Exclusive: 'जब मुस्लिम निराश होता है तो चुपचाप घर बैठ जाता है': मौलाना अरशद मदनी
मौलाना मदनी सर्वधर्म सदभाव और हिंदू मुस्लिम एकता के लिए भी प्रयासरत रहते हैं। वे उन चंद व्यक्तित्वों में सब से ऊपर माने जाते हैं जिन्हें मुस्लिम समाज के अलावा दूसरे वर्ग भी इज्जत की नजर से देखते हैं। वे अपने मत को बहुत स्पष्ट मगर शालीनता से सामने रखते हैं। उनके घनिष्ट मित्रों में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कुछ बड़े नाम भी हैं।
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। मुस्लिम धर्मगुरुओं के सौ वर्ष पुराने संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulama-i-Hind) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) दारुल उलूम देवबंद (Darul Uloom Deoband) में हदीस की शिक्षा भी देते हैं। वे हिंदू धर्म पर 50 से अधिक पुस्तकों का अध्धयन कर चुके है। वे देश के मुसलमानों से भी कहते हैं कि उन्हें हिंदू धर्म की किताबों और ग्रंथों का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिए। हिंदू धर्मगुरुओं द्वारा लिखी गई इन पुस्तकों का उर्दू अनुवाद दारुल उलूम के पुस्तकालय में भी उपलब्ध है।
मौलाना मदनी (Maulana Madani) सर्वधर्म सदभाव और हिंदू मुस्लिम एकता के लिए भी प्रयासरत रहते हैं। वे उन चंद व्यक्तित्वों में सब से ऊपर माने जाते हैं जिन्हें मुस्लिम समाज के अलावा दूसरे वर्ग भी इज्जत की नजर से देखते हैं। वे अपने मत को बहुत स्पष्ट मगर शालीनता से सामने रखते हैं। उनके घनिष्ट मित्रों में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कुछ बड़े नाम भी हैं। वे सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) से भी समाज के सरोकारों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर लंबी चर्चा कर चुके हैं।
उनका कहना है कि हम भारतीय हैं और हमारे पूर्वज भी भारतीय थे, लेकिन राजनीति ने इस देश के दो बड़े वर्गों को दो हिस्सों में बांट दिया है। दैनिक जागरण के सहयोगी उर्दू दैनिक इंकिलाब के संपादक वदूद साजिद ने उनसे कई अहम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की है। प्रस्तुत है प्रमुख अंशः
प्रश्न- लोकसभा चुनाव में चार चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है। इस बार एक बदलाव यह महसूस किया जा रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं के लिए कहीं से कोई अपील सुनने को नहीं मिल रही है। क्या मुसलमानों या उनके विद्वानों और बुद्धिजीवियों में निराशा है?
उत्तर- मुसलमान कभी निराश नहीं हो सकता। उसकी चुप्पी का कारण यह है कि सांप्रदायिक मानसिकता ने भारत के मतदाताओं को दो भागों में बांट दिया है। इस मानसिकता ने इस स्थिति को अपनी सफलता की आधारशिला मान लिया है। जागरूक मुस्लिम वर्ग यह समझता है कि जो आग जलाई गई है, यदि एक-आधा शब्द इधर-उधर हो गया तो उन्हें इस आग को बढ़ाने का साधन मिल जाएगा। दस साल के अनुभव के बाद मुसलमान उस बिंदु पर पहुंच गया है जहां उसे चुप रहना चाहिए। यदि कोई मुसलमान निराशा का शिकार होता तो वह चुपचाप घर बैठ जाता और चुनावों में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेता। मुस्लिम मतदाताओं को वोट देने के लिए कतार दर कतार खड़ा देखा गया। यह उन स्थितियों को नियंत्रित करने का अवसर है, जिन्होंने देश और संविधान तथा धर्मनिरपेक्षता को नुकसान पहुंचाया है। मुसलमानों ने सही समय पर सही निर्णय लिया।
