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Exclusive Interview: कांग्रेस का डीएनए और गांधी परिवार का खून एक, परिवार को दूर रखने वाला होगा बेवकूफ: थरूर

कांग्रेस का डीएनए और गांधी परिवार एक दूसरे से अलग नहीं। विभिन्न पावर सेंटर के नाम पर इस परिवार को पार्टी से दूर करने वाला बेवकूफ ही होगा। राज्यों के चुनावी दौरे की आपाधापी के बीच दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से शशि थरूर ने विशेष बातचीत की।

By Sanjay MishraEdited By: Monika MinalUpdated: Fri, 14 Oct 2022 06:01 PM (IST)
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कांग्रेस का डीएनए और गांधी परिवार का खून एक, परिवार को दूर रखने वाला होगा बेवकूफ: थरूर कांग्रेस

अध्यक्ष पद के चुनाव में रंग भरते हुए चर्चा का विषय बना चुके तेज तर्रार वरिष्ठ पार्टी नेता शशि थरूर को चुनाव में बराबरी का व्यवहार नहीं होने की शिकायत तो है मगर वे पार्टी के शीर्ष पद के हो रहे चुनाव को ही सबसे अहम मान रहे हैं। उनका कहना है कि इस चुनाव को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ आमलोगों का जैसा रूझान दिखा है वह कांग्रेस के राजनीतिक पुनरोत्थान का भरोसा पैदा करने वाला है। पार्टी को मौजूदा यथास्थिति से बाहर निकालने के लिए खुद को बदलाव का उम्मीदवार मानते हुए वे यह भी कहते हैं कि कांग्रेस का डीएनए और गांधी परिवार एक दूसरे से अलग नहीं और अलग-अलग पावर सेंटर के नाम पर इस परिवार को पार्टी से दूर रखने वाला कोई बेवकूफ ही होगा। राज्यों के चुनावी दौरे की आपाधापी के बीच दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से शशि थरूर ने विशेष बातचीत की।

पेश है इसके अंश:- 

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के प्रचार अभियान के आखिरी मुकाम पर आप अपनी सबसे बड़ी ताकत क्या मान रहे हैं?

मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है कि हमारी पार्टी में चुनाव हो रहा है और पूरे देश का ध्यान कांग्रेस पर है। जनता और मीडिया कांग्रेस की बात कर रहे हैं जो कुछ वर्षों से हुआ नहीं था। छोटे से लेकर बड़े सारे निर्णय दिल्ली में तय हो जाते हैं। पार्टी की व्यवस्था इतनी केंद्रीयकृत है कि जिला अध्यक्ष का नाम भी दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष से तय होता है। अभी दो ढाई साल में ही हमारे आठ-नौ महत्वपूर्ण नेता पार्टी छोड़कर चले गए। मैं इन हालातों को बदलना चाहता हूं।

क्या आपको इसमें अंदरूनी बदलाव की आहट दिख रही है?

मुझे बदलाव का माहौल महसूस हो रहा है। यह पता नहीं कि मुझे कितना प्रतिशत मत मिलेगा। लेकिन जो यह सोच रहे थे कि पुराने चुनावों की तरह 10 प्रतिशत से से नीचे वोट मिलेंगे जैसे शरद पवार और राजेश पायलट को छह प्रतिशत के करीब ओर जितेंद्र प्रसाद को एक फीसद से भी कम, उस तरह की ऐतिहासिक कहानी दोहरायी जाएगी,  उनके लिए नतीजे आश्चर्यजनक संकेत लाने वाले हैं। पीसीसी डेलिगेट की प्रासंगिकता इस चुनाव ने अचानक बढ़ा दी है।

क्या संगठन के हर स्तर पर अहमियत बहाली संभव है?

हर स्तर पर चुनाव से यह संभव है। पीसीसी डेलिगेट सैद्धांतिक रूप से चुने हुए हैं मगर कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से पहले इन्हें अपनी भूमिका निभाने का कोई मौका नहीं मिलता था। जबकि होना चाहिए यह कि चुने हुए पीसीसी डेलीगेट को जिले में जब भी कोई पार्टी का बड़ा नेता या मंत्री जाता है तो मंच पर उसे भी जगह दी जाए ताकि लोग जानेंगे कि हम हमारी आवाज सुनाने के लिए बैठे हैं। टिकट बंटवारे में भी डेलिगेट की राय लेनी चाहिए।

क्या कांग्रेस की मुश्किल यह नहीं कि न उसके राजनीतिक नैरेटिव जनता तक पहुंच पा रहे न ही जनता से कनेक्ट की बाधा खत्म हुई है?

मुझे खुद यह समझ नहीं आ रहा है। लेकिन यह भी सच है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा इस दिशा में अब तक बहुत सफल चल रही है। सुबह साढे छह बजे ही हजारों-हजार लोग उत्साह में ताली बजाते हुए उनके साथ चल रहे हैं। कांग्रेस इस कनेक्ट को बना रही है। बीजेपी के सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा ने कांग्रेस और राहुल गांधी की छवि खराब की है। मोदी सरकार की नीतियों व काम से लोग संतुष्ट नहीं है। भाजपा बार-बार शायद इसीलिए जीत रही कि लोगों को यह विश्वास नहीं कि कांग्रेस यह जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है।

अध्यक्ष बने तो क्या आपके पास ऐसा कोई ब्लू प्रिंट है जिसके जरिए कांग्रेस और जनता के बीच विश्वास की डोर बहाल कर सकें?

कोई ब्लूप्रिंट तो नहीं है मगर मैं इसकी खोज में हूं। मेरा मानना है कि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं का ऐतिहासिक साहस रहा जिसके बल पर हमने बड़ी-बड़ी ताकतों को हटाया है। कांग्रेस के मूल्यों और सिद्धांत में कोई खराबी नहीं है। हम साहस और आत्मविश्वास की अपनी पूंजी के सहारे लड़कर वापस आ सकते हैं।

खड़गे और आपमें से चाहे जो भी अध्यक्ष बने माना जा रहा कि पार्टी में सत्ता के दो केंद्र होंगे और गांधी परिवार एक ताकतवर पॉवर सेंटर बना रहेगा क्या है यह चुनाव के विरोधाभासी नहीं होगा?

हम एक साथ क्यों नहीं काम कर सकते। मेरा मानना है जो भी अध्यक्ष बने गांधी परिवार को दूर रखने की बात सोचने वाला भी बेवकूफ होगा क्योंकि यह परिवार हमारे लिए बहुत बड़ी ताकत है। पार्टी का डीएनए और गांधी परिवार का खून 100 सालों से एक में मिले हुए हैं। इसलिए अध्यक्ष बना तो अपना काम करूंगा पर गांधी परिवार से दूर नहीं रहूंगा। उनका रोल उनसे बात करके पार्टी की भलाई के लिए इस्तेमाल करेंगे।

गांधी परिवार पार्टी की इतनी बड़ी पूंजी है तो फिर कांग्रेस के सबसे बुरे दौर में नेतृत्व करने से वह पीछे क्यों हट गया?

यह उनका निर्णय था। मैं नहीं चाहता था कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद छोड़ दें लेकिन 2019 में इस्तीफा देने के तीन साल बाद भी वे बाद वापस नहीं आना चाहते तो मतलब साफ है कि वह किसी और को मौका देना चाहते हैं और आपको यह मौका ले लेना चाहिए।

कांग्रेस अध्यक्ष की मौजूदा चुनाव प्रक्रिया से आप कितने संतुष्ट हैं?

पहली बार 22 साल में चुनाव हो रहे हैं और हम इसे छुपा नहीं सकते कि इसमें कई कमियां हैं। 30 सितंबर को हमें डेलिगेट का एक लिस्ट मिला जिसमें नाम थे ब्लॉक व फोन नंबर नहीं था। फिर पांच अक्टूबर को एक और सूची मिली जिसमें 600 लोगों के नाम और फोन नंबर अलग-अलग थे और काफी मशक्कत के बाद यह डेढ़ सौ तक आया इसमें भी 50 नंबर मान्य नहीं हैं। इन चुनौतियों के चलते ही मीडिया के जरिए पीसीसी डेलिगेट तक अपनी बात पहुंचा पर जोर दे रहा हूं।

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