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सत्ता की सियासी मंजिल छूने के लिए कांग्रेस को अभी पार करने हैं चुनौतियों के कई शिखर... याद रखनी होगी ये बात

कांग्रेस को चुनौतियों के कई शिखर अभी पार करने की जरूरत है। लोकसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस के प्रदर्शन का राज्यवार आकलन कुछ ऐसी ही तस्वीर की झलक पेश करता है। इस चुनाव में लोकसभा की 99 सीटें जीतकर कांग्रेस ने भाजपा की वैचारिक सत्ता-सियासत के विरोधी ध्रुव के मुख्य केंद्र के रूप में अपनी जगह जरूर हासिल कर ली है।

By Jagran News Edited By: Nidhi Avinash Updated: Mon, 24 Jun 2024 11:45 PM (IST)
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कांग्रेस को अभी पार करने हैं चुनौतियों के कई शिखर. (Image: ANI)
संजय मिश्र, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव 2024 में पिछले दो आम चुनावों का इतिहास बदलकर संसद में मुख्य और प्रमाणिक विपक्षी दल बनने की कामयाबी के बाद कांग्रेस की राजनीतिक कार्यशैली बदली-बदली नजर आने लगी है। समसामयिक मुद्दों को उठाने की तत्परता के साथ सत्ता प्रतिष्ठान को असहज करने वाले सवालों के शब्दभेदी बाण की धार तेज हो गई है।

राजनीतिक चिंतन में सक्रिय आक्रामकता की नई धारा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर नीचे के स्तर पर दिखाई दे रही है। यह स्वाभाविक है लेकिन एक दूसरा पहलू यह है कि संसद में विपक्ष की भूमिका के निर्वहन की कसौटी और जमीनी राजनीति की वास्तविकता में फर्क होता है। कांग्रेस को इसे याद रखना होगा।

लोकसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस का प्रदर्शन

लोकसभा चुनाव के नतीजों में कांग्रेस के प्रदर्शन का राज्यवार आकलन कुछ ऐसी ही तस्वीर की झलक पेश करता है। इस चुनाव में लोकसभा की 99 सीटें जीतकर कांग्रेस ने भाजपा की वैचारिक सत्ता-सियासत के विरोधी ध्रुव के मुख्य केंद्र के रूप में अपनी जगह जरूर हासिल कर ली है मगर 11 राज्यों में उसके चुनावी प्रदर्शन से साफ है कि सत्ता की सियासी मंजिल छूने के लिए पार्टी को अभी चुनौतियों के कई शिखर पार करने का सफर तय करना है।

आम चुनाव में कांग्रेस यदि विपक्ष से सत्ता पक्ष के फासले की दूरी तय नहीं कर पायी तो इसमें बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिसा, आंध्रप्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और उत्तरप्रदेश इन 11 राज्यों की 290 लोकसभा सीटों के परिणामों का योगदान रहा। इन 290 सीटों में से कांग्रेस को जहां केवल 13 लोकसभा सीटों पर ही जीत मिली है वहीं भाजपा ने 165 सीटें जीती है।

290 में से लगभग 100 सीटें ऐसी है जहां

खास बात हालांकि इन 290 में से लगभग 100 सीटें ऐसी है जहां कांग्रेस लड़ी ही नहीं। पर कांग्रेस को यह बल पैदा करना होगा कि इन सीटों पर लड़े भी। उत्तरप्रदेश में उम्मीद से खराब प्रदर्शन करने के बावजूद भाजपा ने 11 राज्यों की 290 में से 165 सीटें हासिल की है। चुनाव परिणामों का यह आंकड़ा कांग्रेस के उत्साह को वास्तविकता की जमीन पर लाने के लिए पर्याप्त है।

इन राज्यों के परिणामों की कसौटी पर कांग्रेस के प्रदर्शन को देखा जाए तो उत्तरप्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी संग गठबंधन में 17 सीटों पर चुनाव लड़कर पार्टी ने छह सीटें जीती है।2009 के आम चुनाव के बाद यह उसका सबसे बेहतर प्रदर्शन है मगर वास्तविकता यह भी है कि गठबंधन के साए में राजनीतिक जमीन का एक सीमा से अधिक विस्तार उत्तरप्रदेश में पार्टी के लिए चुनौती बनी रहेगी।

