चुनाव सुधार की ओर बढ़ते कदम, एक व्यक्ति-एक सीट का नियम समय की मांग; एक्सपर्ट व्यू
Election Commission of India जब लोकतंत्र में जनता को चुनाव के दौरान एक से अधिक क्षेत्रों में मतदान करने का अधिकार नहीं है तब किसी उम्मीदवार को एकाधिक सीटों से चुनाव लड़ने का अधिकार कैसे हो सकता है?
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Wed, 19 Oct 2022 02:25 PM (IST)
पीयूष द्विवेदी। हाल में चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार की दिशा में कुछ सक्रियता दिखाई है। अभी कुछ दिन पहले आयोग द्वारा चुनावी वादों के संबंध में कहा गया था कि राजनीतिक दल अपने घोषित वादों को पूरा करने और उनके लिए वित्तीय प्रबंध का तरीका सार्वजनिक करें। अब आयोग ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें एक व्यक्ति के केवल एक सीट से चुनाव लड़ने का नियम लागू करने की बात कही गई है। यदि संविधान संशोधन के जरिये इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है तो फिर नेताओं के लिए दो सीटों से चुनाव लड़ने का मार्ग बंद हो जाएगा।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार किसी भी उम्मीदवार को कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ने की छूट थी, जिसे 1996 के संविधान संशोधन के द्वारा दो सीटों तक सीमित कर दिया गया। आज इस नियम के तहत नेता दो सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन समय-समय पर दो सीटों के नियम को भी परिवर्तित करके एक व्यक्ति-एक सीट की व्यवस्था लागू करने की बात की जाती रही है। चुनाव आयोग ने 2004 में भी इस संबंध में एक प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन तब इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
2015 में विधि आयोग ने भी चुनाव सुधारों पर अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि उम्मीदवारों को एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ने से रोकने के लिए नियम बनाया जाए। कहने का अर्थ यह है कि भारतीय राजनीति में एक व्यक्ति-एक सीट के नियम की बात काफी समय से हो रही है, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा सका है। ऐसे में आज जब पुनः चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को इस संबंध में प्रस्ताव भेजा है तो देखना होगा कि इसपर सरकार क्या कदम उठाती है।
एक आंकड़े के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में 30 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जो 2019 में दोगुनी वृद्धि के साथ 60 हजार करोड़ रुपये हो गए। 1998 से लेकर 2019 के बीच लगभग 20 साल की अवधि में चुनाव खर्च में छह से सात गुना की बढ़ोतरी हुई है। स्पष्ट है भारत में चुनाव एक बहुत ही खर्चीली प्रक्रिया है। अत्यंत विस्तृत मतदाता वर्ग तक पहुंचना तथा सुरक्षित ढंग से उनका मतदान सुनिश्चित करवाने में बड़ी धनराशि लगती है। ऐसे में जब कोई उम्मीदवार दो सीटों से चुनाव लड़कर दोनों जगह से जीतने के बाद एक सीट छोड़ देता है तो वहां उपचुनाव करवाना पड़ता है, जो चुनाव प्रक्रिया के खर्च में अनावश्यक वृद्धि का कारण तो बनता ही है, साथ ही बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं में चुनाव के प्रति अरुचि भी पैदा होती है।
चुनाव आयोग ने 2004 में इस संबंध में केंद्र को भेजे अपने प्रस्ताव में यही तर्क देते हुए इसे धन का दुरुपयोग बताया था। साथ ही इस स्थिति के मद्देनजर सीट छोड़ने वाले निर्वाचित उम्मीदवार को सरकार के खाते में एक निश्चित रकम जमा करने का नियम बनाने की सिफारिश भी तब चुनाव आयोग द्वारा की गई थी, मगर इस संबंध में धरातल पर कुछ भी नहीं हुआ। एक व्यक्ति-एक सीट के विरोध में तर्क यह दिया जाता है कि ऐसा करने से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के ‘व्यापक विकल्पों’ के अधिकार का उल्लंघन होगा तथा राजनीति में उम्मीदवारों की कमी हो सकती है। यह तर्क सही प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि जब लोकतंत्र में सर्वोपरि मानी जाने वाली जनता को चुनाव के दौरान एक से अधिक क्षेत्रों में मतदान करने का अधिकार नहीं है, तब किसी उम्मीदवार को एकाधिक सीटों से चुनाव लड़ने का अधिकार कैसे हो सकता है?
असल में इस तरह के तर्कों की ओट में नेता दो सीटों से लड़ने की अपनी अनुचित सुविधा को बचाए रखना चाहते हैं। वास्तव में लंबे समय से चर्चा में बने रहने के बावजूद यदि एक व्यक्ति-एक सीट का नियम अब तक व्यवहार में नहीं आ पाया है तो इसके पीछे कारण यही है कि देश के लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता एक से अधिक सीट पर चुनाव लड़ने के नियम का लाभ लेते रहे हैं। कई बार बड़े एवं प्रभावशाली नेता अपना शक्ति प्रदर्शन करने और भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के जनाधार को प्रभावित करने के उद्देश्य से दो सीटों से चुनाव लड़ते हैं। वहीं जब किसी नेता को अपनी एक सीट से जीत की उम्मीद नहीं रहती तो वह दूसरी सीट से भी चुनाव में उतर जाता है। जाहिर है एकाधिक सीटों से निर्वाचन का नियम पूरी तरह से नेताओं के राजनीतिक स्वार्थों को साधने का उपकरण मात्र है। इसका जनहित से कोई संबंध नहीं। ऐसे में उचित होगा कि मोदी सरकार चुनाव आयोग के प्रस्ताव पर कार्रवाई करते हुए एक व्यक्ति-एक सीट के नियम को अमल में लाकर राजनीतिक दलों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करे।[शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय]