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क्या आप जानते हैं कि अपने देश में टीपू सुल्तान के नाम पर भी पार्टी है

क्या अपने देश में राजनीतिक पार्टियों की संख्या बहुत ज्यादा है और उनमें से कइयों की गतिविधियां संदिग्ध हैं या फिर विविधताओं से भरे इतने बड़े देश में राजनीतिक दलों की बड़ी संख्या स्वाभाविक है और चुनाव आयोग पर इस पर चिंतित होने की जरूरत नहीं है

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Updated: Fri, 27 May 2022 03:09 PM (IST)
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ब्रजबिहारी, नई दिल्लीः भाजपा, कांग्रेस जैसी आठ राष्ट्रीय पार्टियों और सपा, द्रमुक, शिव सेना, तेलुगु देसम, जनता दल (यू) जैसी 54 प्रादेशिक या क्षेत्रीय पार्टियों में से बहुतों से आपका भी परिचय होगा। इसके अलावा देश में 2500 ऐसी राजनीतिक पार्टियां हैं जिनका नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा। इन पार्टियों के कामकाज को लेकर चुनाव आयोग ने हाल ही में चिंता जाहिर की है। आयोग ने ऐसे गैर मान्यता प्राप्त दलों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की घोषणा की है।माना जाता है कि इनमें से बहुत सी पार्टियों के बारे में शक है कि वे काले धन को सफेद करने का जरिया मात्र हैं। मुश्किल यह है कि चुनाव आयोग इन पार्टियों को सिर्फ अपनी सूची से बाहर निकाल सकता है, उनका पंजीकरण रद करने का उसे कोई अधिकार नहीं है।

मंत्रिपरिषदीय व्यवस्था के खिलाफ भी पार्टी

क्या आपको पता है कि अपने देश में टीपू सुल्तान के नाम भी एक पार्टी बनी हुई है। एक पार्टी तो ऐसी है तो शासन करने की वर्तमान मंत्रिपरिषदीय व्यवस्था को खत्म करने के उद्देश्य के साथ गठित की गई है। इसका नाम (मिनिस्ट्रियल सिस्टम एबोलिशन पार्टी) ही इसके परिचय के लिए काफी है। अब आप पालिटिकल पार्टी आफ नेशनल मैनेजमेंट सर्विस और गोल्डन इंडिया पार्टी के बारे में क्या कहेंगे।

केंद्र से गुहार गई बेकार

चुनाव आयोग ने फरवरी, 2018 में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामा में कहा है कि पिछले 20 साल से वह केंद्र सरकार से अनुरोध कर रहा है कि उसे ऐसी पार्टियों का पंजीकरण खत्म करने का अधिकार प्रदान करे। आयोग ने इनकम टैक्स विभाग को कई बार संदिग्ध पार्टियों से संबंधित जानकारी दी लेकिन उन शिकायतों का क्या हुआ, इस पर निगरानी रखने का आयोग के पास कोई तंत्र ही नहीं है।

आयोग ने 300 पार्टियों को किया बाहर

चुनाव आयोग ने 2016 में 300 पार्टियों को सूची से बाहर निकाला था। ये पार्टियां निष्क्रिय थीं और 2005 के बाद से कोई चुनाव नहीं लड़ा था। इसके बाद पार्टियों की संख्या 1786 से घटकर लगभग 1500 हो गई। जनवरी, 2017 में सात राष्ट्रीय पार्टियों और 58 राज्य स्तरीय पार्टियों के साथ लगभग 1400 गैर मान्यता प्राप्त पार्टियां थीं, लेकिन इसके बाद राजनीतिक पार्टियों के पंजीकरण में तेज वृद्धि हुई। वर्ष 2017 में 37 नई राजनीतिक पार्टियों का पंजीकरण हुआ, जबकि जून, 2018 तक इनकी संख्या 2069 हो गई और उसी साल अक्टूबर तक इनकी संख्या 2143 हो गई। 15 मार्च 2019 तक गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत पार्टियों की संख्या बढ़कर 2301 हो गई। वर्ष 2019 के अप्रैल से नवंबर के बीच 118 नई पार्टियों का पंजीकरण हुआ।

कांग्रेस की हाईकमान संस्कृति भी जिम्मेदार

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र विभाग के शोधकर्ता प्रदीप छिब्बर और राहुल वर्मा ने भारत में राजनीतिक दलों की संख्या के पीछे कांग्रेस के हाईकमान संस्कृति को दोषी ठहराया है। उनके अनुसार हाईकमान राज्यों के मजबूत जमीन वाले नेताओं को एक जगह स्थिर नहीं रहने देना चाहता ताकि वे उसे चुनौती न दे सकें। इस अस्थिरता से बचने के लिए उन नेताओं ने अपनी-अपनी पार्टियां खड़ी करनी शुरू कीं। हालांकि देश में पार्टियों की बड़ी संख्या के पीछे यही एक वजह नहीं है।

विविधताओं से भरे 130 करोड़ की आबादी वाले इतने बड़े देश में पार्टियों की संख्या ज्यादा होना हैरानी की बात नहीं है। भले ही राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हुआ है लेकिन राज्यों के अंदर जातियों, उपजातियों, जनजातियों और धार्मिक समूहों के आधार पर पार्टियों का अस्तित्व अत्यंत स्वाभाविक है। मसलन, तमिलनाडु में पांच प्रमुख पार्टियां हैं जबकि छोटी पार्टियों की संख्या लगभग 50 है। इनमें से किसी भी पार्टी का हाईकमान संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है।