प्रश्न- क्या यह जागृति प्रतीक है कि मुसलमानों में शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा है?उत्तर- बिल्कुल। मुसलमानों में शैक्षिक पिछड़ापन जो 50 साल पहले था, वह दस साल पहले नहीं था और जो दस साल पहले था वह आज नहीं है। मुसलमानों ने यह भी सीख लिया है कि ऐसे देश में कैसे रहना है जहां कई अल्पसंख्यक वर्ग रहते हैं। देश के सांप्रदायिक माहौल ने न केवल उनमें चेतना जगाई है, बल्कि उनके लिए रास्ते भी खोले हैं। मुसलमानों की वर्तमान नीति बिल्कुल सही है और इसे हताशा के रूप में समझना उचित नहीं है। हमारे पूर्वज यहीं पैदा हुए, हम यहीं पैदा हुए, हमें यहीं रह कर जीवन गुजारना है।
प्रश्न- विभिन्न विचारधाराओं और विभिन्न वर्गों के लोग आपके पास आते रहते हैं। इन दस वर्षों में जो स्थिति उत्पन्न हुई है, उस पर आपका क्या विश्लेषण है?उत्तर- मुझसे ऐसे लोग भी मिलते हैं जो भाजपा से सहानुभूति रखते हैं। उनमें से कुछ आरएसएस से भी हैं। कुछ बहुत शिक्षित और विचारशील लोग हैं और कुछ ऐसे हैं जिनकी भाजपा में ऊपर तक पहुंच है, लेकिन वे इस स्थिति से पीड़ा महसूस करते हैं। उनका कहना है कि देश जिस रास्ते पर जा रहा है वह विनाश का रास्ता है। जब मैं उनके मुख से यह सुनता हूं तो मुझे आश्चर्य भी होता है, लेकिन मुझे यकीन है कि ये लोग देशहित में ऐसा सोचते हैं। मैं इस सोच का बहुत आदर करता हूं।
प्रश्न- एक समय आपने आरएसएस नेतृत्व से मुलाकातों का सिलसिला शुरू किया था, क्या वह आगे बढ़ा?उत्तर- वो लोग बराबर मुझसे मिलने आते थे। जमीयत का एक इतिहास है। इससे जुड़े हमारे बुजुर्गों ने देश की आजादी के लिए बहुत बड़ा बलिदान दिया है। आरएसएस के बारे में मेरी राय थी कि वह देश को धार्मिक विचारधारा के तहत आगे ले जाना चाहती है। इस विचारधारा में, मुसलमान के लिए अपने धर्म के अनुसार जीना बहुत कठिन हो जाता है। मेरे कुछ मित्र जो आरएसएस के बुनियादी लोग हैं, उन्होंने भागवत जी से मुलाक़ात करवाई। संयोगवश, वह शुक्रवार का दिन था। मोहन भागवत हमें पांच-दस मिनट में निपटा सकते थे, लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ कि वे पौने दो घंटे तक मुझसे बात करते रहे। नमाज का समय करीब आ रहा था, इसलिए मैंने ही अनुमति मांगी।
प्रश्न- इतनी देर तक क्या बातचीत हुई?उत्तर- मैं जमीयत की विचारधारा से एक इंच भी इधर-उधर नहीं हुआ। ये बातचीत बेहद अच्छे माहौल में हुई। उन्होंने उठकर मुझसे कहा कि हमें आपकी बातों से बहुत प्रसन्नता हुई। मैं आपको दो-ढाई साल में अपनी बड़ी सभा में बुलाऊंगा और हम चाहेंगे कि आप वहां भी यही बातें कहें। मेरी पूरी बातचीत का फोकस यही था कि हम भी भारतीय हैं और हमारे पूर्वज भी भारतीय थे। किसी को भी दूसरे धर्म का पालन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और वह धर्म हो भी नहीं सकता जिसमें जोर-जबरदस्ती हो। मैंने उनसे कहा कि जब आप मुझे बुलाएंगे तो मैं जरूर आऊंगा। उन्होंने मुझसे कहा कि हम बहुत धीरे चलते हैं, इसलिए मैंने ढाई साल बाद बुलाने की बात कही।
उन्होंने कहा कि अगर मैं तेज गति से चलूंगा और कहीं जाकर पीछे मुड़कर देखूंगा तो खुद को अकेला खड़ा पाऊंगा। मैंने उनसे कहा कि हम सभी भाई हैं और हम सभी इसी देश के हैं। हम पिछले 1300 वर्षों से शांति और प्रेम से रह रहे हैं। गांव-गांव में मुसलमान हैं। कोई मुसलमान बाहर से नहीं आया है। उनकी बिरादरी यहीं है। मुसलमान गुज्जर, चौधरी और ठाकुर भी हैं। यहां हर जाति-बिरादरी के मुसलमान मौजूद हैं। यदि एक या दो प्रतिशत लोग बाहर से आए भी हैं तो वे यहां इतने घुल-मिल गए हैं कि उनकी अपनी पहचान ही मिट गई है। आखिर ऐसी कौन सी नई बात हो गई कि मुसलमान कल तो सुकून से रह सकता था, लेकिन आज नहीं रह सकता। यह समझना कि आप उसे हिंदू बना लेंगे तो ऐसा नहीं हो सकता। मुझे खुशी है कि भागवत जी ने मेरी इन बातों को नकारा नहीं बल्कि ध्यान से सुना भी।
