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लोकसभा चुनाव का भी मुद्दा तय कर गया बिहार का आर्थिक सर्वे, अन्य राज्यों में भी जोर पकड़ेगी मांग

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने राज्य में आरक्षण के दायरे को 50 फीसदी से बढ़ाकर 75 फीसदी करने की बात कही है। उधर पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बीच आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है। इस रिपोर्ट से देश की चुनावी राजनीति में गरमाहट हो सकती है। बिहार की देखादेखी अन्य राज्यों से भी जातिवार गणना और आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग जोर पकड़ने लगेगी।

By Jagran NewsEdited By: Manish NegiUpdated: Tue, 07 Nov 2023 11:07 PM (IST)
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आर्थिक सर्वे और आरक्षण का दायरा बढ़ने से देश की राजनीति पर क्या असर होगा? (फाइल फोटो)
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। जातिवार गणना के बाद बिहार में आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट ऐसे समय में सार्वजनिक की गई है, जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की गतिविधियां चरम पर हैं। ऐसे में बिहार से आई यह रिपोर्ट पूरे देश की चुनावी राजनीति में भी गर्मी पैदा करेगी।

पिछड़ों की राजनीति करने वाली पार्टियां आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग को हवा दे सकती हैं एवं कांग्रेस से उन्हें भरपूर समर्थन भी मिल सकता है। जाहिर तौर पर भाजपा पर दबाव बढ़ना तय है, जिसकी काट की तलाश में उसके सामने भी सियासी कुरुक्षेत्र में उतरने की विवशता होगी।

बिहार में बढ़ा आरक्षण का दायरा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातियों की आर्थिक रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत करने के साथ ही आरक्षण के दायरे को भी 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने की बात कही है। ऐसे में बिहार की देखादेखी अन्य राज्यों से भी जातिवार गणना और आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग जोर पकड़ने लगेगी। मराठों, जाटों, कुनबी और पटेलों का पहले से जारी आंदोलन और भी तीव्र हो सकता है। न्यायिक एवं निजी क्षेत्रों में भी आरक्षण के लिए संघर्ष का विस्तार हो सकता है।

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बीजेपी को मजबूर करेगा सहयोगियों का रुख!

राजद ने तो मांग शुरू भी कर दी है। यहां तक कि केंद्र सरकार में शामिल एनडीए के सहयोगी दल रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, अपना दल (सोनेलाल) की अनुप्रिया पटेल एवं राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के पशुपति कुमार पारस पहले से ही राष्ट्रीय स्तर पर जातिवार गणना की मांग करते आ रहे हैं। सहयोगियों का यह रूख भाजपा को भी रणनीति बदलने पर मजबूर कर सकता है।

जदयू के मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी इस काम के लिए नीतीश कुमार को कर्पूरी ठाकुर एवं वीपी सिंह की श्रेणी में खड़ा करते हैं। उनका कहना है कि आरक्षण को 75 प्रतिशत तक बढ़ाने के पक्षधर नीतीश ने किसी वर्ग की हकमारी नहीं की। सवर्णों के दस प्रतिशत आरक्षण को भी बनाए रखकर समतामूलक समाज की बात की है और किसी दल को नीतीश के प्रस्ताव से आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी महिला आरक्षण विधेयक आने के बाद से ही जातिगत जनगणना और आबादी के हिसाब से भागीदारी की मांग को मुखर आवाज दे रहे हैं।

बिहार में गठबंधन में आएगी मजबूती

बिहार में भाजपा के लिए चेतावनी है कि कभी-कभी राजद-जदयू के बीच जो फासला दिखता है, वह इस पहल के बाद घट सकता है। नीतीश ने राजद की राजनीति के अनुकूल ही आरक्षण का दायरा बढ़ाने की बात की है। वामदलों की राजनीति भी इसी लाइन पर चलती है। आरक्षण के मुद्दे पर ही कभी वीपी सिंह एवं कर्पूरी ठाकुर को सत्ता से हटाने वाली कांग्रेस भी इसी लाइन पर ही खड़ी है, इसलिए भाजपा के सामने बिहार में अपने विरोधी दलों के पक्के होते इस बंधन से पार पाना आसान नहीं होगा।

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