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संकट में वंशवादी राजनीति! गांधी, ठाकरे, बादल व मुलायम परिवार की कम नहीं हो रही मुश्किलें

महाराष्ट्र की सियासी घटनाक्रमों को देखें तो सबसे ज्यादा खतरा ठाकरे परिवार की सियासत पर पड़ता नजर आ रहा है। हालांकि केवल महाराष्ट्र ही नहीं उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब और दिल्ली तक देश के कई बड़े सियासी परिवार संकट में फंसे नजर आ रहे हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Updated: Tue, 28 Jun 2022 02:15 PM (IST)
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संकट में वंशवादी राजनीति, मुश्किलें नहीं हो रही कम (फाइल फोटो)
नई दिल्ली, एजेंसी। महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक संकट के बीच एक बार फिर परिवारवाद व वंशवादी राजनीति पर चर्चा शुरु हो गई है। हाल के दिनों में बदलते राजनीतिक परिदृश्य में कई पारिवारवादी पार्टियों पर संकट के बादल दिखाई दे रहे है। महाराष्ट्र की सियासी घटनाक्रमों को देखें तो सबसे ज्यादा खतरा ठाकरे परिवार की सियासत पर पड़ता नजर आ रहा है। हालांकि, केवल महाराष्ट्र ही नहीं उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब और दिल्ली तक देश के कई बड़े सियासी परिवार संकट में फंसे नजर आ रहे हैं।

कांग्रेस ने भारतीय राजनीति को वंशवाद की राजनीति का सूत्र सिखाया। बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी सरीखे दिग्गजों ने कांग्रेस को एक आंदोलन के रूप में चलाया, लेकिन स्वतंत्रता के बाद वह नेहरू-गांधी परिवार की निजी संपत्ति मात्र बनकर रह गई।

ठाकरे परिवार: महाराष्ट्र में सत्ता बचाने की कवायद

महाराष्ट्र में चल रहे सियासी उठापटक के पीछे कहीं न कहीं परिवारवाद का भी मुद्दा है। शिवसेना पहली बार बगावत का सामना नहीं कर रही है, लेकिन इस बार हाल ज्यादा बिगड़ते नजर आ रहे हैं। खबर है इस फूट के बाद केवल पुत्र आदित्य ठाकरे ही हैं, जो मंत्री-विधायक के तौर पर अपने पिता मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ खड़े हैं। आंकड़े बताते हैं कि असम के गुवाहाटी में पार्टी के 40 विधायक बगावत कर चुके हैं। फिलहाल, विधानसभा में शिवसेना विधायकों की संख्या 55 है।

गांधी परिवार: 2014 से लगातार पार्टी कर पराजय का सामना

देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में कांग्रेस की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। साल 2014 से लेकर अब तक देखें तो कांग्रेस और गांधी परिवार ने कई सियासी झटकों का सामना किया है। हालांकि, पार्टी को साल 2018 में तीन राज्यों में जीत मिल गई थी। हाल ही में 5 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति बदतर हुई है। यूपी चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा के दम भरने के बावजूद पार्टी एक सीट पर सिमट गई। पंजाब की बात करें तो यहां भी पार्टी को आम आदमी पार्टी के हाथों बुरी तरह हार का समाना करना पड़ा। कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इस बार यूपी उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। दिल्ली विधानसभा उपचुनाव राजेंद्र नगर और पंजाब के संगरूर में तो पार्टी की जमानत जब्त हो गई। ये ऐसे दो राज्य हैं, जहां कभी कांग्रेस ने शासन किया है।

मुलायम परिवार: फूट से पार्टी हुई कमजोर

उत्तर प्रदेश की सियासत के दिग्गज खिलाड़ी माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव का परिवार इन दिनों सियासी संकट से जूझ रहा है। यूपी के दिग्गज नेता और पिता मुलायम सिंह यादव से कमान हासिल करने के बाद अखिलेश यादव की पार्टी लगातार हार का सामना कर रही है। साल 2014, 2017, 2019 और 2022 में पार्टी लगातार पराजित हुई है। यूपी उपचुनाव में पार्टी ने आजमगढ़ और रामपुर जैसी सीटें गंवा दी। कहा गया कि अखिलेश यहां एक बार भी प्रचार के लिए नहीं पहुंचे। इसके पीछे कहीं न कहीं परिवारवाद का मुद्दा सामने आ रहा है।

बादल परिवार: सत्ता से जमानत जब्त तक

कभी एनडीए के साथ मिलकर पंजाब में शासन करने वाले बादल परिवार के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल अब संकट से जूझ रहा है। परिवार और पार्टी के मुखिया प्रकाश सिंह बादल ने यहां एक दशक तक मुख्यमंत्री के तौर पर शासन किया। अब हाल ऐसे हुए कि संगरूर उपचुनाव में पार्टी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई। वहीं, विधानसभा चुनाव में विक्रम सिंह मजीठिया समेत कई बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा।