CPI ने प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवादी' शब्द हटाने की याचिका का किया विरोध, SC का खटखटाया दरवाजा
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द को हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इस याचिका का माकपा के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने विरोध किया है।
By Achyut KumarEdited By: Updated: Sat, 10 Sep 2022 02:16 PM (IST)
नई दिल्ली, एजेंसी। राज्यसभा सांसद और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता बिनॉय विश्वम (Binoy Viswam) ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी (Subramaniam Swamy) द्वारा दायर याचिका का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें भारतीय संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को हटाने की मांग की गई है।
विश्वम ने दाखिल किया अभियोग आवेदन
एक अभियोग आवेदन दाखिल करते हुए विश्वम ने कहा कि 'धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद' संविधान की अंतर्निहित और बुनियादी विशेषताएं हैं। स्वामी द्वारा दायर याचिका का मकसद धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को पीछे छोड़ते हुए भारतीय राजनीति पर स्वतंत्र शासन करना है।
कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग
आवेदन में कहा गया है कि स्वामी की याचिका कानूनी प्रक्रिया का पूर्ण रूप से दुरुपयोग है और योग्यता से रहित है। यह अनुकरणीय लागतों के साथ खारिज किए जाने के योग्य है क्योंकि यह भारत के संविधान के 42वें संशोधन को चुनौती देता है।
केशवानंद भारती फैसले का जिक्र
स्वामी ने अपनी याचिका में कहा है कि आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में डाले गए दो शब्दों ने 1973 में 13-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा प्रसिद्ध केशवानंद भारती के फैसले में प्रतिपादित मूल संरचना सिद्धांत का उल्लंघन किया, जिसके द्वारा संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को संविधान की मूल विशेषताओं के साथ छेड़छाड़ करने से रोक दिया गया था।'नागरिकों पर थोपे गए दो शब्द'
स्वामी ने तर्क दिया था कि संविधान निर्माताओं ने संविधान में इन दो शब्दों को शामिल करने को विशेष रूप से खारिज कर दिया था और आरोप लगाया था कि ये दो शब्द नागरिकों पर तब भी थोपे गए थे, जब निर्माताओं ने कभी भी लोकतांत्रिक शासन में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष अवधारणाओं को पेश करने का इरादा नहीं किया था।भाकपा सांसद ने अपने अभियोग आवेदन में कहा कि जनहित याचिका के पीछे असली उद्देश्य राजनीतिक दलों को धर्म के नाम पर वोट मांगने की अनुमति देना है।