प्रश्न- तो दोबारा मुलाकात नहीं हो पाई?उत्तर- उनसे पहली मुलाकात को सात-आठ साल हो गए। उन्होंने फिर बुलाया ही नहीं। मेरा ख्याल है कि वे इस विचार को अपने लोगों के सामने प्रस्तुत करना चाहते थे, लेकिन मुझे लगता है कि जिस विचारधारा को आरएसएस ने 95 वर्षों तक प्रचारित किया, आज इतने लंबे समय के बाद कोई अन्य विचारधारा प्रस्तुत करना भागवत जी के लिए एक बड़ी टेढ़ी खीर है।
प्रश्न- आपने उन्हें याद नहीं दिलाया?उत्तर- मैं बहुत छोटा आदमी हूं। मेरे अंदर उनसे यह कहने की हिम्मत नहीं है कि मैं आपसे मिलना चाहता हूं।प्रश्न-आप साधु-संतों से भी मिलते रहे हैं, क्या इस प्रकार की मुलाकातें अभी भी होती हैं?उत्तर- साधु-संतों से मिलने का मेरा उद्देश्य बहुत विशेष और सीमित था। मैं एक विशिष्ट बिंदु की तलाश में था। मैंने इस दृष्टिकोण पर शोध करने में बहुत समय बिताया कि हिंदू धर्म के अनुसार दुनिया का पहला व्यक्ति कौन था। इस संबंध में मैंने हिंदू धर्म की 50 से अधिक पुस्तकों के उर्दू अनुवाद का भी अध्ययन किया। 8 जनवरी, 2023 को मैं हरिद्वार में एक महान हिंदू विद्वान महामंडलेश्वर कैलाशानंद से मिलने गया था। मैंने पूछा कि उस शक्ति का क्या नाम है जिसका कोई शरीर नहीं है, जो सर्वव्यापी है और जो सब कुछ करने में सक्षम है। बहुत शोध के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि जिसका कोई शरीर नहीं है, जो हर जगह है और जिसका हर चीज पर नियंत्रण है, उसे वास्तव में 'ओम' कहा जाता है और जो सबसे पहले दुनिया में आया, वह वही है जिसे 'मनु' कहा जाता है। जब मुझे यकीन हो गया कि मेरा शोध सही है तो मैंने देवबंद में जमीयत की एक बड़ी सभा में अपने शोध को लोगों के सामने रखा कि जो अल्लाह है, वही ओम है और जिसे आदम कहा जाता है वही मनु है। मेरे मन को संतोष है कि मैंने अपनी श्रद्धा के अनुसार जो कहा है, वह सत्य है और इसका उल्लेख सभी हिंदू ग्रंथों में मिलता है। आरएसएस में मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि आपके शोध के इस रहस्योद्घाटन की बहुत चर्चा है।प्रश्न- भाजपा का दावा है कि हमारे समय में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है। क्या यह कम बात है?उत्तर- सांप्रदायिक मानसिकता उन्हीं बुनियादों को उजागर कर रही है जिन पर दंगे होते थे। यही लोग आगे बढ़कर उत्पात मचाते थे। जो वे चाहते थे, अब वही हो रहा है तो दंगे की क्या जरूरत है? क्या माब लिंचिंग नहीं हुई? क्या मस्जिदों के सामने हुड़दंग और भड़काऊ नारे नहीं लगाए जाते? इतनी घटनाओं के बाद अब उन्होंने माब लिंचिंग विरोधी कानून बनाया है। सांप्रदायिकता के आधार पर कराए गए दंगे देश की नीति के रूप में सामने आ रहे हैं। मुसलमानों को धार्मिक, आर्थिक और मानवीय नुकसान उठाना पड़ रहा है। हलद्वानी इसका ताजा उदाहरण है जहां सात मुसलमानों की हत्या कर दी गई और उल्टा 101 मुसलमानों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। बेंगलुरु में हमारे पैगंबर का अपमान किया गया, मुसलमानों ने विरोध किया तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वह पिछले ढाई साल से जेल में हैं। हम 1072 लोगों का केस लड़ रहे हैं, 80 से अधिक को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। बड़ी संख्या में युवाओं को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। तारीख पर तारीख पड़ रही है।प्रश्न- क्या इन दस वर्षों में मुकदमों का निपटारा होने की गति में कोई कमी आई है?उत्तर- पहले हमारी बात सुनी जाती थी। आज नहीं सुनी जाती। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में मैं राहुल गांधी से मिला और उन्हें पीड़ित मुसलमानों की कहानी बहुत कड़े शब्दों और सख्त लहजे में बताई। मैंने कहा कि अगर कोई मर जाता है, तो परिवार को कुछ समय बाद सुकून आ जाता है, लेकिन जो युवा जेलों में सड़ रहे हैं उनके माता पिता रोते-रोते अंधे हो रहे हैं। मैंने कहा कि देशद्रोह बहुत बड़ा अपराध है। उसके अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, लेकिन आपने यह काम पुलिस के हाथों में दे रखा है। आप सेवानिवृत्त न्यायधीशों और गणमान्य व्यक्तियों पर आधारित एक समिति बना दीजिए। जब पुलिस किसी पर देशद्रोह का आरोप लगाए तो उसकी फाइल इस समिति को दी जानी चाहिए। अगर यह समिति जांच के बाद कहती है कि आरोप सही है तो आप उस पर मुकदमा चला कर उसे फांसी पर चढ़ा दीजिए। लेकिन पुलिस के कहने पर किसी को बिना मुकदमा चलाए 10-10 और 20 साल तक जेल में रखना ठीक नहीं है। पुलिस दो सौ-ढाई सौ लोगों को गवाह बनाती है। वर्षों गवाहियां नहीं होतीं। राहुल गांधी ने देशभर में ऐसे पीड़ितों की सूची मांगी। अखबारों में विज्ञापन के जरिए मैंने पूरा विवरण एकत्र किया और राहुल गांधी को उद्धृत किया। उन्होंने वादा किया कि वह कुछ करेंगे। कुछ दिनों के बाद तत्कालीन उप गृहमंत्री ने मुझे आश्वासन दिया कि वह इस पर अवश्य कार्रवाई करेंगे, लेकिन कुछ दिनों बाद उनका विभाग बदल दिया गया और उन्हें खेल मंत्री बना दिया गया।प्रश्न- मोदी सरकार के आने के बाद आपने यह प्रयास क्यों नहीं किया?उत्तर- इस सरकार की विचारधारा स्पष्ट है। वह बदल नहीं सकती। इसी के आधार पर वह सरकार में आए। यदि यह सरकार वास्तव में प्रभावित मुसलमानों के प्रति सहानुभूति रखती, तो कुछ करने के लिए दस साल का समय बहुत होता है। लेकिन हम समय-समय पर जमीयत उलेमा द्वारा पारित विभिन्न प्रस्ताव प्रधानमंत्री को भेजते रहे, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया। गृह मंत्री को भी पत्र भेजे गए, लेकिन पत्र मिलने तक की कोई जानकारी नहीं दी गई। क्या ऐसे में प्रधानमंत्री से मिलने की कोशिश सफल हो पाती?प्रश्न- पिछली सदी के आठवें दशक में जमीयत उलेमा द्वारा एक सर्वेक्षण किया गया था, जिसके अनुसार तब तक 67 हजार से अधिक दंगे हो चुके थे और उनमें से 23 हजार से अधिक दंगे 1984 के सिख विरोधी दंगों की भयावहता के थे। आपने कभी कांग्रेस से इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की?उत्तर- हम कभी शांत नहीं बैठे। जमीयत उलेमा की सभाओं और कार्यकारिणी की कार्यवाही इसकी गवाह है। आज वे (कांग्रेस) उसी की सजा भुगत रहे हैं। हम उनसे सख्त बातें कहते थे। वे हमारी बात सुनते थे, लेकिन आज स्थिति विपरीत है। आज उन्हें (कांग्रेस को) होश आ गया है। आज वे कह रहे हैं कि हम सत्ता में आए तो धार्मिक आजादी देंगे। यह कांग्रेस का मूल दृष्टिकोण नहीं था। यह रुख उसी मार का नतीजा है जो उन पर पड़ी थी।प्रश्न- हिंदू और मुस्लिमों को क्या संदेश देंगे?उत्तर- इस देश की आजादी के लिए हिंदुओं और मुसलमानों ने बहुत बड़ा बलिदान दिया है। हमारे बुजुर्गों ने देश को फिरकापरस्ती से बचाने के लिए बहुत कष्ट उठाए है। जब तक हम एक-दूसरे के दुख-दर्द में भागीदार नहीं बनेंगे तब तक देश में शांति नहीं होगी। हम मुसलमानों से भी कहते हैं और हिंदुओं से भी कहते हैं कि अगर आपके पड़ोसी को कोई तकलीफ हो तो उसे दूर करने की पूरी कोशिश करें, तभी अमन-चैन का पुराना दौर वापस आ सकेगा।प्रश्न- क्या आपने मुसलमानों या अपने करीबी लोगों को अपने वोट के इस्तेमाल के बारे में कोई संकेत दिया?उत्तर- मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं। चुनावी राजनीति में मेरी कोई भागीदारी नहीं है, लेकिन मैंने इस बार यह जरूर कहा कि वोट देने से पहले दस बार सोचना चाहिए। भाजपा सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता छीन ली है। जो लोग कह रहे हैं कि धार्मिक आजादी देंगे तो इसका मतलब है कि वे देश को धर्मनिरपेक्ष देश बनाना चाहते हैं। इसी का नाम धर्मनिरपेक्षता है कि सरकार का कोई धर्म नहीं होगा और हर नागरिक को अपना धर्म मानने की आजादी होगी।