उत्तरप्रदेश की राजनीति में राहुल गांधी की वापसी

रायबरेली सीट से जीत के साथ ही उत्तरप्रदेश की राजनीति में राहुल गांधी की वापसी विस्तार का बड़ा आधार तैयार कर सकती है। सपा से दोस्ती कायम रखने की चुनौतियों के बीच अखिलेश यादव सूबे में एक सियासी लक्ष्मण रेखा से इतर कांग्रेस की सक्रिय आक्रामकता सहज रूप से स्वीकार करेंगे इसमें संदेह है। वहीं पिछले तीन आम चुनावों के नतीजों से साफ है कि 40 सीटों वाले बिहार में कांग्रेस को राजद से गठबंधन का कोई खास फायदा नहीं मिला है और नौ सीटें लड़कर पार्टी तीन जीत पायी है।

राजद 2004 के बाद अब तक हुए चार आम चुनावों में अधिकतम चार-पांच सीटें से ज्यादा नहीं जीत पाया है। पर दिलचस्प यह है कि कांग्रेस को विस्तार के लिए गुंजाइश देने को राजद तब भी तैयार नहीं है। राजद के इस रूख के कारण ही कांग्रेस पूर्णिया सीट पर पप्पू यादव को चाहकर भी टिकट नहीं दे पायी। लोकसभा में 42 सांसद भेजने वाले पश्चिम बंगाल में कांग्रेस दशकों से संघर्ष कर रही है। इस चुनाव में उसका प्रदर्शन पहले से भी कमजोर हुआ है और पार्टी को केवल एक सीट ही मिल पायी।

ममता बनर्जी और भाजपा की आमने-सामने की लड़ाई

ममता बनर्जी और भाजपा की आमने-सामने की लड़ाई में सूबे में एकमात्र लड़ने-भिड़ने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी ढाई दशक बाद संसद नहीं पहुंच पाए। ओडिसा में बीजद का पूरा सफाया हुआ तो इसका एक भी हिस्सा कांग्रेस अपनी झोली में नहीं डाल पायी। सूबे की 21 में से 20 सीटें जहां भाजपा के खाते में चली गई और कांग्रेस पिछली बार की एक सीट से आगे नहीं बढ़ सकी है। दिल्ली और उत्तराखंड में लगातार तीसरी बार कांग्रेस का खाता शून्य से आगे नहीं बढ़ा पाया है तो हिमाचल में भी स्थिति बहुत नहीं बदली है।

चुनावी गठबंधन भी किया था मगर

कांग्रेस ने इस बार आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन भी किया था मगर इस प्रयोग का भी दिल्ली में उसे फायदा नहीं मिला। गुजरात में लगातार तीसरी बार शून्य की तस्वीर बदलते हुए एक सीट कांग्रेस ने जरूर हासिल कर ली है पर राज्य की 26 लोकसभा सीटों पर पिछले तीन आम चुनावों से जारी पार्टी की लचर स्थिति सुधरी नहीं है।इन 11 राज्यों की 290 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के प्रदर्शन में जहां काफी बड़ा अंतर है। वहीं शेष अन्य राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की बाकी बची 253 लोकसभा सीटों में कांग्रेस 86 सीटें जीतकर भाजपा से आगे है। इसमें दक्षिणी राज्यों के साथ महाराष्ट्र और पंजाब शामिल हैं जहां पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया है।

पर भविष्य की सत्ता सियासत के लिहाज से कांग्रेस के पास इन राज्यों में भी चैन से बैठने की गुंजाइश नहीं है क्योंकि इन 253 सीटों में से 75 लोकसभा सीटें जीतकर भाजपा उससे बहुत पीछे नहीं है। पिछली दो लोकसभा में विपक्ष का दर्जा हासिल करने से वंचित रही कांग्रेस को ताकत कम होने की स्थिति में सहयोगी दलों के तेवरों की तपिश का अहसास बखूबी है।

तमाम राज्यों में अपने राजनीतिक आधार को बढ़ाने के लिए...

ऐसे में पार्टी को सत्ता सियासत की बड़ी मंजिल को हासिल करना है तो उन तमाम राज्यों में अपने राजनीतिक आधार को बढ़ाने के लिए इससे ज्यादा सक्रियता और आक्रामक जमीनी रणनीति की जरूरत है। अगले चार-पांच महीने में चार राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में होने जा रहे चुनाव इन चुनौतियों के बीच कांग्रेस के भविष्य की उम्मीदों की दशा-दिशा निर्धारित करेंगे।

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