगले लक्ष्य के लिए कितनी तैयार?
राजनीतिक नवजीवन के उल्लास में चुनौतियों को ढंकने से कांग्रेस को बचना होगा। संसद में विपक्ष की जिम्मेदारी निर्वाहन में सहयोगी दलों की साझी ताकत और पार्टी की जमीनी राजनीति से जुड़ी चुनौतियों में फर्क है। विपक्ष खेमे की सदन में एकजुटता के सहारे पार्टी बेशक एनडीए सरकार को मजबूत चुनौती पेश करते हुए दो कदम पीछे हटने को बाध्य कर सकती है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली। चुनाव से पहले कांग्रेस बीते एक दशक से लगातार जिन मुश्किल हालातों और चुनौतियों से रूबरू हो रही थी उसे देखते हुए लोकसभा में लगभग सौ सीटों का आंकड़ा छूने की उसकी मंजिल वास्तव में राजनीतिक नवजीवन जैसा है। इसमें संदेह नहीं कि इस नतीजे ने पार्टी को मैदान में मुकाबला करने की उसकी खोई हुई मनोवैज्ञानिक ताकत वापस दिलाई है। जहां से अब वह राजनीतिक सत्ता के अपने अगले लक्ष्य के रोडमैप को नया तेवर और कलेवर दे सकती है।
महत्वपूर्ण चुनौतियों की अनदेखी न करें
मगर इस लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए जरूरी है कि कांग्रेस उत्साह में संगठन के ढांचे में सभी स्तरों पर कमियों, पार्टी में जवाबदेही, हिन्दी भाषी राज्यों में नए नेतृत्व के सामने नहीं आने के संकट, कार्यकर्ताओं से संवाद की दूरियां, नए सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में वोटरों के नए वर्ग को जोड़ने जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों की अनदेखी न करें।
देश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी
देश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरने के बाद जनादेश 2024 की पार्टी अपने हिसाब से सियासी व्याख्या चाहे जिस तरह करे मगर फिलहाल वास्तविकता यही है कि लोकसभा में कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभानी है। इस भूमिका के निर्वाह में बेशक पार्टी के पास सदन में विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए के सभी घटक दलों का 234 का संख्या बल शामिल है।कांग्रेस को इस बात को लेकर बेहद सतर्क रहने की जरूरत
मगर कांग्रेस को यहां इस बात को लेकर बेहद सतर्क रहने की जरूरत है कि संसद में विपक्ष की जिम्मेदारी निर्वाहन में सहयोगी दलों की साझी ताकत और पार्टी की जमीनी राजनीति से जुड़ी चुनौतियों में फर्क है। विपक्ष खेमे की सदन में एकजुटता के सहारे पार्टी बेशक एनडीए सरकार को मजबूत चुनौती पेश करते हुए दो कदम पीछे हटने को बाध्य कर सकती है। लेकिन जब बात पार्टियों के आपसी राजनीतिक हित की आएगी तो हर दल अपनी सियासी जमीन बचाने को सर्वोपरि रखेगा।
कांग्रेस को करना होगा इन चुनौतियों का सामना
उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के राजनीतिक धरातल पर कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों की चुनौती से इस वास्तविकता का हमेशा सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खरगे को अध्यक्ष बनाकर 2022 में शीर्षस्थ नेतृत्व के गतिरोध का समाधान तो निकाल लिया था। लेकिन हकीकत यह भी है कि राष्ट्रीय स्तर पर संगठनात्मक ढांचे में पैनापन का अभाव अभी चुनौती बनी हुई है। पार्टी महासचिवों की जवाबदेही का न कोई तंत्र है या न कसौटी।कांग्रेस के इन राज्यों में खराब चुनावी प्रदर्शन
राज्यों में खराब चुनावी प्रदर्शन की बात हो तो छत्तीसगढ, राजस्थान, मध्यप्रदेश में महासचिवों का उत्तरदायित्व तय नहीं होता। इसी तरह चाहे हरियाणा हो या दिल्ली आपसी टकराव के ताजा उदाहरणों से साफ है कि राज्यों के संगठनात्मक मसले और गुटबाजी का हल निकालने में नाकाम रहने पर भी पार्टी महासचिवों या प्रभारियों की जवाबदेही तय नहीं होती। शीर्ष संगठन में जवाबदेही का तंत्र बनाने की कांग्रेस ने उदयपुर चिंतन शिविर में 2022 में घोषणा भी कि थी मगर अभी यह कार्यरूप में सामने नहीं आया है।