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क्या समाज में जातीय पिछड़ेपन के बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने की 66 प्रतिशत व्यवस्था श्रेयस्कर होगी?

EWS Reservation सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद आरक्षण पर फिर चर्चाशुरू हो गई है। हमें समझना होगा कि समाज में समानता लाने के नाम पर जाति आधारित आरक्षण जैसी व्यवस्था को अनंतकाल तक जारी नहीं रखा जा सकता है।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Mon, 14 Nov 2022 09:01 AM (IST)
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EWS Reservation: लगातार नहीं जारी रखी जा सकती है यह व्यवस्था
डा. एके वर्मा। सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान में किए गए संशोधन को सुप्रीम कोर्ट ने वैधानिक माना है। इस निर्णय के आने के बाद से ही आरक्षण के होने और नहीं होने को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। आरक्षण विवादास्पद मुद्दा है और न्यायिक निर्णय पर असहमति स्वाभाविक है। लेकिन प्रश्न है कि क्या देश में आरक्षण अनवरत चलता रहेगा? भले ही समयसीमा तय नहीं की गई, लेकिन संविधान निर्माताओं ने यह अपेक्षा अवश्य की थी कि कुछ समय पश्चात इसकी समीक्षा हो और समाज पर इसके प्रभाव का आकलन किया जाए। हालांकि ऐसी कोई समीक्षा नहीं हुई। धीरे-धीरे यह ऐसा राजनीतिक मसला बन गया कि किसी भी दल के लिए आरक्षण के विरुद्ध बोलना संभव ही नहीं रह गया। स्थिति यह हो गई कि आरक्षित समूह आरक्षण को आज अपना संवैधानिक अधिकार मानता है।

क्या आरक्षण पर हम हमेशा लड़ते रहेंगे?

विगत सात दशक से ज्यादा के समय में राजनीतिक दलों और नेताओं ने जनता का मनोविज्ञान बिगाड़ दिया है। सबको अपनी समस्या का समाधान आरक्षण में दिखाई देता है। कोई नहीं सोचता कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश में कितने लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा? क्या सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं? क्या आरक्षण पर हम हमेशा लड़ते रहेंगे? कभी-कभी लगता है कि जनता कोआरक्षण में उलझाकर राजनीतिक दल स्वार्थ सिद्धि में लगे हैं? यूनानी दार्शनिक प्लेटो कहते हैं, अच्छे नेता जनता को असीमित और बुरे नेता जनता को सीमित संसाधनों की ओर ले जाते हैं। सीमित संसाधनों की ओर ले जाने से जनता में संघर्ष और वैमनस्य पैदा होता है। आरक्षण ऐसा ही संसाधन है, जहां विकल्प सीमित हैं और आकांक्षी बहुत ज्यादा। दूसरी ओर, स्वरोजगार एक असीमित क्षेत्र है। उस ओर युवाओं को प्रेरित करना अच्छे नेता का गुण है। वर्तमान सरकार के स्टार्टअप, मुद्रा, स्टैंडअप इंडिया आदि जैसे कदम सराहनीय हैं।

स्वतंत्रता के बाद से सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े आज काफी आगे निकल गए हैं। सामान्य वर्ग का युवा नहीं समझ पाता कि जिस पूर्ववर्ती शोषणवादी व्यवस्था में उसकी कोई भूमिका नहीं, उसका दंड वह क्यों भुगत रहा है? मुस्लिम समाज में 85% पसमांदा मुस्लिम हैं, जो मतांतरित दलित-शोषित-पिछड़े हिंदू ही हैं। उन्हें तो आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा। दलित-पिछड़ों में भी अनेक उप-वर्ग ऐसे हैं जिन्हें आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिल सका। क्या हमें उनकी भी चिंता नहीं करना चाहिए? सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से यह विचार आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी कि ‘जाति’ के स्थान पर ‘वर्ग’ को आरक्षण का आधार बनाया जाए। इससे न केवल जातीय राजनीति पर प्रहार होगा, बल्कि जाति के स्थान पर वर्ग आधारित सामाजिक संरचना की आधारशिला बनेगी। समाज में सभी के पास उन्नति करते हुए स्वयं को अगले वर्ग में पहुंचाने का अवसर होगा।

[निदेशक, सेंटर फार द स्टडी आफ सोसायटी एंड पालिटिक्स, कानपुर]